बांकेबिहारी मंदिर कॉरिडोर पर फैसले में संशोधन की मांग, सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए राजी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट मथुरा में श्रीबांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को लेकर सुनाए उसके फैसले में संशोधन की मांग पर सुनवाई करने को तैयार हो गया। शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार की प्रस्तावित योजना को मंजूरी देते हुए फैसला सुनाया था कि कॉरिडोर के लिए पांच एकड़ भूमि खरीदने में मंदिर निधि से पैसे का इस्तेमाल किया जाएगा और जमीन देवी देवता या मंदिर ट्रस्ट के नाम पर होगी।
सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने मथुरा निवासी देवेंद्र नाथ गोस्वामी के वकील अमित आनंद तिवारी की दलीलों पर गौर किया और याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई। 15 मई को शीर्ष अदालत के फैसले के बाद 19 मई को गोस्वामी ने याचिका दायर कर कहा कि प्रस्तावित पुनर्विकास परियोजना का क्रियान्वयन व्यावहारिक रूप से असंभव है।
समय पर फैसले अपलोड न किए जाने की शिकायतों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को सभी हाईकोर्ट से पिछले साल से अब तक के उन मामलों का ब्यौरा देने को कहा जिनमें फैसले सुनाए गए हैं और जिस तारीख को फैसले ऑनलाइन डाले गए।
जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ, जो उन मामलों पर विचार कर रही है जिनमें आदेश सुरक्षित रखे जाने के बावजूद कई वर्षों से फैसले नहीं सुनाए गए हैं, ने निर्देश दिया कि सभी हाईकोर्ट 21 जुलाई से पहले आंकड़े उपलब्ध कराएं। पीठ ने निर्देश दिया कि 13 मई, 2025 के हमारे आदेश के क्रम में, सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों को एक अतिरिक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है।
जिसमें 1 जनवरी, 2024 के बाद निर्णय सुनाए जाने की तिथियों और ऐसे निर्णयों को अपलोड किए जाने की तिथियों का पूरा विवरण दिया जाए। 31 मई 2025 तक की यह जानकारी निर्धारित तिथि यानी 21 जुलाई, 2025 से पहले प्रस्तुत करनी चाहिए। 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोर्ट के जज अनावश्यक अवकाश ले रहे हैं, तथा न्यायालय ने उनके कार्य निष्पादन ऑडिट की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व न्यायिक निर्णय लेने की समग्र गुणवत्ता में काफी सुधार लाएगा और इसका महिलाओं को प्रभावित करने वाले मामलों पर प्रभाव पड़ेगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं की अधिक भागीदारी ने लैंगिक समानता में भी भूमिका निभाई है। देश को एक न्यायिक बल से बहुत लाभ होगा जो सक्षम, प्रतिबद्ध व सबसे महत्वपूर्ण रूप से विविधतापूर्ण है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना व जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने राजस्थान में एक महिला न्यायिक अधिकारी की सेवा में बहाली का आदेश दिया, जिसे फरवरी 2019 में दो साल की अवधि के लिए परिवीक्षा पर नियुक्त किया गया था। पीठ ने पाया कि उसे कोई पोस्टिंग आदेश जारी नहीं किया गया था।
मई 2020 में उसे यह कहते हुए सेवा से हटा दिया गया था कि वह राजस्थान न्यायिक सेवा में पुष्टि के लिए फिट नहीं थी। अनुसूचित जनजाति वर्ग की महिला ने 2017 में राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की थी, जब वह एक चिकित्सा स्थिति से भी पीड़ित थी। शीर्ष अदालत का यह फैसला राजस्थान हाईकोर्ट के अगस्त 2023 के आदेश के खिलाफ उसकी अपील पर आया, जिसमें कारण बताओ नोटिस और डिस्चार्ज आदेश के खिलाफ उसे राहत देने से इनकार कर दिया गया था।