सदनों में सहमति-असहमति पर मर्यादित बहस से लोकतंत्र मजबूत होता है :बिरला
एजल (मिज़ोरम) 27 सितंबर : लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधायी कार्यों में जनता की आशाओं और अपेक्षाओं को प्रमुखता देने पर जोर देते हुए कहा है कि सदनों में सहमति-असहमति पर मर्यादित बहस से लोकतंत्र मजबूत होता है।
श्री बिरला ने शुक्रवार को यहां मिज़ोरम विधान सभा में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत क्षेत्र जोन -3 के 21वें सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में यह बात कही। इस अवसर पर मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा, राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश, नागालैंड विधानसभा के अध्यक्ष और सीपीए इंडिया क्षेत्र, जोन – 3 के अध्यक्ष शेरिंगेन लोंगकुमेर, मिजोरम विधानसभा के अध्यक्ष लालबियाकजामा और मिजोरम विधानसभा के उपाध्यक्ष लालफामकिमा उपस्थित रहे। मिजोरम विधानसभा के सदस्य और अन्य गणमान्य व्यक्ति इस सम्मेलन में शामिल हुए।
सम्मलेन के मुख्य विषय, ‘लोकतान्त्रिक शुचिता, पारदर्शिता, जवाबदेही और लोकतंत्र से परिणाम’ पर बोलते हुए श्री बिरला ने कहा कि विधायी शुचिता और पारदर्शिता लोकतंत्र को सशक्त करने में सहायक सिद्ध होती है। उन्होंने कहा कि विधायिका की शुचिता बनाए रखना पीठासीन अधिकारियों का विशेष दायित्व है और इस दिशा में उन्हें सदैव सजग रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि सदस्यों के गरिमामयी आचरण से पारदर्शिता सुनिश्चित होती है। विधायी कार्य में जनता की आशाओं और अपेक्षाओं को प्रमुखता मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि लोकतन्त्र तभी सशक्त होता है, जब सदन सहमति – असहमति के बावजूद सामूहिक रूप से, गरिमा और शालीनता से लोकहित के विषयों पर चर्चा और संवाद करता हैं।
इस बात पर जोर देते हुए कि विधानमंडल आम लोगों से संबंधित मुद्दों पर उपयोगी चर्चा के लिए मंच हैं, श्री बिरला ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को विधानमंडल के मंच का उपयोग लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे नागरिकों का विधायी संस्थाओं पर विश्वास बढ़ेगा, विधि निर्माण की गुणवत्ता बढ़ेगी और और विधायी संस्थाओं की गरिमा भी बढ़ेगी।
विधायिका के कार्य क्षेत्र का उल्लेख करते हुए श्री बिरला ने कहा कि विधायिका को विधि और नीति निर्माण के साथ साथ शासन की जवाबदेही पर जोर देना चाहिए जिससे आम नागरिकों के जीवन में सामाजिक आर्थिक परिवर्तन लाया जा सके ।
विधानमंडलों की कार्यकुशलता और प्रभाव में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए श्री बिरला ने कहा कि विधायी कार्य में डिजिटल प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने विचार व्यक्त किया कि इन संस्थानों में डिजिटल तकनीक का प्रयोग विधायी प्रक्रिया में जन भागीदारी को बढ़ता है, शोध और नवान्वेषण को बढ़ता है और संसदीय समिति प्रणाली को और मजबूत करता है जिससे विधायिका जन कल्याण का सर्वोत्तम माध्यम बनती है । उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि विधायकों को प्रशिक्षित किया जाए, सदन में जनप्रतिनिधियों की भागीदारी बढे और विकास का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच सके।
इस अवसर पर उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत की भी सराहना की। पूर्वोत्तर क्षेत्र की विधान सभाओं द्वारा पारित कई जनकल्याणकारी कानूनों के सन्दर्भ में श्री बिरला ने कहा कि इन संस्थाओं ने स्थानीय विषयों पर टेक्नॉलजी का प्रयोग करके सदनों को जनोन्मुखी बनाया है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में आए आमूलचूल परिवर्तन और विकास के सन्दर्भ में श्री बिरला ने कहा कि हाल के वर्षों में भौतिक, डिजिटल और सोशल कनेक्टिविटी बढ़ाने पर किए गए कार्यों ने इस क्षेत्र को एक सीमांत क्षेत्र से प्रथम क्षेत्र बनाया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत का संकल्प को पूरा करने में पूर्वोत्तर भारत की बड़ी भूमिका है और इस लक्ष्य की प्राप्ति में पूर्वोत्तर क्षेत्र की विधायिकाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।
इस अवसर पर श्री बिरला ने मिजोरम विधान सभा पुस्तकालय के अभिलेख अनुभाग का उद्घाटन भी किया।