झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के समापन समारोह में शामिल हुए मुख्यमंत्री
– बोले, मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक आदिवासी मुख्यमंत्री हूं
– सभी आदिवासी समुदायों को कनेक्ट करने का कर रहे प्रयास: हेमंत सोरेन
रांची, 10 अगस्त । मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक आदिवासी मुख्यमंत्री हूं। आज देश की सवा सौ करोड़ की आबादी में 13 करोड़ आदिवासी हैं। इन आदिवासियों की आईडेंटिटी बरकरार रखने के लिए मैं प्रतिबद्ध हूं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गुरुवार को झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के समापन समारोह के अवसर पर एक पत्रिका के साथ अदिवासियत: एक जीवन शैली को लेकर आयोजित परिचर्चा में अपने विचार रखे। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार सभी आदिवासी समुदायों को कनेक्ट करने का प्रयास कर रही है। इन्हें विकास से जोड़ा जा रहा है। सरकार में ऐसे कई निर्णय लिये हैं, जिनसे आदिवासियों को एक अलग आईडेंटिटी मिल रही है।
ट्राइबल आईडेंटिटी की तलाश अभी भी जारी
ट्राइबल आइडेंटिटी के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि ट्राइबल आइडेंटिटी की तलाश अभी भी जारी है। झारखंड राज्य की उत्पत्ति भी ट्राइबल आइडेंटिटी के साथ हुई है, लेकिन आज भी यह अपनी वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। एकीकृत बिहार और अलग झारखंड राज्य बनने के बाद कभी भी आदिवासी महोत्सव का आयोजन नहीं हुआ, लेकिन हमारी सरकार पिछले दो वर्षों से आदिवासी महोत्सव का आयोजन कर रही है। इसका मकसद आदिवासी पहचान को आगे बढ़ाना है। देश की सवा सौ की आबादी में 13 करोड़ आदिवासियों की पहचान मिटाने की साजिश चल रही है, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। आदिवासियों की आदिकाल से अलग पहचान रही है और आगे भी बनी रहेगी।
सरना अलग धर्म कोड के लिए संघर्ष जारी रहेगा
अलग सरना कोड के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि देश में आदिवासी समुदायों के लिए अलग पहचान मिलनी चाहिए। इतिहास में जो आदिवासियों की अलग जगह है, उसे क्यों समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है? इस पर हमें गंभीर मंथन करने की जरूरत है। अगर आदिवासियों को अलग पहचान दिलाना है तो उनके लिए कुछ तो अलग व्यवस्था होनी चाहिए। इसी कड़ी में हमारी सरकार ने सरना अलग धर्मकोड का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कर केंद्र सरकार को भेजा है। जिस तरह आदिवासी अपने वजूद के लिए लंबा संघर्ष करते रहे हैं, आगे भी आदिवासी सरना अलग धर्म कोड के लिए भी लंबा संघर्ष करने के लिए तैयार हैं और इसमें झारखंड के आदिवासी सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं।
जल जंगल और जमीन आदिवासियों की पहचान
आदिवासी को लेकर कंट्रोवर्सी पर पूछे गये सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासियों के लिए केंद्र और राज्य सरकार के अलग मंत्रालय और विभाग हैं, लेकिन आदिवासियों के नाम पर कॉन्ट्रोवर्सी पैदा हो रही है। कभी इसे वनवासी कहा जाता है तो कभी कुछ और। मेरा मानना है कि आदिवासी जल, जंगल और जमीन से जुड़े हैं और यही उनकी पहचान भी है।
पर्यावरण संरक्षण और क्लाइमेट चेंज को लेकर सरकार प्रतिबद्ध
आदिवासियों की पहचान को बरकरार रखते हुए जल-जंगल-जमीन और विकास के बीच संतुलन स्थापित करने के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर आज बड़ी-बड़ी संस्थाएं काम कर रही हैं। बड़े-बड़े होटलों में सेमिनार, संगोष्ठी और कार्यशाला जैसे कई कार्यक्रम होते हैं। लेकिन, क्लाइमेट चेंज पर लगाम नहीं लग रहा है। आखिर ऐसा क्यों? मेरा मानना है कि जो नीति निर्धारक होते हैं, वे क्लाइमेट चेंज को लेकर बहस तो करते हैं, लेकिन जब नीति निर्धारण की बारी आती है तो नियंत्रण करने की बजाय इसे बिगाड़ देते हैं। दूसरी ओर आदिवासियों का जल, जंगल और जमीन से गहरा नाता है। हमारी सरकार क्लाइमेट चेंज को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबद्ध है। महोत्सव के समापन समारोह में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की धर्मपत्नी कल्पना सोरेन, मंत्री आलमगीर आलम, मंत्री चम्पाई सोरेन, मंत्री जोबा माझी, मंत्री बादल, मंत्री हफीजुल हसन, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय, मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, पुलिस महानिदेशक अजय कुमार सिंह, प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव वंदना दादेल और मुख्यमंत्री के सचिव विनय कुमार चौबे समेत कई गणमान्य मौजूद रहे।