मिशन यूपीएससी आदिवासी छात्रों के साथ क्रूर मजाक : अजय साह
रांची, 08 मार्च । भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अजय साह ने झारखंड सरकार की “मिशन यूपीएससी” योजना की कड़ी आलोचना करते हुए इसे छात्रों के साथ क्रूर मज़ाक करार दिया है। उन्होंने शनिवार को भाजपा प्रदेश मुख्यालय में कहा कि यह योजना लाभकारी बनने के बजाय अव्यवहारिक चयन प्रक्रिया के कारण अपनी मूल भावना से भटक गई है।
सरकार के नोटिफिकेशन के अनुसार, इस योजना के तहत झारखंड के 100 आदिवासी छात्रों को दिल्ली में यूपीएससी की कोचिंग के लिए 80,000 रुपये की सहायता राशि दी जाएगी। हालांकि, इस योजना का लाभ किन छात्रों को मिलेगा, इसकी चयन प्रक्रिया चौंकाने वाली है।
पत्रकार-वार्ता में अजय साह ने कहा कि इस योजना के तहत छात्रों की मेरिट लिस्ट तैयार करने का तरीका पूरी तरह से अव्यवहारिक और अनुचित है। चयन प्रक्रिया के अनुसार सबसे पहले उन छात्रों को लाभ मिलेगा जिन्होंने यूपीएससी का साक्षात्कार दिया है | इसके बाद, यूपीएससी प्रीलिम्स पास करने वाले छात्रों को लिस्ट में शामिल किया जाएगा। तीसरे स्थान पर झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) साक्षात्कार में शामिल हुए छात्र होंगे। चौथे और अंतिम स्थान पर जेपीएससी प्रीलिम्स पास करने वाले छात्र होंगे।
साह ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि जिन छात्रों ने पहले ही यूपीएससी प्रीलिम्स और मेंस जैसी कठिन परीक्षाएं पास कर ली हैं, उन्हें कोचिंग के लिए आर्थिक सहायता देने का क्या औचित्य है? उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि यह ऐसा ही है जैसे सरकार ने पढ़ाई के लिए कोई योजना बनाई हो, लेकिन उसमें शर्त रख दी हो कि इसका लाभ केवल उन छात्रों को मिलेगा जो पहले से ही पीएचडी कर चुके हैं। यह योजना उन छात्रों की जरूरतों को नज़रअंदाज़ कर रही है जो वास्तव में इसकी सहायता से अपनी तैयारी बेहतर कर सकते थे।
साह ने अन्य राज्यों का उदाहरण देते हुए कहा कि महाराष्ट्र में ऐसी योजनाओं के तहत छात्रों की मेरिट लिस्ट प्रतियोगिता के जरिए तैयार की जाती है, जिससे योग्य और जरूरतमंद छात्रों का चयन हो सके। गुजरात सरकार ने खुद की कोचिंग व्यवस्था स्थापित की है, जिससे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण मार्गदर्शन मिल रहा है। अन्य राज्यों में भी ऐसी योजनाओं का लाभ उन छात्रों को दिया जाता है जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता होती है।
उन्होंने झारखंड सरकार से आग्रह किया कि “मिशन यूपीएससी” के तहत लाभार्थियों की सूची खुली प्रतियोगिता या ग्रेजुएशन के अंकों के आधार पर तैयार की जाए। इससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि योजना का लाभ सही मायनों में उन आदिवासी छात्रों तक पहुंचे, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।