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झारखंड विधानसभा चुनाव: हेमंत बनाम चंपाई सोरेन, किसका पलड़ा भारी? जानें क्या कहता है जनता का मूड

Insight Online News

रांची: झारखंड में इस साल होने वाला विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है। इस बार मुकाबला एनडीए और ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच है। इस चुनाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन अपने-अपने ‘विक्टिम कार्ड’ का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन सवाल ये है कि जनता किसके साथ है? दरअसल 2019 के चुनाव से अब स्थिति काफी बदल गई है। एनडीए में भाजपा, आजसू, जदयू और एनसीपी (अजित पवार गुट) शामिल हैं। वहीं, ‘इंडिया’ गठबंधन में झामुमो, कांग्रेस, राजद और भाकपा माले हैं। हालांकि, अभी सीट बंटवारे पर अंतिम फैसला होना बाकी है।

इस चुनावी माहौल में सबसे दिलचस्प बात ये है कि मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, दोनों ही खुद को पीड़ित बताकर लोगों की सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन जनता के बीच इनके ‘विक्टिम कार्ड’ को लेकर क्या चर्चा है?

  • चंपाई सोरेन के पैतृक गांव के लोगों का क्या कहना?

हाल ही में टीम एनबीटी.कॉम ने चंपाई सोरेन के पैतृक गांव जिलिंगगोड़ा का दौरा किया। उन्होंने पाया कि वहां लोग हेमंत और चंपाई, दोनों के ‘विक्टिम कार्ड’ पर बातचीत कर रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री पद से नहीं हटाना चाहिए था। वे कहते हैं, ‘चुनाव तक वह सीएम बने रहते तो क्या हो जाता।’

वहीं, दूसरे गांवों में लोग इस मामले को अलग नजरिये से देख रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री तो हेमंत सोरेन ने ही बनाया था। कुल मिलाकर, अभी तक जनता का रुख साफ नहीं है कि वे किसके साथ हैं। चुनाव के दिन ही असली तस्वीर साफ हो पाएगी।

हालांकि, एक बात तो तय है कि भाजपा में शामिल होकर चंपाई सोरेन ने अपनी सरायकेला सीट को काफी हद तक सुरक्षित कर लिया है। लेकिन कोल्हान की अन्य सीटों पर उनका कितना प्रभाव पड़ेगा, यह कहना अभी मुश्किल है।

हेमंत सोरेन की बात करें तो उन्हें पांच महीने तक जेल में रखे जाने की घटना की जमीनी स्तर पर कोई खास चर्चा नहीं है। हालांकि, ‘मनरेगा मजदूरों के लिए सम्मान योजना’ उनके लिए एक फायदेमंद कदम साबित हो सकती है, खासकर आदिवासी महिलाओं के बीच। झारखंड में आदिवासी समाज महिला प्रधान है और परिवार की बागडोर महिलाओं के हाथों में होती है। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि इस योजना के तहत मिलने वाली एक हजार रुपये की सम्मान राशि ने हेमंत सोरेन को मजबूती दी है।

  • चंपाई और हेमंत सोरेन के ‘विक्टिम कार्ड’ में क्या फर्क?

वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क का मानना है कि दोनों नेताओं के पास ‘विक्टिम कार्ड’ है, लेकिन दोनों के ‘कार्ड’ में फर्क है। हेमंत सोरेन का ‘विक्टिम कार्ड’ भाजपा के खिलाफ है। उनका कहना है कि उन्हें बेवजह पांच महीने तक जेल में रखा गया और उनकी सरकार गिराने की साजिश की जाती रही।

दूसरी ओर, चंपाई सोरेन का ‘विक्टिम कार्ड’ अपमान से जुड़ा है। बिना नाम लिए वे हेमंत सोरेन पर ही निशाना साध रहे हैं। चंपाई सोरेन आंदोलन की उपज हैं और आदिवासी समाज में उनका प्रभाव है। कोल्हान में उनकी सभाओं में जिस तरह से भीड़ जुट रही है, उससे पता चलता है कि उनका ‘विक्टिम कार्ड’ काम कर रहा है।

  • कोल्हान की सीटों पर असर डाल सकते हैं चंपाई सोरेन

ऐसा माना जा रहा है कि चंपाई सोरेन कोल्हान की तीन से चार सीटों पर असर डाल सकते हैं। साथ ही, संथाल में भी वे सत्ताधारी दलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। शायद यही वजह है कि झामुमो उन पर सीधा हमला नहीं कर पा रहा है।

चंपाई सोरेन भी आदिवासी समाज में ‘गुरुजी’ की पार्टी के प्रति लोगों की भावनाओं को अच्छी तरह से समझते हैं। इसलिए, वे आदिवासियों की बदहाली के लिए कांग्रेस पर हमला बोल रहे हैं। जाहिर है कि कांग्रेस को नुकसान का मतलब है भाजपा को फायदा। चुनाव प्रचार के दौरान एक खास तरह का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है।

हालांकि, हेमंत सोरेन इस मामले में आगे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर चंपाई सोरेन मजबूत दिख रहे हैं। आदिवासी समाज में अलग-थलग पड़ चुकी भाजपा उन्हें तुरुप के पत्ते के रूप में देख रही है। कुल मिलाकर, झारखंड विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है।

साभार : नवभारत टाइम्स

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