विरोध प्रदर्शन करने वाले डॉक्टरों की अनुपस्थिति नियमित करने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
नयी दिल्ली, 29 जनवरी : उच्चतम न्यायालय ने कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल डॉक्टरों की अनधिकृत अनुपस्थिति को नियमित करने का बुधवार को निर्देश दिया।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस मामले की स्वत: संज्ञान सुनवाई के दौरान नयी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) सहित सभी अस्पतालों को इस निर्देश का पालन करने का आदेश पारित किया।
इस दौरान पीठ के समक्ष डॉक्टरों के संगठन के अध्यक्ष ने दलील दी कि कुछ अस्पतालों ने डॉक्टरों की अनुपस्थिति को नियमित कर दिया, लेकिन कुछ अन्य अस्पतालों में ऐसा नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि दिल्ली का एम्स भी डॉक्टरों की अनुपस्थिति को नियमित नहीं करने वालों में शामिल है। एम्स ने उस अवधि को अनुपस्थिति की छुट्टी मानने का फैसला किया है।
पीठ ने पिछले साल 22 अगस्त को देशभर में प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों से काम पर लौटने को कहा था और निर्देश दिया था कि काम पर लौटने के बाद डॉक्टरों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
पीठ ने कहा, “हम यह स्पष्ट करना उचित समझते हैं कि यदि विरोध करने वाले कर्मचारी उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद काम पर आए हैं तो उनकी अनुपस्थिति को नियमित किया जाएगा और इसे ड्यूटी से अनुपस्थिति नहीं माना जाएगा। यह मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए जारी किया गया है और यह कोई मिसाल नहीं है।”
अधिवक्ता ने कहा कि यदि विरोध की अवधि को छुट्टी के रूप में माना जाता है, तो इससे कुछ मेडिकल स्नातकोत्तर छात्रों के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि चूंकि मामला गैर-विरोधात्मक है, इसलिए अस्पताल शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देशों का पालन करेंगे।
पीठ ने कहा, “पहले के आदेश में कहा गया था कि आदेश की तिथि तक विरोध करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कोई बलपूर्वक कदम नहीं उठाया जाएगा। इसके अनुसार कल्याणी और गोरखपुर जैसे कुछ एम्स और पीजीआई चंडीगढ़ ने अनुपस्थिति को नियमित कर दिया है। कुछ अन्य संस्थानों ने हालांंकि उक्त अवधि को ऐसे माना है जैसे डॉक्टर छुट्टी पर हों।”
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान मृतक (प्रशिक्षण महिला डॉक्टर) के माता-पिता की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने दोबारा जांच या फिलहाल अतिरिक्त जांच की मांग की थी। इसके बाद मृतका के माता-पिता ने याचिका वापस लेने का फैसला किया।
पीठ ने माता-पिता को प्रार्थना में संशोधन करने की स्वतंत्रता दी।
माता-पिता की याचिका के संबंध में श्री मेहता ने पीठ के समक्ष तर्क दिया कि इससे केवल दोषी को ही मदद मिलेगी।
पीठ ने माता-पिता से दलील में सावधानी बरतने को कहा, क्योंकि मामले में पहले से ही दोषसिद्धि आदेश है।
पीठ के समक्ष माता-पिता ने तर्क दिया है कि अतिरिक्त जांच की आवश्यकता है, क्योंकि संजय रॉय एकमात्र आरोपी नहीं है, और अन्य भी हैं, जिन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि रॉय को शरण देने वालों और बचाने वालों को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
अदालत कोलकाता के अस्पताल में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी।
बीस जनवरी को कोलकाता की निचली अदालत ने मामले में दोषी संजय रॉय को “मृत्यु होने तक आजीवन कारावास” की सजा सुनाई।