NationalHindiNewsPolitics

खेलों के प्रति दृष्टिकोण में ऐतिहासिक परिवर्तन: धनखड़

नयी दिल्ली 19 नवंबर : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने डिजिटल गेम में लिप्त युवाओं पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए मंगलवार को कहा कि खेलकूद की दुनिया में भारत में ऐतिहासिक परिवर्तन हुआ है।

श्री धनखड़ ने यहां त्यागराज स्टेडियम में ‘स्पेशल ओलंपिक्स एशिया पैसिफिक बोक्स और बाउलिंग प्रतियोगिता’ के उद्घाटन समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि दिव्यांगों के लिए मौजूदा परिवेश में उनकी ऊर्जा और क्षमता को उजागर करने, उनके सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने का अवसर हैं ।

श्री धनखड़ ने कहा,“हमारी सभ्यता दुनिया में अद्वितीय है। यह 5000 साल से भी पुरानी है। इसमें हम दिव्यांगजन में दिव्यता, उत्कृष्टता और आत्मिकता देखते हैं।”

देश के युवाओं की डिजिटल ग्रस्तता पर चिंता व्यक्त करते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “ यह वास्तव में गंभीर है। यह दिन-ब-दिन चिंताजनक होता जा रहा है। आज के तेज़-तर्रार डिजिटल दुनिया में हमारे युवा और बच्चे छोटे प्लास्टिक स्क्रीन, मोबाइल फोन, से लगातार घिरे रहते हैं। वे असली खेल के मैदानों से दूर डिजिटल खेलकूद के मैदानों में धकेल दिए जाते हैं। मैं हर माता-पिता से विशेष रूप से अनुरोध करूंगा कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके बच्चे इस छोटे प्लास्टिक स्क्रीन के कारण असली खेलकूद के मैदान से वंचित न हों।”

उपराष्ट्रपति ने कहा कि इतिहास एक प्रमाण है कि विकलांगता ने मानव साहस को नहीं रोका। मानव साहस को रोकना असंभव है। मानव साहस किसी भी स्थिति में, चाहे जैसी भी चुनौती हो, अपने आप को प्रकट कर ही लेता है। यह अपराजेय है।

खेलों का जीवन में महत्व पर जोर देते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “खेल एक ऐसी भाषा है जो किसी भी बोली से परे है। खेल एक ऐसी भाषा है जो शब्दकोश से परे है। खेल एक सार्वभौमिक भाषा है। खेल सभी बाधाओं को तोड़ता है। मानवता द्वारा परिभाषित सभी सीमाओं को खेल पार करता है। खेल अद्वितीय रूप से मानव मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है, और जब यह खेल विशेष रूप से सक्षम बच्चों, लड़कों, लड़कियों और बुजुर्गों के बारे में होता है, तो यह आशा की एक नई किरण उत्पन्न करता है।”

देश में खेलों के प्रति दृष्टिकोण में आए परिवर्तन पर विचार करते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “हम सभी महसूस कर सकते हैं कि भारत में खेलों के प्रति दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव आया है। पहले खेल को लेकर कोई उत्साह नहीं था। अब समय बदल चुका है।” उन्होंने कहा कि अब खेल को सिर्फ एक अतिरिक्त गतिविधि नहीं माना जाता। यह शिक्षा और जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो चरित्र निर्माण का एक साधन है, एकता को बढ़ावा देता है और हमें राष्ट्रीय गर्व से भर देता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *