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अपराध की श्रेणी से बाहर करने पर कोई यह सोच सकता है कि समलैंगिक स्थिर विवाह जैसे संबंधों में होंगे: सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली, 20 अप्रैल : उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि भारत संवैधानिक और सामाजिक रूप से भी समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद ही उस मध्यवर्ती चरण में पहुंच गया है जहां कोई यह सोच सकता है कि समलैंगिक लोग स्थिर विवाह जैसे संबंधों में होंगे।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की संविधान पीठ ने आज कहा कि पिछले 69 वर्षों में हमारा कानून वास्तव में विकसित हुआ है।
पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ”जब आप समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हैं, तो आप यह भी महसूस करते हैं कि यह अचानक बना संबंध नहीं हैं, ये स्थिर संबंध भी हैं।”
पीठ ने कहा, ”समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके हमने न केवल समान लिंग के वयस्कों के बीच सहमति से संबंधों को मान्यता दी है… हमने अप्रत्यक्ष रूप से भी मान्यता दी है। इसलिए तथ्य यह है कि जो लोग समान लिंग के हैं, वे स्थिर संबंधों में होंगे”
उन्होंने सुनवाई के दौरान विशेष विवाह अधिनियम के उन प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई, जिसके तहत सार्वजनिक आपत्तियों को आमंत्रित करने के लिए जोड़े को शादी से पहले 30 दिन की अग्रिम सूचना देने का प्रावधान है।
शीर्ष अदालत ने लगातार तीसरे दिन चली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं- ए एम सिंघवी, के वी विश्वनाथन, राजू रामचंद्रन और अन्य की दलीलें सुनीं।
बीरेंद्र राम
वार्ता

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