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जज बनने के लिए 3 वर्ष के वकालत की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर

नई दिल्ली, 16 जून । जज बनने के लिए तीन वर्ष तक वकालत के अनुभव की अनिवार्यता बहाल करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई है। याचिका में 20 मई को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है ।

वकील चंद्रसेन यादव ने याचिका दायर कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट अपने 20 मई के फैसले पर दोबारा विचार करे। 20 मई को चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि जज बनने के लिए तीन वर्ष तक वकालत का अनुभव अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा था कि वकालत का अनुभव किसी वकील के औपचारिक रूप से एनरॉल होने की तिथि से मान्य होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिन हाई कोर्ट ने 20 मई के पहले जजों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू कर दी है, उन पर ये आदेश लागू नहीं होगा, लेकिन 20 मई के बाद से तीन वर्ष का अनुभव अनिवार्य होगा। शुरुआत में जज के पद पर नियुक्त होने के लिए बतौर वकील तीन वर्ष का अनुभव अनिवार्य था। 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन वर्ष के अनुभव को समाप्त करते हुए नये लॉ ग्रेजुएट को भी जज के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन करने का रास्ता खोल दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 28 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी सिद्धार्थ भटनागर ने नये लॉ ग्रेजुएट को जज के पद पर आवेदन करने की छूट पर सवाल खड़े किए थे। सुनवाई के दौरान अधिकतर हाई कोर्ट ने तीन वर्ष के न्यूनतम अनुभव को बहाल करने की वकालत की थी। केवल सिक्किम और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने नये वकीलों को जज के रूप में नियुक्ति के लिए आवेदन करने की छूट का समर्थन किया था।

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