कर्नाटक आदिवासी कल्याण बोर्ड घोटाला: ईडी ने कांग्रेस सांसद और तीन विधायकों से जुड़े ठिकानों पर मारा छापा
बेंगलुरु । प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को बेल्लारी जिले और बेंगलुरु में महर्षि वाल्मीकि जनजाति कल्याण बोर्ड घोटाले के सिलसिले में छापेमारी की। यह कार्रवाई चार कांग्रेस नेताओं और उनसे जुड़े अन्य लोगों के ठिकानों पर की गई।
कांग्रेस सांसद ई. तुकाराम, कांग्रेस विधायक ना. रा. भरत रेड्डी और जे. एन. गणेश उर्फ कांपली गणेश के घरों और दफ्तरों पर छापेमारी की जा रही है। इसके अलावा, बेल्लारी के कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री बी. नागेंद्र के निजी सहायक गोवर्धन के घर पर भी छापा मारा जा रहा है।
पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक बी. नागेंद्र के बेंगलुरु स्थित दफ्तर पर भी ईडी की छापेमारी चल रही है। बताया गया कि ईडी के करीब 15 अधिकारियों की एक टीम ने आज सुबह से ही एक साथ आठ जगहों पर छापा मारा है। इनमें से पांच जगहें बेल्लारी में और तीन बेंगलुरु में हैं। हालांकि, अभी तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
पूर्व मंत्री बी. नागेंद्र को इस घोटाले के मामले में पहले जेल भेजा जा चुका है। घोटाले के खुलासे के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। इस पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा था कि नागेंद्र को दोबारा मंत्री बनाए जाने के मामले की समीक्षा की जाएगी।
पूर्व अनुसूचित जनजाति कल्याण, युवा सशक्तिकरण और खेल मंत्री बी. नागेंद्र को 12 जुलाई, 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आदिवासी कल्याण घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार किया था। इसके बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा गया और करीब तीन महीने जेल में बिताने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया।
जेल से रिहा होने के बाद नागेंद्र ने आरोप लगाया कि ईडी ने उन्हें जानबूझकर परेशान किया। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने की साजिश कर रही है।
वहीं भाजपा का आरोप है कि इस घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की भी भूमिका है, क्योंकि उन्होंने सरकारी निकाय से 89.6 करोड़ रुपये की हेराफेरी को कथित तौर पर “मंजूरी” दी थी। भाजपा का दावा है कि यह घोटाला 187 करोड़ रुपये का है और चूंकि वित्त विभाग खुद सिद्धारमैया के पास है, इसलिए उनकी संलिप्तता साफ नजर आती है।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कर्नाटक महर्षि वाल्मीकि एसटी विकास निगम में हुए कथित घोटाले के मुख्य आरोपी और मास्टरमाइंड के रूप में बी. नागेंद्र को नामित किया है।
नागेंद्र ने सत्यनारायण वर्मा, एताकारी सत्यनारायण, जे.जी. पद्मनाभ, नागेश्वर राव, नेकुंती नागराज और विजय कुमार गौड़ा सहित 24 अन्य लोगों के साथ मिलकर इस घोटाले को अंजाम दिया। जांच से पता चला कि निगम के खातों से करीब 89.62 करोड़ रुपये आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के फर्जी खातों में ट्रांसफर किए गए और फिर फर्जी संस्थाओं के जरिए धनशोधन किया गया।
हालांकि, कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए विशेष जांच दल (एसआईटी) ने नागेंद्र को इस मामले में क्लीन चिट दे दी थी और उनके खिलाफ चार्जशीट में नाम नहीं जोड़ा था। ईडी ने कर्नाटक पुलिस और सीबीआई की एफआईआर के आधार पर जांच शुरू की थी।
इस घोटाले का खुलासा तब हुआ, जब आदिवासी कल्याण बोर्ड के लेखा अधीक्षक पी. चंद्रशेखरन (52) ने आत्महत्या कर ली। उनके सुसाइड नोट में घोटाले की जानकारी, इसे दबाने की कोशिशों और राजनेताओं व वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उन पर दबाव डालने का जिक्र था। सुसाइड नोट में कांग्रेस सरकार के एक मंत्री की संलिप्तता का भी संकेत दिया गया, जिन्हें चंद्रशेखरन ने अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया।
राज्य सरकार के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) ने 300 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की, जिसमें सत्तारूढ़ कांग्रेस के किसी भी राजनेता का नाम नहीं है।