सड़क दुर्घटना के घायलों के लिए केंद्र सरकार 14 मार्च तक बनाए ‘कैशलेस’ उपचार योजना-उच्चतम न्यायालय
नयी दिल्ली 08 जनवरी : उच्चतम न्यायालय ने सड़क दुर्घटना में घायलों के लिए मोटर वाहन अधिनियम के तहत एक ‘कैशलेस’ उपचार की योजना 14 मार्च 2025 तक बनाने का बुधवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एस राजसीकरन द्वारा दायर एक मामले पर विचार करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें यह स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार को इस उद्देश्य के लिए कोई और समय नहीं दिया जाएगा।
पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि वह मोटर वाहन अधिनियम के तहत एक योजना जल्द से जल्द बनाए और हर हाल में 14 मार्च, 2025 तक यह योजना तैयार करे ताकि घायल सड़क दुर्घटना पीड़ितों को दुर्घटना के शुरुआती समय यानी ‘गोल्डन ऑवर’ में कैशलेस उपचार उपलब्ध कराया जा सके।
पीठ ने आगे कहा, “गोल्डन ऑवर में कैशलेस उपचार उपलब्ध कराने के लिए योजना बनाने के लिए धारा 162 में किए गए प्रावधान का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत जीवन के अधिकार को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना है। इसके अलावा, योजना बनाना केंद्र सरकार का वैधानिक दायित्व है।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि धारा 162 की उप-धारा (2) के तहत योजना बनाने के लिए केंद्र सरकार के पास उचित समय से अधिक समय उपलब्ध था। हालांकि अदालत ने कहा कि योजना अभी तक लागू नहीं हुई है। इस योजना को धारा 162 की उपधारा (1) के अनुसार बीमा कंपनियों द्वारा क्रियान्वित किया जाना है।
पीठ ने कहा, “एक बार जब योजना तैयार हो जाती है और इसका क्रियान्वयन शुरू हो जाता है तो यह कई घायल व्यक्तियों की जान बचाएगी जो केवल इसलिए चोट के कारण दम तोड़ देते हैं क्योंकि उन्हें तत्काल अपेक्षित चिकित्सा उपचार नहीं मिल पाता है।”
शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि योजना की एक प्रति 21 मार्च, 2025 को या उससे पहले रिकॉर्ड पर रखी जानी चाहिए साथ ही सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के संबंधित अधिकारी का हलफनामा भी होना चाहिए। हलफनामे में बताया गया हो कि योजना को किस तरह से क्रियान्वित किया जाएगा।
केंद्र सरकार ने अपनी ओर से सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा तैयार एक अवधारणा नोट मसौदा रिकॉर्ड पर रखा है।
हालांकि आवेदक के वकील ने अवधारणा नोट की सामग्री के बारे में कई चिंताएं व्यक्त कीं। उन्होंने बताया कि अवधारणा नोट में योजना के तहत अधिकतम 1,50,000 रुपये के भुगतान का प्रावधान है। उन्होंने दावा किया कि इस योजना के तहत केवल सात दिनों तक उपचार दिया जाएगा।
पीठ ने कहा, “हमें लगता है कि योजना बनाते समय इन दो चिंताओं कर ध्यान दिया जाना चाहिए। योजना ऐसी होनी चाहिए जो तत्काल चिकित्सा उपचार प्रदान करके जीवन बचाने के उद्देश्य को पूरा करे।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले में अगली सुनवाई 24 मार्च को करेगी।