झारखंडः जयराम-चंपाई और जगरनाथ महतो- जानें ‘टाइगर’ उपनाम की कहानी, क्या विधानसभा चुनाव में चलेगा ये दमदार नाम?
रांचीः झारखंड राज्य का नामकरण जंगलों की बहुलता के कारण ही हुआ है। भाजपा इसे वनांचल नाम देना चाहती थी। जनभावनाएं झारखंड के पक्ष में थीं। इसलिए झारखंड नाम ही बिहार से अलग हुए इस राज्य का रखना पड़ा। खैर, यह बताना अपना मकसद नहीं है। अपने तो यह कहना चाहते हैं कि जंगल में बाघ भी रहते हैं। इस थोड़ा गंभीर और दमदार बनाने के लिए बाघ के लिए प्रयुक्त होने वाले टाइगर शब्द का लोग इस्तेमाल करते हैं।
वन्य प्रदेश झारखंड बना तो लोगों ने दमदार लोगों, खासकर कुछ बड़े नेताओं को टाइगर कह कर बुलाना शुरू किया। कोल्हान के टाइगर चंपई सोरेन बन गए। बोकारो जिले में जगन्नाथ महतो के नाम के साथ लोगों ने टाइगर लगाना शुरू किया। अब तो धन्यवाद जिले से एक और टाइगर ने अवतार ले लिया है। झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति (जेबीकेएसएस) के नवोदित नेता जयराम महतो को लोगों ने टाइगर बना दिया है।
- टाइगर हैं चंपाई सोरेन
चंपाई सोरेन अपने को शिबू सोरेन के विश्वस्त और बेहद करीबी बताते हैं। हालांकि उन्होंने शिबू सोरेन के नेतृत्व वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का साथ अब छोड़ दिया है। उम्र के सात दशक पूरे होने के करीब पहुंचे चंपाई को अब जेएमएम नहीं सुहाता। उन्हें पहले भले शिबू सोरेन के परिवार से कोई गिला-शिकवा नहीं था।
अब तो वे अपने अपमान की वजह उसी परिवार को मानते हैं। हेमंत सोरेन ने जेल जाते वक्त उन्हें सीएम बनाया था। बाहर आते ही उन्होंने सूबे की सल्तनत चंपई से वापस ले ली। यही चंपाई सोरेन को सालता है और सीएम पद से हटाए जाने को वे अपना अपमान बताते हैं। भाजपा के साथ वे जितने खुश हैं, उससे कम भाजपा को भी खुशी नहीं है। एक टागर जो उसके हाथ लग गया है।
- टाइगर जगरनाथ महतो
डुमरी विधानसभा इलाके में एक और टाइगर होते थे जगरनाथ महतो। वे भी जेएमएम के नेता थे। जीवित रहते वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ ही रहे। हेमंत सोरेन ने उन्हें अपने पहले मंत्रिमंडल में सूबे का शिक्षा मंत्री बनाया था। स्थानीयता के कट्टर हिमायती जगरनाथ महतो के निधन के बाद भी उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई।
उपचुनाव में पार्टी ने जब उनकी बेवा बेबी देवी को उम्मीदवार बनाया तो पति के प्रभाव के कारण उन्हें जीत हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं हुई। अब तो वे भी हेमंत कैबिनेट का हिस्सा हैं। जगरनाथ महतो को लोगों ने शायद टाइगर इसलिए कहना शुरू किया कि वे आदिवासी-मूलवासी के हितों की हमेशा बात करते थे। शराब के खिलाफ उन्होंने अभियान चलाया। लोगों के लफड़े वे आन स्पाट सुलझाते थे।
- टाइगर जयराम महतो
दो-तीन साल के अंदर झारखंड में एक और टाइगर का अभ्युदय हुआ है। जयराम महतो ने कोयलांचल में झारखंडी भाषा खतियान को आधार बना कर आंदोलन शुरू किया तो उनकी पहचान एक जुझारू नेता के रूप में बनने लगी। कुछ करने का जुनून, प्रभावकारी भाषण और शिक्षित युवा जयराम इतनी जल्दी अपनी पहचान बना लेंगे, शायद ही किसी ने सोचा होगा। पहली बार उनके संगठन जेबीकेएसएस ने इस साल लोकसभा का चुनाव लड़ा। उन्होंने कम ही उम्मीदवार उतारे, लेकिन उनका प्रदर्शन ऐसा रहा कि सभी दलों के कान खड़े हो गए।
खुद जयराम महतो को गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में जेएमएम उम्मीदवार मथुरा महतो से अधिक वोट मिले। जयराम के स्वजातीय कुर्मी वोटरों ने तो खुल कर उनका साथ दिया। हालांकि एनडीए ने भी कुर्मी वोटों का खुद को ठेकेदार मानती आई आजसू के चंद्र प्रकाश चौधरी को उम्मीदवार बनाया था। पर, उन्हें कुर्मी वोट नहीं मिले। जेबीकेएसएस के दूसरे प्रत्याशियों ने भी दिखा दिया कि कुर्मी वोट के सबसे बड़े दावेदार अब टाइगर जयराम महतो ही हैं।