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मुस्लिम ओबीसी आरक्षण का मामलाः एससी ने कर्नाटक सरकार से सोमवार तक मांगा जवाब

नयी दिल्ली, 13 अप्रैल: उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत मुसलमानों के चार फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था समाप्त करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी कर सोमवार तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कड़ी टिप्पणी करते हुए आरक्षण समाप्त करने के कर्नाटक सरकार के फैसले को प्रथम दृष्टया “भ्रामक”, “अस्थिर” और “त्रुटिपूर्ण” करार दिया और कहा कि वह इस मामले में अगली सुनवाई 18 अप्रैल को करेगी।
शीर्ष अदालत की इन कड़ी टिप्पणियों ने राज्य सरकार को यह आश्वासन देने के लिए मजबूर किया कि वह अपने 27 मार्च के आदेश के अनुसार शिक्षण संस्थानों में कोई प्रवेश नहीं लेगी या नियुक्ति नहीं करेगी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए शीर्ष अदालत को बताया, “शिक्षण संस्थानों में प्रवेश या नौकरी के लिए नियुक्ति में कोई भी उम्मीदवार 18 अप्रैल तक प्रभावित नहीं होगा।”
पीठ ने याचिकाकर्ताओं – एल गुलाम रसूल और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे, प्रोफेसर रविवर्मा कुमार और गोपाल शंकरनारायणन की दलीलें सुनने के कहा कि सरकार का निर्णय प्रथम दृष्टया गलत धारणा पर आधारित था । अदालत ने कहा कि सरकार का यह फैसला एक आयोग की अंतरिम रिपोर्ट पर आधारित है।
शीर्ष अदालत ने कहा, “एक फैसले से एक झटके में बड़ी संख्या में लोगों को आरक्षण के लाभ से वंचित कर दिया गया।” पीठ ने स्पष्ट करते हुए कहा, “हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि प्रथम दृष्टया, आपने (कर्नाटक सरकार) जो आदेश पारित किया है, उससे लगता है कि आपकी निर्णय लेने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण है।”
शीर्ष अदालत ने राज सरकार का पक्ष रख रहे श्री मेहता से यह भी पूछा कि आरक्षण खत्म करने की इतनी जल्दी क्या थी। यह फैसला एक अंतरिम रिपोर्ट पर आधारित है। क्या राज्य सरकार अंतिम रिपोर्ट का इंतजार नहीं कर सकती थी? पीठ की इन टिप्पणियों से राज्य सरकार के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने के संकेत मिलते हैं।
बीरेंद्र, संतोष
वार्ता

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