योगी ने बदल दी राजनीति की परिभाषा, सियासत को सनातन की पिच पर किया खड़ा
लखनऊ । उत्तर प्रदेश की राजनीति को नई दिशा और परिभाषा देने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने आठ वर्षों के कार्यकाल में शासन और धर्म के समन्वय का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसने राजनीति की पारंपरिक सोच को बदलकर सनातन संस्कृति के मूल्यों को जनकल्याण का आधार बना दिया।
गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर के रूप में संत परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी को भी उसी संन्यासी जीवनशैली और अनुशासन के साथ निभाया। उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश न केवल कानून-व्यवस्था और विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, बल्कि सनातन संस्कृति की धरोहर को सशक्त रूप से राष्ट्रीय फलक पर स्थापित कर रहा है। अयोध्या, काशी, मथुरा से लेकर सुहेलदेव और संभल तक, उनके प्रयासों ने धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण को गति दी है।
योगी आदित्यनाथ की राजनीति सत्ता प्राप्ति से अधिक लोक कल्याण और सांस्कृतिक उत्थान की प्रेरणा बन चुकी है, जिसने उत्तर प्रदेश को अपराधमुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त और आत्मनिर्भर राज्य बनाने की दिशा में ऐतिहासिक सफलता दिलाई है। योगी का गृह जनपद गोरखपुर है। यहीं पर उत्तर भारत के प्रमुख धार्मिक पीठों में शुमार गोरक्षपीठ है। इस पीठ को देश-दुनिया में फैले नाथपंथ का मुख्यालय माना जाता है। योगी मुख्यमंत्री होने के साथ इसी पीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। इस रूप में दीक्षित योगी (संन्यासी) भी हैं। खुद के योगी होने पर उनको गर्व भी है। समय-समय पर सदन से लेकर सार्वजनिक सभाओं में वह इस बात को कहते भी हैं।
तीन दशक से मंदिर की राजनीति कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय कहते हैं कि आठ साल पहले जब एक लंबे अंतराल के बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा को बहुमत मिला तो 19 मार्च 2017 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर, आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े और राजनीति के लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील सूबे के मुखिया का दायित्व संभाला। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने पीठ की लोककल्याण की परंपरा और संस्कार के फलक को अपने पद के अनुसार लगातार विस्तार दिया।
उन्होंने साबित किया कि जन केंद्रित राजनीति के केंद्र में भी धर्म हो सकता है। उनके दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के समय में जिस ‘हिंदू और हिंदुत्व’ को प्रतिगामी माना जाता था उसे योगी ने बहस के केंद्र में ला दिया। जो पहले भगवान श्रीराम की आलोचना करते थे, उनको काल्पनिक बताते थे ऐसे लोग भी खुद को हिंदू कहलाकर गौरवान्वित महसूस करते हैं। इस तरह उन्होंने धर्म और राजनीति को लोक कल्याण का जरिया बनाकर साबित किया कि संत, समाज का वैचारिक मार्गदर्शन करने के साथ सत्ता का कुशलता से नेतृत्व भी कर सकता है। उनके खाते में ढेर सारी उपलब्धियां दर्ज हैं। 2019 में एक प्रतिष्ठित पत्रिका के सर्वे में उनको देश का सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री माना गया।
एक इंटरव्यू में कभी उन्होंने कहा था कि वह कभी हारे नहीं हैं। गोरखपुर से संसदीय चुनावों में वह अजेय रहे हैं तो पहली बार 2022 में विधानसभा चुनाव लड़कर उन्होंने अपनी अपराजेय लोकप्रियता को पुनः प्रमाणित किया। जन, जल, जंगल और जमीन से प्यार करने वाले योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को पौढ़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) के पंचुर गांव में एक सामान्य परिवार में हुआ था। संयोग से उसी दिन विश्व पर्यावरण दिवस भी पड़ता है। उनके पिता स्वर्गीय आनंद सिंह विष्ट वन विभाग में रेंजर थे। बाल्यकाल से राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित योगी का जुड़ाव नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन से हो गया।
राम मंदिर आंदोलन के दौरान ही वह इस आंदोलन के नायक गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ के संपर्क में आए। महंत जी के सानिध्य और उनसे प्राप्त नाथपंथ के बारे में मिले ज्ञान ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि गढ़वाल विश्वविद्यालय से स्नातक विज्ञान तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय कर लिया। इसी क्रम में वह 1993 में गोरखनाथ मंदिर आ गए और नाथ पंथ की परंपरा के अनुरूप धर्म, अध्यात्म की तात्विक विवेचना और योग साधना में रम गए। उनकी साधना और अंतर्निहित प्रतिभा को देख महंत अवेद्यनाथ ने उन्हें 15 फरवरी 1994 को गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के रूप में दीक्षा प्रदान किया। गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने पीठ की लोक कल्याण और सामाजिक समरसता के ध्येय को सदैव विस्तारित किया।