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बिहार में दीये के बाजार सजे, मौसम ने की कुम्हारों के ‘चाक’ की रफ्तार धीमी

पटना। दीपावली को लेकर बिहार की राजधानी पटना समेत अन्य शहरों और कस्बों में बाजार की रौनक बढ़ गई है। इस बीच सड़कों के किनारे दीये के बाजार सज गए हैं, हालांकि मौसम के बदलाव के कारण कुम्हारों के चाक की गति धीमी जरूर पड़ गई है।

वैसे, दीया और मिट्टी से बने गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति बनाने वालों का मानना है कि इस वर्ष मिट्टी से बने दीये और खिलौनों की मांग बढ़ी है। दीपावली प्रकाश का पर्व है और इस त्योहार पर मिट्टी के दीपक का विशेष महत्व होता है। हर साल दीपावली पर घरों को सजाने के लिए मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं, जो न केवल घरों को रोशन करते हैं, बल्कि पूजा-पाठ के लिए भी जरूरी माने जाते हैं। इसके कारण हाल के दिनों में मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ी है।

आशियाना बाजार के कुणाल पंडित कहते हैं कि इस साल मिट्टी के दीयों की मांग दुर्गा पूजा के बाद से ही बढ़ी है। वे बताते हैं कि परंपरागत दीयों के अलावा डिजाइनर दीयों की मांग भी इस दीपावली में हो रही है, लेकिन अधिकांश लोग परंपरागत दीयों की ही मांग कर रहे हैं। चक्रवाती तूफान ‘दाना’ के कारण मौसम में आए बदलाव के कारण कुम्हारों की परेशानियां जरूर बढ़ी हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि एक दो दिनों में मौसम साफ हो जाएगा। कुम्हारों का कहना है कि मौसम में आए परिवर्तन के कारण उनके बनाए गए दीये ठीक ढंग से सूख नहीं पाए हैं। वैसे, ये कुम्हार दीपावली की तैयारी में जोरशोर से जुटे हैं। इन्हें सुकून है कि वे अपनी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

फुलवारीशरीफ के रामेश्वर पंडित बताते हैं कि वे करीब 20 -22 सालों से मिट्टी के दीये और बर्तन बना रहे हैं। पहले वे चाक पर काम करते थे, लेकिन अब बिजली के मशीन से दीये तैयार हो रहे हैं। मिट्टी और ईंधन की कीमत बढ़ने से दीयों की कीमत भी बढ़ गई है। स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाएं भी मिट्टी के दीये जलाने की अपील कर रही हैं।

माना जाता है कि मिट्टी का दीया जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और नकारात्मक ऊर्जा घर से बाहर हो जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दीपावली के पर्व पर मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा वर्षों से रही है।

–आईएएनएस

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