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अनुच्छेद 356 के मुद्दे पर बंगाल में सीपीआई(एम) का टीएमसी को समर्थन, राज्यपाल के रुख का विरोध

कोलकाता । पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर राज्यपाल डॉ. सी.वी. आनंद बोस द्वारा केंदीय गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट में बंगाल में अनुच्छेद 356 लागू करने की सिफारिश पर सियासी हलचल तेज हो गई है। इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को उसके चिर-प्रतिद्वंदी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का अप्रत्याशित समर्थन मिला है।

सीपीआई(एम) के राज्य सचिव और पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम ने सोमवार को जारी बयान में कहा कि राज्य सरकार से सत्ता छीनकर राज्यपाल को सौंपने से पश्चिम बंगाल की समस्याओं का समाधान नहीं होगा। उन्होंने कहा, “इसमें कोई शक नहीं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो गृह और पुलिस विभाग भी संभालती हैं, कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह विफल रही हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रपति शासन लगाकर समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।”

मोहम्मद सलीम ने यह भी कहा कि बंगाल ने पहले भी राष्ट्रपति शासन का कड़वा अनुभव किया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि “पहलगाम नरसंहार को कशमीर का विभाजन कर केंद्र शासित प्रदेश बनाने से भी नहीं रोका जा सका। मणिपुर में डबल इंजन सरकार के बावजूद लोग संकट में हैं। पश्चिम बंगाल में भी चुनी हुई सरकार को ही जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठानी होगी। राष्ट्रपति शासन कोई समाधान नहीं है, इतिहास गवाह है कि इससे समस्याएं और बढ़ती हैं।”

इससे पहले तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं ने राज्यपाल की रिपोर्ट में अनुच्छेद 356 के उल्लेख की कड़ी आलोचना की थी। पार्टी के प्रदेश महासचिव ने राज्यपाल की रिपोर्ट को पक्षपातपूर्ण करार देते हुए कहा कि यह रिपोर्ट भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से तैयार की गई है।

पश्चिम बंगाल के संसदीय कार्य और कृषि मंत्री शोभनदेब चट्टोपाध्याय ने भी आरोप लगाया कि राज्यपाल की सिफारिशें केंद्र सरकार के निर्देश पर तैयार की गई हैं। उन्होंने कहा, “यह स्वाभाविक है कि राज्यपाल अपनी रिपोर्ट में बंगाल को लेकर नकारात्मक बातें ही कहेंगे।”

गौरतलब है कि राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि पश्चिम बंगाल सरकार सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में नाकाम रही है, जबकि उसने पहले वामपंथी उग्रवाद से निपटने में सफलता पाई थी। उन्होंने पुलिस ढांचे की खामियों का भी उल्लेख किया है, जिसमें कहा गया कि राज्य पुलिस में स्टाफ की भारी कमी है और संसाधनों की भी कमी है, जिसके चलते मुर्शिदाबाद जैसी स्थितियों में बार-बार केंद्रीय बलों की तैनाती करनी पड़ती है।

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