सही सुधारों के साथ भारत का म्युनिसिपल ग्रीन बॉन्ड बाजार 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक जुटा सकता है: सीईईडब्ल्यू
नई दिल्ली, 27 मार्च । म्युनिसिपल ग्रीन बॉन्ड्स 2030 तक लगभग 20,000 करोड़ रुपये (2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) जुटा सकते हैं, जो भारत में नागरिक और जलवायु-अनुकूल शहरी विकास के लिए एक महत्वपूर्ण धनराशि होगी। यह जानकारी सीईईडब्ल्यू ग्रीन फाइनेंस सेंटर (सीईईडब्ल्यू-जीएफसी) की ओर से गुरुवार को नई दिल्ली में जारी एक रिपोर्ट “अनलॉकिंग ग्रीन फाइनेंस फॉर इंडियाज अर्बन लोकल बॉडीज थ्रू म्युनिसिपल ग्रीन बॉन्ड” से सामने आई है। इस अध्ययन में पाया गया है कि पिछले दशक में जारी लगभग 60 प्रतिशत म्युनिसिपल बॉन्ड को ग्रीन लेबल दिया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अवसर गंवाने से कम लागत और जलवायु-केंद्रित विशेष निवेश को आकर्षित करने का मौका भी पीछे छूट गया। पिछले एक दशक में जारी हुए अंतिम सात म्युनिसिपल बॉन्ड्स में से चार को ग्रीन लेबल मिला, जिनकी कुल राशि 694 करोड़ रुपये (लगभग 85 मिलियन अमेरिकी डॉलर) थी।
गुरुवार को रिपोर्ट जारी करने के अवसर पर आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डी. थारा ने कहा कि म्युनिसपल बॉन्ड्स के साथ मुख्य चुनौती शहरी स्थानीय निकायों के बीच लगातार उधार लेने और पुनर्भुगतान करने की आदतों को बढ़ावा देना है। म्युनिसपल बॉन्ड को सफल बनाने के लिए, छोटे नगर निगमों के लिए कम से कम प्रवेश बाधा, सुरक्षित वित्तपोषण और लघु सॉवरेन गारंटी के साथ सुलभता से मिलने वाले वित्त की एक श्रृंखला बनानी होगी। म्युनिसिपल बॉन्ड एकमात्र समाधान नहीं हैं – स्ट्रक्चर्ड प्रोजेक्ट लिंक्ड ऋण और पीएम स्वनिधि से प्रेरित म्युनिसिपल बॉन्ड लाइट एप्रोच जैसे नवीन वित्तपोषण मॉडल, नगरनिगमों को कुशलतापूर्वक छोटे ऋण हासिल करने और चुकाने में सक्षम बना सकते हैं। इस क्षमता को सामने लाने के लिए, इकोसिस्टम या संबंधित संस्थाओं को इस बदलाव को जमीनी स्तर से ऊपर बढ़ाना चाहिए, छोटे निवेशकों को आकर्षित करना चाहिए और इस तरह के ‘सिटीजन बॉन्ड’ के विकास को सक्षम बनाना चाहिए।”
म्युनिसिपल बॉन्ड्स भारतीय शहरों के लिए एक उभरता हुआ वित्तीय उपकरण या साधन है, जो उन्हें जलापूर्ति व्यवस्था, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, ड्रेनेज नेटवर्क और अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं जैसे अति-महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के लिए धनराशि जुटाने में सक्षम बनाता है। म्युनिसिपल बॉन्ड के लिए बाजार में 2030 तक 3 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है।
सीईईडब्ल्यू-जीएफसी का विश्लेषण बताता है कि 1997 के बाद अब तक 6,933 करोड़ रुपये ( लगभग 850 मिलियन अमरीकी डॉलर) के सिर्फ 50 बॉन्ड्स जारी हुए हैं। सीईईडब्ल्यू के ग्रोथ एंड इंस्टीट्यूशनल एडवांसमेंट के निदेशक डॉ. ध्रुबा पुरकायस्थ ने कहा कि शहर विकास के इंजन हैं, भारत में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है और अब लगभग 35 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है। म्युनिसिपल ग्रीन बॉन्ड्स शहरों में क्लाइमेट एक्शन के लिए दीर्घकालिक पूंजी जुटाने का एक व्यवहार्य माध्यम हैं। हालांकि, इनकी क्षमता को सामने लाने के लिए नगर निगमों, राज्य सरकारों, नियामकों और निवेशकों के बीच समन्यव युक्त प्रयास की जरूरत होगी। राजस्व व्यवस्था में सुधार और रिपोर्टिंग पद्धतियों को मानकीकृत करके क्रेडिट लेने की म्युनिसिपल की क्षमता को मजबूत बनाने से संस्थागत निवेशकों को आकर्षित करने और शहरों के लिए उधारी लागत को घटाने में मदद मिलेगी। ग्रीन फाइनेंस से जुटाई जाने वाली धनराशि को जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए निवेश करने की जरूरत होगी।