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पर्यटन व राजस्व हित में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में हो सकती है शराब की बिक्री, खुल सकते हैं बार

रांची। 21 मई को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की होनेवाली बैठक में वैसे क्षेत्रों जहां 50 प्रतिशत से अधिक आबादी आदिवासी की हो तथा जिसे सरकार ने अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राजकीय तथा स्थानीय महत्व का पर्यटन क्षेत्र घोषित किया है (धार्मिक मान्यता के पर्यटन क्षेत्र को छोड़कर), उनमें पर्यटन एवं राजस्व हित में आफ प्रकृति के खुदरा उत्पाद (शराब) दुकानों की बंदोबस्ती की स्वीकृति मिल सकती है। साथ ही इन क्षेत्रों में होटल, रेस्तरां और बार खोलने की स्वीकृति दी जा सकती है।

इस बैठक में झारखंड उत्पाद (मदिरा की खुदरा बिक्री के लिए दुकानों की बंदोबस्वती एवं संचालन) नियमावली, 2025 तथा झारखंड उत्पाद होटल, रेस्तरां, बार एवं क्लब (अनुज्ञापन एवं संचालन) संशोधन नियमावली, 2025 के उक्त संबंधित प्रविधानों पर चर्चा होगी। मेल बिल पर भी होगी चर्चाइस बैठक में मेसा बिल अर्थात द प्रोविजन आफ द म्यूनिसिपिलिटी (एक्सटेंशन टू द शेड्यूल एरिया), 2001 में संशोधन पर भी चर्चा होगी। केंद्र सरकार ने इस संशोधन पर राज्य सरकार का मंतव्य मांगा है।

टीएसी की बैठक में इसपर सहमति नहीं बन सकती है, क्योंकि संशोधन से अधिसूचित क्षेत्रों में नगरपालिका स्टैंडिंग कमेटी की अनुशंसा लागू करने की अनिवार्यता खत्म हो जाएगी।मूल विधेयक में यह स्टैंडिंग कमेटी जनजातीय सदस्य की अध्यक्षता में गठित किए जाने का प्रविधान है। एजेंडा में प्रस्तावित पेसा नियमावली को सम्मिलित नहीं किया है। हालांकि अन्यान्य के रूप में अध्यक्ष की अनुमति पर इसपर भी चर्चा हो सकती है।

टीएसी की होनेवाली बैठक में एक एजेंडा पश्चिमी सिंहभूम में खरकई नदी पर प्रस्तावित ईचा डैम के निर्माण को पुर्नबहाल करने की स्वीकृति मिल सकती है। पूर्व में सुवर्णरेखा बहुद्देश्यीय परियोजना के तहत निर्मित होनेवाले इस डैम के निर्माण पर चंपई सोरेन की अध्यक्षता वाली कमेटी की अनुशंसा पर रोक लगा दी गई थी। अब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में इसका निर्माण जारी रखने पर सहमति टीएसी में बन सकती है।

इसके निर्माण पर अबतक 1397.63 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।कहा जा रहा है कि इसके निर्माण नहीं होने से 97,256 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता का सृजन से वंचित होना पड़ सकता है। साथ ही डैम का निर्माण नहीं किया जाना वर्ष 1978 में तत्कालीन बिहार (अब झारखंड), बंगाल तथा ओडिशा के बीच हुए त्रिस्तरीय समझौता का उल्लंघन भी होगा।

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