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केवल दिव्यांगता के आधार पर किसी व्यक्ति को न्यायिक सेवा के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी भी व्यक्ति को केवल दिव्यांग होने के आधार पर उसे न्यायिक सेवा के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है। जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमावली के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया जिसमें दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों को न्यायिक सेवा के लिए अयोग्य ठहराया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक सेवाओं में भर्तियों के लिए किसी दिव्यांग व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टू पर्सन्स विद डिसेबिलिटी एक्ट के प्रावधानों के तहत किसी भी दिव्यांग को उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने 3 दिसंबर 2024 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

मध्य प्रदेश के दृष्टिबाधित अभ्यर्थी की मां ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था। इस पत्र पर तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने संज्ञान लेते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, मध्य प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि मध्य प्रदेश सिविल जज वर्ग-2 की 2022 में हुई परीक्षा में दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के आरक्षण को शामिल नहीं किया गया था।

ऐसा करना राईट टू पर्सन्स विद डिसेबिलिटी एक्ट का उल्लंघन है। इस मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट की ओर से नियुक्त एमिकस क्यूरी गौरव अग्रवाल ने कहा कि राईट टू पर्सन्स विद डिसेबिलिटी एक्ट की धारा 34 का लाभ न्यायिक अधिकारियों और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों को भी मिलेगा। यहां तक कि मध्य प्रदेश राईट टू पर्सन्स विद डिसेबिलिटी रुल्स के तहत दिव्यांगों को 6 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है।

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