परमात्मा सबके साथ है, पर हम उसके साथ कितने हैं?
पं. विजयशंकर मेहता
परमात्मा सबके भीतर विराजित है। फर्क यह है कि परमात्मा तो सबके साथ है, लेकिन हम परमात्मा के साथ कितने हैं? जो अच्छे होते हैं, वे परमात्मा के साथ होते हैं। और जो बुरे होते हैं, परमात्मा तो उनके साथ होता है, पर वो परमात्मा के साथ नहीं होते।
परमात्मा का एहसास करने के लिए जो सरल तरीका अच्छे लोग अपनाते हैं, वो है अपनी आत्मा तक जाना। परमात्मा से जुड़ने और आत्मा तक जाने के जो भी तरीके हैं, उनमें से एक है- ईश्वर की कथा सुनते रहिए। आपके श्रवण का जो भी ढंग हो, पर चौबीस घंटे में कुछ ना कुछ भगवान का नाम सुनिए, कथा सुनिए।
तुलसीदास जी ने लिखा है- ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती.. जिन्हें रघुनाथ जी की कथा नहीं सुहाती, वे मूर्ख जीव तो अपनी आत्मा की हत्या करने वाले हैं। जरूरी नहीं कि पण्डाल में बैठकर किसी महात्मा की कथा ही सुनें। ईश्वर की कथा सुनने का अर्थ है जीवन में पॉजिटिविटी लाना। वो जिस तरीके से जीवन में आए, कर जाइए।