HindiNationalNews

अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला : दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपी क्रिश्चियन मिशेल की याचिका पर फैसला रखा सुरक्षित

नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी क्रिश्चियन मिशेल जेम्स की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। क्रिश्चियन मिशेल जेम्स की तरफ से जमानत शर्तों में संशोधन के लिए एक याचिका दायर की गई थी।

ईडी ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि अगर मिशेल कोई स्थानीय जमानती पेश नहीं करता है, तो भारत में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने का कोई तरीका नहीं है।

ईडी ने यह भी कहा कि मिशेल जमानत की कुछ शर्तों में संशोधन करना चाहता है, इसका मतलब है कि वह इस बात से सहमत है कि वह भारतीय सरकार की हिरासत में है। उन्होंने आगे कहा कि जब न्यायालय ने किसी व्यक्ति को स्थानीय जमानतदार से मुक्त कर दिया था, तब भी पासपोर्ट जमा करना जरूरी होता है।

इस पर मिशेल के वकील ने कहा कि क्रिश्चियन मिशेल जेम्स दुबई में 4 महीने से ज्यादा समय तक हिरासत में रखा गया था, अब तक वह 6 साल और 9 महीने की सजा भुगत चुका है।

मिशेल को दिल्ली हाई कोर्ट ने 4 मार्च 2025 को जमानत दी थी। इससे पहले, 18 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कथित घोटाले से संबंधित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दर्ज मामले में मिशेल को जमानत दी थी।

सीबीआई की चार्जशीट में क्रिश्चियन मिशेल, राजीव सक्सेना, अगस्ता वेस्टलैंड इंटरनेशनल के डायरेक्टर और वायुसेना के पूर्व प्रमुख एसपी त्यागी के रिश्तेदार संदीप त्यागी समेत 13 को आरोपी बनाया गया है।

अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलीकॉप्टर घोटाला यूपीए-2 शासन के दौर का भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला है, जिसमें कथित तौर पर बिचौलियों और राजनेताओं को भी रिश्वत दी गई थी, क्योंकि भारत ने इतालवी रक्षा विनिर्माण दिग्गज फिनमैकेनिका द्वारा अनुमानित लागत पर 12 वीवीआईपी हेलिकॉप्टर खरीदने का 3,600 करोड़ रुपये का सौदा किया था।

बता दें कि 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी जब पहली बार भारत के प्रधानमंत्री बने, उसके लगभग 8 महीने पहले, इटली की एक अदालत ने भारत से जुड़े सबसे बड़े रिश्वत घोटालों में एक हाई प्रोफाइल कंपनी के सीईओ, एक इतालवी रक्षा कंपनी के अध्यक्ष और दो बिचौलियों सहित चार लोगों को दोषी ठहराते हुए एक फैसला सुनाया था। लेकिन, इस मामले में वहां की अदालत में दर्ज अभियुक्तों के पूरे बयान, अपीलों का पूरा लेखा-जोखा और अदालत के अंतिम फैसले को 2013 में भारत के दबाव में तत्कालीन इतालवी सरकार द्वारा कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया था, क्योंकि इससे भारत के राजनीतिक और नौकरशाही प्रतिष्ठानों में भूचाल आ सकता था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *