अनेकान्तवाद का प्राचीन सिद्धांत मौजूदा जटिल विश्व में वैश्विक कूटनीति के लिये एक रूपरेखा: धनखड़
नयी दिल्ली 16 जनवरी : उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि भारतीय दर्शन परंपरा का “अनेकान्तवाद” का प्राचीन सिद्धांत मौजूदा जटिल विश्व में वैश्विक कूटनीति के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है।
श्री धनखड़ ने गुरुवार को कर्नाटक के धारवाड़ में ‘सुमेरु पर्वत संरचना’ का उद्घाटन करते हुये कहा कि “भारत” एक ऐसी भूमि है जहां शाश्वत ज्ञान प्रकाशित होता है और यहीं मानवता को शांति मिलती है। उन्होंने कहा कि हीरे की तरह सत्य के कई पहलू हैं। अनेकांतवाद, बहु दृष्टिकोणों का भारत का प्राचीन सिद्धांत, आज की जटिल दुनिया में वैश्विक कूटनीति के लिए एक रूपरेखा देता है। अनेकान्तवाद में अभिव्यक्ति और संवाद की भावना समाहित है। मानवता की अधिकांश समस्यायें इसलिये उत्पन्न होती हैं क्योंकि अभिव्यक्ति से समझौता किया जाता है और संवाद नकारात्मक होता है।
उन्होंने कहा कि तीन रत्न, ‘अहिंसा’, ‘अपरिग्रह’ और ‘अनेकान्तवाद’, केवल शब्द नहीं हैं। ये जीवन के तरीके को परिभाषित करते हैं। ये ग्रह पर अस्तित्व के लिये आधार और आधार हैं। ये तीनों एक साथ वैश्विक चुनौतियों, हिंसा, अत्यधिक उपभोग और वैचारिक ध्रुवीकरण के लिये गहन समाधान प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे मठ और मंदिर केवल पूजा के स्थान नहीं हैं। वे सामाजिक परिवर्तन की जीवंत संस्थाएँ हैं, जो समकालीन चुनौतियों का समाधान करने के लिये प्राचीन ज्ञान को अपनाती हैं।
उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति के अधिकार को तभी सार्थक बना सकते हैं, जब संवाद में विश्वास किया जाये। संवाद दूसरा दृष्टिकोण प्रदान करता है। केवल अपने ही दृष्टिकोण को सही मानने का अहंकार नहीं करना चाहिये। संवाद में शामिल होकर अपने आस-पास के बुद्धिमान लोगों की सलाह पर ध्यान देना चाहिए और यही अनेकान्तवाद में कहा गया है।
श्री धनखड़ ने कहा कि मंदिर आध्यात्मिक शक्ति का एक नेटवर्क बनाते हैं। यह परमाणु शक्ति से आगे है। आध्यात्मिक शक्ति में अकल्पनीय आयामों में सकारात्मक परिवर्तन लाने की असीम शक्ति है। उन्होंने कहा कि संतुष्टि, शांति और सांत्वना से भरा जीवन जीने के लिए दोनों ही आवश्यक हैं।
भौतिक और आध्यात्मिक विकास के बीच संतुलन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुये उप-राष्ट्रपति ने कहा कि सच्चे ‘विकास’ के लिये भौतिक प्रगति को आध्यात्मिक विकास के साथ संतुलित करना होगा। समय को घड़ियों से नहीं, बल्कि परिवर्तन के क्षणों से मापा जाता है। हर 12 साल में किया जाने वाला महामस्तकाभिषेक ‘प्राचीन ज्ञान’ और ‘आधुनिक चुनौतियों’ के बीच सेतु है।