परमाणु पनडुब्बियों और प्रीडेटर ड्रोन के लिए 80 हजार करोड़ रुपये के सौदों को मंजूरी
- परमाणु हमलावर पनडुब्बियों से हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ेगी नौसेना की क्षमता – नौसेना को 15 और सेना-वायु सेना को मिलेंगे आठ-आठ अमेरिकी प्रीडेटर ड्रोन
नई दिल्ली। भारतीय नौसेना और रक्षा बलों की निगरानी क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने दो परमाणु पनडुब्बियों के स्वदेशी निर्माण और अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने के प्रमुख सौदों को मंजूरी दे दी है। भारतीय नौसेना को दो परमाणु ऊर्जा चालित हमलावर पनडुब्बियां मिलेंगी, जो हिंद महासागर क्षेत्र में नौसेना की क्षमताओं को कई गुना बढ़ाने में मदद करेंगी।
विशाखापत्तनम के शिप बिल्डिंग सेंटर में दो पनडुब्बियों के निर्माण का सौदा करीब 45,000 करोड़ रुपये का होगा और इसमें लार्सन एंड टूब्रो जैसी निजी क्षेत्र की कंपनियों की प्रमुख भागीदारी होगी। यह सौदा लंबे समय से अटका हुआ था और भारतीय नौसेना इस पर जोर दे रही थी, क्योंकि यह पानी के भीतर क्षमता की कमी को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण आवश्यकता थी। भारत की अपनी पनडुब्बी योजनाओं के हिस्से के रूप में लंबे समय में ऐसी छह नौकाएं रखने की योजना है। महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वेसल परियोजना के तहत बनने जा रही ये नौकाएं अरिहंत श्रेणी के तहत बनाई जा रही पांच परमाणु पनडुब्बियों से अलग हैं।
सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति से मंजूर किया गया दूसरा बड़ा सौदा विदेशी सैन्य बिक्री अनुबंध के तहत अमेरिकी जनरल एटॉमिक्स से 31 प्रीडेटर ड्रोन के अधिग्रहण के लिए है। इस सौदे को 31 अक्टूबर से पहले मंजूरी मिलनी थी, क्योंकि अमेरिकी प्रस्ताव की वैधता उस समय तक थी लेकिन अब इस पर अगले कुछ दिनों में ही हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। अनुबंध के अनुसार रक्षा बलों को सौदे पर हस्ताक्षर करने के चार साल बाद ड्रोन मिलना शुरू हो जाएंगे। भारतीय नौसेना को 31 में से 15 ड्रोन मिलेंगे, जबकि सेना और भारतीय वायु सेना को आठ-आठ ड्रोन मिलेंगे, जिनके शांतिकालीन निगरानी में गेम चेंजर साबित होने की उम्मीद है।