विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बदले जाएंगे !, अध्यक्ष पद की दौड़ में एक-दो तीन नहीं… चार-चार दलबदलू
झारखंड में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. भाजपा जोरशोर से चुनावी तैयारी में जुटी है. सत्ता पक्ष में झामुमो भी चुनावी तैयारी में जुटा है. राजद-वाम दल भी सीटों को लेकर दावे पर दावे ठोक रहे हैं.
लेकिन इंडिया गठबंधन की प्रमुख घटक कांग्रेस की चुनावी तैयारी का कुछ पता नहीं चल रहा है. कांग्रेस में बयानवीरों की संख्या ज्यादा हो गयी. उधर, सरकार में शामिल कांग्रेस कोटे के मंत्री अपनी डफली अपना राग आलाप रहे हैं. जो मंत्री बने हैं, वे अपनी गोटी फिट करने में जुटे हैं. न संगठन से मतलब, न पार्टी के नेता-कार्यकर्ता से.
हाल ही में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे ने विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर दिल्ली में झारखंड कांग्रेस के नेताओं के साथ बैठक की थी. नेताओं की क्लास ली, उन्हें बताया गया था कि झामुमो के गंठबंधन के सहारे कांग्रेस ने दो सीटें खूंटी-लोहरदगा तो जरूर जीत ली, लेकिन समान्य सीटों पर पार्टी हांफ गयी. खरगे ने सामान्य सीटों पर पार्टी का जनाधार बढ़ाने पर फोकस करने को कहा है. चेताया भी है कि काम नहीं करनेवाले नेता नपेंगे.
खरगे प्रदेश के नेताओं से वन टू वन मिले. अधिकांश नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष को हटाने की मांग रखी. प्रदेश अध्यक्ष के साथ भी जो नेता गये थे, उन्होंने अध्यक्ष पद के लिए खुद भी दावेदारी ठोक दी. कांग्रेस के अंदरखाने में चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष को बदले जाने की चर्चा है.
चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को हटा कर किसी आदिवासी को कमान सौंपी जा सकती है या फिर सामान्य वर्ग से ही किसी को अध्यक्ष बनाया जा सकता है. दोनों पहलु पर मंथन चल रहा है. हालांकि प्रदेश अध्यक्ष के लिए जिन नामों की चर्चा है, उनमें से ज्यादा दलबदलू ही हैं.
- डोमिसाइल आंदोलन के लिए चर्चित हैं बंधु तिर्की
झारखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए जिन नेताओं के नाम की चर्चा है, उनमें पूर्व मंत्री बंधु तिर्की, सांसद सुखदेव भगत, प्रदीप बलमुचू, विधायक प्रदीप यादव और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय के नाम शामिल हैं. लेकिन इनमें से चार हाल-फिलहाल (चार- पांच साल) के दलबदलू है, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने भी दलबदल कर ही कांग्रेस का दामन थामा था, लेकिन लंबी अवधि तक कांग्रेस में रह कर पार्टी को सींचा भी है. वहीं तिर्की का हाल के कुछ चार-पांच सालों से ही कांग्रेस से नाता रहा है. कभी अपनी पार्टी बनाई थी, फिर बाबूलाल मरांडी के साथ झाविमो में शामिल हुए, मांडर से जीते भी.
बाद में मरांडी ने बदली, कमल खिलाने गए, झाविमो का अस्तित्व समाप्त हुआ, तो बंधु ने मोर्चा के अपने साथी प्रदीप यादव संघ कांग्रेस का दामन थाम लिया। 2003 में बाहरी भितरी का नारा बुलंद करनेवाले डोमिसाइल आंदोलन के कारण ज्यादा चर्चा में आये बंधु तिर्की को आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा हुई।
विधायकी भी चली गई. हाल ही में उनकी बिटिया शिल्पी नेहा तिर्की ने भी बाहरी व बिहारी को लेकर कुछ ऐसा बयान दे दिया, जिससे विवाद बढ़ गया. बंधु अध्यक्ष पद पर काबिज होने के लिए रांची से दिल्ली तक एड़ी-चोटी एक किए हैं. बंधु भले ही आदिवासी नेता होने दंभ भर लें, लेकिन उनके नेतृत्व में गैर आदिवासी कांग्रेस से जुड़ पाएंगे, इसके आसार कम ही हैं.
- सुबोधकांत सहाय को पार्टी के नेता ही असहाय बनाने में लगे हैं
कांग्रेस में एक दिग्गज नेता सुबोधकांत सहाय के नाम की भी अध्यक्ष पद के लिए चर्चा है. जनता पार्टी से 1977 में राजनीतिक करियर शुरू कर हटिया से विधायक बने. 1989 तक लगातार विधायक रहे. 1989 में जनता दल से चुनाव जीते, केंद्र में मंत्री बने.
फिर सजपा, झामुमो का सफर तय करते हुए कांग्रेस में शामिल हुए थे. लंबी अवधि तक कांग्रेस में सेवा की. 14 साल के राजनीतिक वनवास के बाद कांग्रेस के टिकट पर 2004 के लोकसभा चुनाव में रांची से विजयी हुए. जीते तो केंद्र में मंत्री भी बनाये गये. दोबारा 2009 का लोकसभा चुनाव भी जीते, फिर से मंत्री बनाये गये. मंत्री बने तो संगठन को मजबूत बनाने के लिए भी लगे रहे. 2014 और 2019 का चुनाव हार गये. 2024 के चुनाव में बिटिया को टिकट दिलाया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. अब संगठन के लिए काम करने को तैयार हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनना तो चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ता ही सहाय को असहाय बनाने में जुटे हुए हैं. सुबोधकांत सहाय पार्टी के सीनियर लीडर हैं, उनके सामने दूसरे नेताओं की चलेगी नहीं, तो सब मिलजुल कर उन्हें असहाय बनाने में जुटे हैं.
- भाजपा, झाविमो से होते हुए कांग्रेस में आये प्रदीप यादव
पोडैयाहाट से विधायक प्रदीप यादव की कभी भाजपा में खूब चलती थी. भाजपा में बाबूलाल की सरकार में मंत्री भी रहे. बाबूलाल ने भाजपा को बाई बाई किया, तो यादव जी भी उनके साथ हो लिए.
झाविमो बना, तो प्रदीप जी पदाधिकारी बने. झाविमो के टिकट पर विधायक भी बने. लेकिन जब बाबूलाल ने झाविमो को समाप्त कर भाजपा का दामन थामा, तो प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गये.
प्रदीप यादव कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गये. उनपर एक गंभीर आरोप भी लगा है. केस भी चल रहा है. अब प्रदीप यादव भी ओबीसी कोटा से अध्यक्ष पद हासिल करने के फिराक में लगे हैं.
- ठेंगा दिखा टिकट के लिए आजसू में भागे थे प्रदीप बलमुचू
कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में एक और नेता प्रदीप बलमुचू भी हैं. बलमुचू को कांग्रेस पार्टी ने काफी मान-सम्मान दिया था. घाटशिला से विधायक बने, तो प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष पद सौंपा गया. लंबी अवधि तक युवा कांग्रेस अध्यक्ष, फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे.
कांग्रेस में खूब चलती थी, मान- सम्मान भी मिलता था. घाटशिला सीट से मोह था. जब कांग्रेस में चलती थी, खुद राज्यसभा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष भी थे. बिटिया को घाटशिला से टिकट दिलाया, तो जनता ने धूल चटा दिया.
जब राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त हुआ, तो फिर से घाटशिला सीट से चुनाव लड़ने के लिए लकलकाईल थे. जिस कांग्रेस ने मान-सम्मान दिया, उसने गंठबंधन के कारण बलमुचू को टिकट नहीं दिया, तो उन्होंने कांग्रेस को ठेंगा दिखा कर आजसू का दामन थामा. चुनाव लड़े, चारो खाने चित्त हुए, काफी लटके फिर धीरूभाई के सहारे चुपके से पार्टी में ऊपर घुसिया गए अब फिर से अध्यक्ष पद के लिए लार टपकइले हैं।
- कांग्रेस को छोड़ कमल खिलाने गये, लौट कर बु… घर आये
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ठेंगा दिखा कर भाजपा में शामिल होनेवाले सुखदेव भगत भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हैं. ब्यूरोक्रेट से राजनीतिज्ञ बने भगत को कांग्रेस ने काफी सुख दिया है.
कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने, प्रदेश अध्यक्ष भी रहे. लेकिन रघुवर दास जब सीएम थे, तो भाजपा से प्रभावित हो गए. जिस कांग्रेस ने उन्हें मान-सम्मान दिया था, इज्जत बख्शी थी, उसे मार कर ठीक 2019 119 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गये.
भाजपा से टिकट हथियाने में कामयाब तो रहे, लेकिन लोहरदगा की जनता ने उन्हें बेनकाब कर दिया। कांग्रेस के डॉक्टर रामेश्वर उरांव ने उन्हें पराजित कर दिया। भाजपा में दम घुटने लगा तो कांग्रेस में शामिल होने के लिए छटपटाए लगे। गोरापरिया कर कांग्रेस में आ गए। कांग्रेस ने फिर उन्हें सुख दिया। टिकट देकर लोहरदगा से सांसद बनवा दिया लेकिन अब भगत प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी चाहते हैं।
साभार : शुभम संदेश