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बंगाल सरकार ने एक बार फिर खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा, ओबीसी सूची विवाद पर जल्द सुनवाई की मांग की

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उसने सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों और सरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने वाली कई जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) दर्जा देने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की। राज्य सरकार का कहना है कि उनकी याचिका पर जल्द सुनवाई की जाए क्योंकि हाईकोर्ट के फैसले के चलते आरक्षण के तहत प्रवेश प्रक्रिया बाधित हो गई है।

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि इस मामले में दायर सभी याचिकाओं पर सुनवाई की आवश्यकता है क्योंकि ओबीसी प्रमाण पत्र जारी करने जैसी प्रक्रियाएं बाधित हो गई हैं।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि अधिकारी मेडिकल कॉलेजों सहित अन्य प्रवेशों में कोटा लाभ चाहने वालों को जाति प्रमाण पत्र जारी करने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि मामले दिन की सूची में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं, लेकिन उनके किसी फैसले पर पहुंचने की संभावना नहीं है। इस पर सीजेआई ने कहा कि मामले बोर्ड के समक्ष होंगे। पीठ द्वारा उनके आगे सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई पूरी होने के तुरंत बाद इन पर विचार किया जाएगा।

इससे पहले, 13 सितंबर को इस मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की गई थी। तब शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर सुनवाई करने पर पहले विचार करेगी।

गौरतलब है कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने बीती अगस्त में दिए अपने फैसले में बंगाल में ओबीसी सूची में 77 नई जातियों को शामिल करने के राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी। बंगाल सरकार ने हाईकोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तारीख तय की थी, लेकिन बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद आरक्षण से बाहर होने की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार दोपहर को इस संबंध में आदेश जारी करने की बात कही है।

  • क्या है पूरा विवाद?

पश्चिम बंगाल सरकार ने साल 2012 में बंगाल आरक्षण कानून के प्रावधान के तहत 77 जातियों को ओबीसी सूची में शामिल किया था। ओबीसी सूची में शामिल की गईं अधिकतर जातियां मुस्लिम समुदाय की थीं। बंगाल सरकार के इस फैसले को कुछ याचिकाकर्ताओं द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बंगाल सरकार के फैसले पर रोक लगा दी। इस दौरान अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा था कि पिछड़ी जातियों में 77 जातियों को शामिल करने का फैसला मुस्लिम समुदाय को ध्यान में रखकर लिया गया है।

कोर्ट ने कहा था कि ऐसा लगता है कि सरकार ने राजनीतिक कारणों और वोटबैंक के लिए 77 जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करने का फैसला किया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से ओबीसी सूची में शामिल की गईं जातियों के आर्थिक और सामाजिक आंकड़े भी पेश करने का निर्देश दिया था। साथ ही सरकारी नौकरियों में भी ओबीसी सूची में शामिल जातियों को प्रतिनिधित्व का आंकड़ा पेश करने को कहा था।

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