रोहिंज्या संकट पर सम्मेलन – वित्तीय मदद का संकल्प, दीर्घकालीन समाधान ढूँढने पर ज़ोर
म्याँमार के विस्थापित रोहिंज्या समुदाय की मदद के लिये अन्तरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र की मेज़बानी में हुए एक दानदाता सम्मेलन में 60 करोड़ डॉलर की धनराशि का संकल्प लिया गया है. गुरुवार को यह सम्मेलन इस वादे के साथ समाप्त हो गया कि रोहिंज्या की पीड़ाओं का दीर्घकालीन समाधान निकालने के लिये सम्बद्ध देशों के साथ सम्वाद जारी रखा जायेगा.
इस सम्मेलन के सह-आयोजकों – संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR), योरोपीय संघ (EU), ब्रिटेन, अमेरिका – की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि रोहिंज्या मुद्दे पर ध्यान बनाये रखने के लिये साथ मिलकर प्रयास किये जाते रहेंगे.
𝙒𝙝𝙤 𝙖𝙧𝙚 𝙩𝙝𝙚 𝙍𝙤𝙝𝙞𝙣𝙜𝙮𝙖? 𝙃𝙤𝙬 𝙙𝙞𝙙 𝙩𝙝𝙚 𝙘𝙧𝙞𝙨𝙞𝙨 𝙨𝙩𝙖𝙧𝙩 3 𝙮𝙚𝙖𝙧𝙨 𝙖𝙜𝙤 𝙖𝙣𝙙 𝙬𝙝𝙚𝙧𝙚 𝙖𝙧𝙚 𝙩𝙝𝙚𝙮 𝙣𝙤𝙬?The international community gathers at the virtual #RohingyaConf2020 today to find solutions for them. pic.twitter.com/EBXFdWqbuC— UNHCR, the UN Refugee Agency (@Refugees) October 22, 2020
साथ ही अल्पकालिक गम्भीर उपायों के बजाय एक सतत और स्थायित्वपूर्ण समर्थन की ओर बढ़ने की मंशा ज़ाहिर की गई है.
सम्मेलन के आयोजकों ने अन्तरराष्ट्रीय मानवीय जवाबी कार्रवाई के लिये वित्तीय संसाधनों के संकल्प की घोषणा करने वाले और अन्य रूपों में रोहिंज्या समुदाय के सदस्यों का समर्थन करने वाले सभी पक्षों का आभार व्यक्त किया है.
लगभग तीन वर्ष पहले म्याँमार के राख़ीन प्रान्त में व्यापक स्तर पर हिंसा भड़क उठी थी जिसके बाद जान बचाने के लिये रोहिंज्या समुदाय के लाखों लोगों ने अपना घर छोड़कर बांग्लादेश में शरण ली थी.
क़रीब आठ लाख 60 हज़ार रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार और उसके आस-पास के इलाक़ों में रह रहे हैं जहाँ उनके लिये शरणार्थी शिविर स्थापित किये गये हैं.
छह लाख रोहिंज्या अब भी राख़ीन प्रान्त में रह रहे हैं जहाँ उन्हें हिंसा और भेदभावपूर्व बर्ताव का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा मलेशिया, भारत, इण्डोनेशिया और क्षेत्र के अन्य देशों में लगभग डेढ़ लाख रोहिंज्या शरणार्थी रहते हैं.
स्वैच्छिक, सुरक्षित, गरिमामय वापसी
सम्मेलन के बाद जारी एक साझा वक्तव्य के मुताबिक रोहिंज्या शरणार्थियों और अन्य घरेलू विस्थापितों की उनके मूल या चयनित स्थानों पर स्वेच्छा से, सुरक्षित, गरिमामय और स्थायी वापसी इस समस्या का व्यापक समाधान है.
सम्मेलन के आयोजकों के मुताबिक उनके साथ-साथ रोहिंज्या समुदाय भी इसी समाधान के लिये इच्छुक है.
“इस क्रम में, हम महासचिव की वैश्विक युद्धविराम और लड़ाई रोके जाने की अपील को रेखांकित करते हैं ताकि सभी ज़रूरतमन्द समुदायों तक निर्बाध और सुरक्षित मानवीय राहत पहुँचाई जा सके.”
सह-आयोजकों ने म्याँमार सरकार से इस संकट को सुलझाने और हिंसा व विस्थापन के बुनियादी कारणों को दूर करने के लिये क़दम उठाने का आग्रह किया है.
उन्होंने कहा है कि ऐसी परिस्थितियों का निर्माण किया जाना होगा जिससे स्थायी वापसी को सम्भव बनाया जा सके.
बांग्लादेश की सरकार और जनता का आभार व्यक्त करते हुए सम्मेलन के सह-आयोजकों ने ज़ोर देकर कहा है कि रोहिंज्या के लिये समर्थन बढ़ाये जाने के साथ-साथ मेज़बान समुदायों के लिये भी सहारा बढ़ाया जाना होगा.
उन्होंने कहा कि इससे जवाबी कार्रवाई में सरकार को ज़्यादा असरदार ढँग से मदद प्रदान की जा सकती है और सीमित संसाधनों के बावजूद दोनों, बांग्लादेशी और रोहिंज्या समुदायों को लाभ पहुँचाया जा सकता है.
60 करोड़ डॉलर का संकल्प
गुरुवार को सम्मेलन के दौरान मानवीय राहत कार्यों के लिये 60 करोड़ डॉलर की धनराशि का संकल्प लिया गया है.
इससे पहले बांग्लादेश साझा कार्रवाई योजना और म्याँमार मानवीय राहत कार्रवाई योजना के तहत वर्ष 2020 में 63 करोड़ डॉलर का संकल्प लिया जा चुका है.
सह-आयोजकों ने कहा कि इस संकट का रोहिंज्या समुदाय के निर्बल सदस्यों पर तबाहीपूर्ण असर हो रहा है, विशेष तौर पर महिलाओं व बच्चों जिन्हें लैंगिक और आयु सम्बन्धी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर लक्षित उपायों के ज़रिये मदद दिये जाने की आवश्यकता है.
ये भी पढ़ें – रोहिंज्या शरणार्थियों की एक ‘पूरी पीढ़ी की आशाएं दांव पर’
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर ने बांग्लादेश, दानदाताओँ, यूएन शरणार्थी एजेंसी, विश्व खाद्य कार्यक्रम, अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन और अन्य ग़ैरसरकारी संगठनों का आभार व्यक्त किया है जो विकट हालात में जीवन गुज़ार रहे रोहिंज्या बच्चों की मदद के लिये प्रयासरत हैं.
इन प्रयासों के तहत उनके स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता और शिक्षा सहित अन्य ज़रूरतों का ख़याल रखा जा रहा है ताकि वे अपने लिये बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकें.
उन्होंने कहा कि दानदाताओं से कहा कि उन संघर्षों को नहीं भूला जाना होगा जिन्हें रोहिंज्या बच्चों को दैनिक जीवन में झेलना पड़ता है.
यूएन में आपात राहत समन्वयक मार्क लोकॉक ने कहा कि यह समझा जाना ज़रूरी है कि रोहिंज्या शरणार्थी ही जवाबी कार्रवाई की रीढ़ साबित हुए हैं.
“वे स्वेच्छा से स्वास्थ्यकर्मियों के रूप में कार्य करते हैं, मास्क वितरित करते हैं और अपने समुदाय की महामारी से रक्षा करने में मदद करते हैं.“
उन्होंने कहा कि म्याँमार में अब भी एक लाख 30 हज़ार रोहिंज्या मध्य राख़ीन प्रान्त में विस्थापित हैं जहाँ वे 2012 से रह रहे हैं जबकि उत्तरी राख़ीन में वर्ष 2017 से 10 हज़ार विस्थापित हैं. , म्याँमार के विस्थापित रोहिंज्या समुदाय की मदद के लिये अन्तरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र की मेज़बानी में हुए एक दानदाता सम्मेलन में 60 करोड़ डॉलर की धनराशि का संकल्प लिया गया है. गुरुवार को यह सम्मेलन इस वादे के साथ समाप्त हो गया कि रोहिंज्या की पीड़ाओं का दीर्घकालीन समाधान निकालने के लिये सम्बद्ध देशों के साथ सम्वाद जारी रखा जायेगा.
इस सम्मेलन के सह-आयोजकों – संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR), योरोपीय संघ (EU), ब्रिटेन, अमेरिका – की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि रोहिंज्या मुद्दे पर ध्यान बनाये रखने के लिये साथ मिलकर प्रयास किये जाते रहेंगे.
साथ ही अल्पकालिक गम्भीर उपायों के बजाय एक सतत और स्थायित्वपूर्ण समर्थन की ओर बढ़ने की मंशा ज़ाहिर की गई है.
सम्मेलन के आयोजकों ने अन्तरराष्ट्रीय मानवीय जवाबी कार्रवाई के लिये वित्तीय संसाधनों के संकल्प की घोषणा करने वाले और अन्य रूपों में रोहिंज्या समुदाय के सदस्यों का समर्थन करने वाले सभी पक्षों का आभार व्यक्त किया है.
लगभग तीन वर्ष पहले म्याँमार के राख़ीन प्रान्त में व्यापक स्तर पर हिंसा भड़क उठी थी जिसके बाद जान बचाने के लिये रोहिंज्या समुदाय के लाखों लोगों ने अपना घर छोड़कर बांग्लादेश में शरण ली थी.
क़रीब आठ लाख 60 हज़ार रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार और उसके आस-पास के इलाक़ों में रह रहे हैं जहाँ उनके लिये शरणार्थी शिविर स्थापित किये गये हैं.
छह लाख रोहिंज्या अब भी राख़ीन प्रान्त में रह रहे हैं जहाँ उन्हें हिंसा और भेदभावपूर्व बर्ताव का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा मलेशिया, भारत, इण्डोनेशिया और क्षेत्र के अन्य देशों में लगभग डेढ़ लाख रोहिंज्या शरणार्थी रहते हैं.
स्वैच्छिक, सुरक्षित, गरिमामय वापसी
सम्मेलन के बाद जारी एक साझा वक्तव्य के मुताबिक रोहिंज्या शरणार्थियों और अन्य घरेलू विस्थापितों की उनके मूल या चयनित स्थानों पर स्वेच्छा से, सुरक्षित, गरिमामय और स्थायी वापसी इस समस्या का व्यापक समाधान है.
सम्मेलन के आयोजकों के मुताबिक उनके साथ-साथ रोहिंज्या समुदाय भी इसी समाधान के लिये इच्छुक है.
“इस क्रम में, हम महासचिव की वैश्विक युद्धविराम और लड़ाई रोके जाने की अपील को रेखांकित करते हैं ताकि सभी ज़रूरतमन्द समुदायों तक निर्बाध और सुरक्षित मानवीय राहत पहुँचाई जा सके.”
सह-आयोजकों ने म्याँमार सरकार से इस संकट को सुलझाने और हिंसा व विस्थापन के बुनियादी कारणों को दूर करने के लिये क़दम उठाने का आग्रह किया है.
उन्होंने कहा है कि ऐसी परिस्थितियों का निर्माण किया जाना होगा जिससे स्थायी वापसी को सम्भव बनाया जा सके.
बांग्लादेश की सरकार और जनता का आभार व्यक्त करते हुए सम्मेलन के सह-आयोजकों ने ज़ोर देकर कहा है कि रोहिंज्या के लिये समर्थन बढ़ाये जाने के साथ-साथ मेज़बान समुदायों के लिये भी सहारा बढ़ाया जाना होगा.
उन्होंने कहा कि इससे जवाबी कार्रवाई में सरकार को ज़्यादा असरदार ढँग से मदद प्रदान की जा सकती है और सीमित संसाधनों के बावजूद दोनों, बांग्लादेशी और रोहिंज्या समुदायों को लाभ पहुँचाया जा सकता है.
60 करोड़ डॉलर का संकल्प
गुरुवार को सम्मेलन के दौरान मानवीय राहत कार्यों के लिये 60 करोड़ डॉलर की धनराशि का संकल्प लिया गया है.
इससे पहले बांग्लादेश साझा कार्रवाई योजना और म्याँमार मानवीय राहत कार्रवाई योजना के तहत वर्ष 2020 में 63 करोड़ डॉलर का संकल्प लिया जा चुका है.
सह-आयोजकों ने कहा कि इस संकट का रोहिंज्या समुदाय के निर्बल सदस्यों पर तबाहीपूर्ण असर हो रहा है, विशेष तौर पर महिलाओं व बच्चों जिन्हें लैंगिक और आयु सम्बन्धी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर लक्षित उपायों के ज़रिये मदद दिये जाने की आवश्यकता है.
ये भी पढ़ें – रोहिंज्या शरणार्थियों की एक ‘पूरी पीढ़ी की आशाएं दांव पर’
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर ने बांग्लादेश, दानदाताओँ, यूएन शरणार्थी एजेंसी, विश्व खाद्य कार्यक्रम, अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन और अन्य ग़ैरसरकारी संगठनों का आभार व्यक्त किया है जो विकट हालात में जीवन गुज़ार रहे रोहिंज्या बच्चों की मदद के लिये प्रयासरत हैं.
इन प्रयासों के तहत उनके स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता और शिक्षा सहित अन्य ज़रूरतों का ख़याल रखा जा रहा है ताकि वे अपने लिये बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकें.
उन्होंने कहा कि दानदाताओं से कहा कि उन संघर्षों को नहीं भूला जाना होगा जिन्हें रोहिंज्या बच्चों को दैनिक जीवन में झेलना पड़ता है.
यूएन में आपात राहत समन्वयक मार्क लोकॉक ने कहा कि यह समझा जाना ज़रूरी है कि रोहिंज्या शरणार्थी ही जवाबी कार्रवाई की रीढ़ साबित हुए हैं.
“वे स्वेच्छा से स्वास्थ्यकर्मियों के रूप में कार्य करते हैं, मास्क वितरित करते हैं और अपने समुदाय की महामारी से रक्षा करने में मदद करते हैं.“
उन्होंने कहा कि म्याँमार में अब भी एक लाख 30 हज़ार रोहिंज्या मध्य राख़ीन प्रान्त में विस्थापित हैं जहाँ वे 2012 से रह रहे हैं जबकि उत्तरी राख़ीन में वर्ष 2017 से 10 हज़ार विस्थापित हैं.
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