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कमलेश सिंह के भाजपा में शामिल होने से कार्यकर्ताओं में असंतोष, सामूहिक इस्तीफा देंगे सातों मंडल अध्यक्ष

पलामू, 3 अक्टूबर । झारखंड की राजनीति एक बार फिर गरमाती नजर आ रही है। हुसैनाबाद से एनसीपी के विधायक कमलेश कुमार सिंह के भाजपा में शामिल होने की अटकलों ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। जानकाराें के अनुसार, अब चार अक्टूबर को कमलेश सिंह की भाजपा में औपचारिक एंट्री हो सकती है। हालांकि, इस खबर ने भाजपा के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष की लहर पैदा कर दी है। सवाल उठ रहा है कि क्या भाजपा अपने समर्पित कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए एक बाहरी और दागी नेता को टिकट देगी?

गुरुवार को हुसैनाबाद भाजपा कार्यालय में विधानसभा क्षेत्र के सात मंडल अध्यक्ष एवं लगभग तीन सौ से अधिक बूथ कमिटी के अध्यक्षों ने एक बैठक कर एनसीपी के विधायक कमलेश सिंह के पार्टी में शामिल किए जाने का जोरदार विरोध किया।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिस विधायक के गलत नीतियों व कार्यों का विरोध वे करते आये हैं,उन्हें ही अपने गले का हार नहीं बना सकते हैं। मौके पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंडल अध्यक्षों ने कहा कि अगर पार्टी कमलेश सिंह को शामिल कराकर उन्हें प्रत्याशी बनाएगी तो सभी कार्यकर्ता सामूहिक रूप से इस्तीफा दे देंगे। बीजेपी कार्यकर्ताओं की मांग है कि भाजपा के समर्पित कैडरों में से ही किसी को पार्टी का प्रत्याशी बनाया जाये, अन्यथा वर्ष 2000 के चुनाव वाला हाल हो जायेगा जिसमें चुनाव के ऐन मौके पर शामिल हुए जनता दल के विधायक अवधेश बाबू को बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया था जिनकी जमानत जप्त हो गयी थी।

भाजपा कार्यकर्ताओं में नाराजगी, क्या पार्टी अपने सिद्धांतों से भटकेगी?

भाजपा हमेशा से खुद को सिद्धांतवादी और कार्यकर्ताओं की पार्टी के रूप में प्रस्तुत करती आई है। पार्टी का दावा रहा है कि यहां एक साधारण कार्यकर्ता भी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बन सकता है। लेकिन हुसैनाबाद के मामले में, भाजपा पर यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर उसे दूसरे दलों के नेताओं को आयात करने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? क्या पार्टी अपने समर्पित कार्यकर्ताओं पर भरोसा खो चुकी है? हुसैनाबाद के भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच यह चर्चा गर्म है कि यदि पार्टी ने कमलेश सिंह को टिकट दिया, तो इससे उनकी मेहनत और योगदान का क्या मोल रह जाएगा? पार्टी ने पहले भी कई बार बाहरी नेताओं को टिकट देकर अपने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया है, जैसा कि पलामू में देखने को मिला था, जहां भाजपा के पाँचों विधायक मूल रूप से दूसरी पार्टियों से आए हुए हैं। इससे यह प्रतीत होता है कि पार्टी की रायशुमारी की प्रक्रिया महज दिखावा है, जिसमें कार्यकर्ताओं की राय को नजरअंदाज किया जाता है।

कमलेश सिंह का राजनीतिक इतिहासः “जिधर फायदा, उधर साथ”

कमलेश सिंह का राजनीतिक सफर कई बार उनके फायदे के हिसाब से बदलता रहा है। उनके ऊपर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे हैं, जिनमें से कुछ मामले सीबीआई और ईडी अदालतों में भी चल रहे हैं। उनके खिलाफ आरोप तय होने के बावजूद, अब वे भाजपा के मंच से भ्रष्टाचार के खिलाफ भाषण देंगे, यह भाजपा के सिद्धांतों पर सवाल खड़ा करता है। कमलेश सिंह का राजनीतिक रुख हमेशा से ‘जिधर देखी तवा परात, उधर बिताई सारी रात’ की तर्ज पर रहा है। 2019 के चुनाव में उन्होंने धर्मनिरपेक्षता का चादर ओढ़ा, और अब भाजपा में रामनाम की चादर ओढ़कर चुनावी बैतरणी पार करने की कोशिश में हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अगर भाजपा ने उन्हें हुसैनाबाद से टिकट नहीं दिया, तो क्या वे फिर से एनसीपी या किसी अन्य दल का रुख नहीं करेंगे?

भाजपा के सामने इस वक्त दोहरी चुनौती है। एक तरफ उसे चुनावी जीत की चिंता है, जिसके लिए उसे दूसरी पार्टियों से आए हुए नेताओं का सहारा लेना पड़ रहा है। दूसरी तरफ, उसे अपने कार्यकर्ताओं के असंतोष का भी सामना करना पड़ रहा है, जो पार्टी के सिद्धांतों और स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं करना चाहते। हुसैनाबाद के स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता पहले से ही नाराज हैं कि पार्टी ने बाहरी नेता को तवज्जो दी है, जबकि वे खुद सालों से पार्टी के लिए मेहनत कर रहे हैं।

विपक्षी दलों द्वारा भाजपा पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि पार्टी एक “वाशिंग मशीन” की तरह काम करती है, जिसमें दागी नेता शामिल होकर स्वच्छ और ईमानदार बन जाते हैं। कमलेश सिंह का भाजपा में शामिल होना और उनके भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद पार्टी का उन्हें टिकट देना(यदि मिल गया तो) विपक्ष के इस आरोप को और मजबूती प्रदान करेगा। हुसैनाबाद के भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच यह बात भी चल रही है कि “राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप धोते-धोते”। हुसैनाबाद में जब पार्टी में ही दर्जनभर संभावित प्रत्याशी हैं तो फिर बीजेपी दागी नेताओं को गले लगाकर क्या संदेश देना चाहती है। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव में जो हाल सीता-गीता का हुआ,उसकी पुनरावृत्ति न हो जाये। हुसैनाबाद का तो राजनीतिक इतिहास रहा है कि यहां दलबदलुओं की जमानत जब्त होती रही है।

हुसैनाबाद क्षेत्र में एक चर्चा के अनुसार, कमलेश सिंह के भाजपा में शामिल होने के बावजूद उनके पुत्र सूर्या सोनल सिंह एनसीपी में बने रहेंगे। वैसे श्री सिंह या उनके पुत्र ने इस बात की पुष्टि नहीं की है। यह भी एक बड़ा सवाल है कि यदि भाजपा ने कमलेश सिंह को हुसैनाबाद से टिकट नहीं दिया, तो क्या वे अपने बेटे को एनसीपी के टिकट पर या निर्दलीय मैदान में उतारेंगे? इससे चुनावी समीकरण पूरी तरह से बदल सकते हैं। कमलेश सिंह का राजनीतिक इतिहास यह बताता है कि वे हमेशा खुद के फायदे के लिए दांव खेलते रहे हैं और इस बार भी वे चुनाव के अंतिम समय में कोई नया पैंतरा अपना सकते हैं।इन सभी कयासों एवं चर्चाओं पर अब तीन अक्टूबर की बजाय चार अक्टूबर को विराम लग जायेगा।सोशल मीडिया की खबरों की मानें तो कमलेश सिंह के बीजेपी में एंट्री को लेकर पार्टी के प्रदेश नेतृत्व में भी किचकिच हो रही है।

हुसैनाबाद के आधा दर्जन संभावित प्रत्याशी रांची में प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह से मिले तो उन्होंने कहा कि एनसीपी विधायक के भाजपा में शामिल किए जाने की सूचना उन्हें नहीं है। इससे यह तस्वीर साफ लगती है कि चुनाव प्रभारी हिमंत विश्वा सरमा का निर्णय आलाकमान के इशारे पर प्रदेश के पार्टी नेताओं को अंधेरे में रखकर लिया जा रहा है।

भाजपा के लिए हुसैनाबाद की सीट अब एक यक्ष प्रश्न बन गई है। क्या पार्टी कमलेश सिंह को टिकट देकर अपने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करेगी या फिर पार्टी अपने मूल सिद्धांतों पर टिके रहकर किसी समर्पित कार्यकर्ता को मौका देगी? यदि कमलेश सिंह भाजपा के उम्मीदवार बनते हैं, तो देखना होगा कि पार्टी के समर्पित और जुझारू कार्यकर्ता उनका समर्थन करेंगे या बगावत का रास्ता अपनाएंगे। चुनाव के नतीजे और प्रत्याशी की घोषणा के बाद ही इन सवालों का जवाब मिल पाएगा। लेकिन फिलहाल, हुसैनाबाद की राजनीति में उथल-पुथल का दौर जारी है और आने वाले दिनों में यह देखने लायक होगा कि भाजपा किस ओर रुख करती है और इससे पार्टी और स्थानीय राजनीति पर क्या असर पड़ता है।फिलहाल तो श्री सिंह को बीजेपी में शामिल कराया जा रहा है। टिकट की बात तो अभी दूर है और राजनीति के मामले में कोई लिखित समझौता तो होता नहीं है। चूंकि किसी भी पार्टी में सिटिंग दिग्गज सांसदों और विधायकों का भी टिकट कन्फर्म नहीं होता है। सूत्रों के अनुसार पलामू में पार्टी के पांच विधायक हैं जिनमें तीन का टिकट कटना तय माना जा रहा है। फिर इस कारण किसी को पार्टी में शामिल करने पर हाय-तौबा मचाना राजनीतिक अपरिपक्वता का संकेत हो सकता है।

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