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नरेंद्र मोदी : दुर्लभ संकल्प-शक्ति के अतुल्य नायक

– विष्णुदत्त शर्मा

सन् 2014 से पूर्व भारतीय जनमानस धीरे-धीरे यह मान बैठा था कि आतंकवाद हमारे भाग्य का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है और इसके विरुद्ध कोई ठोस कदम संभव नहीं। विशेषकर 26/11 के मुंबई हमले ने इस विवशता की भावना को और गहरा कर दिया था। पाकिस्तान से आए आतंकियों ने देश की आर्थिक राजधानी को रक्तरंजित कर दिया, पर तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व की लाचार चुप्पी ने देश की जनता और सेना दोनों का मनोबल धराशायी कर दिया था। वर्षों तक देश में आतंकी घटनाएं होती रहीं, लेकिन कांग्रेस की तत्‍कालीन केंद्र सरकार ने प्रतिकार नहीं किया और न ही उन निर्मम कुकृत्यों के प्रति भारतीय नेतृत्व में कभी बेचैनी देखी गई। उलटे पाकिस्तान से शांति की गुहार लगाते हुए कश्मीर के अलगाववादी संगठनों और आतंकियों के आकाओं की खुशामद होती रही। यही कारण था कि भारत की जनता के मन में यह धारणा जम गई थी कि आतंक का प्रतिकार अब केवल एक दिवास्वप्‍न है। लेकिन 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के साथ ही यह सोच बदलने लगी।

2016 में उरी हमले के बाद भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की और 2019 में पुलवामा की घटना के जवाब में एयर स्ट्राइक द्वारा आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया गया। यह केवल सैन्य कार्रवाई नहीं थी, यह ‘नए भारत’ की उद्घोषणा थी। एक ऐसा भारत, जो अब केवल प्रतिक्रिया नहीं देता, बल्कि आक्रामक निर्णायक प्रतिकार करता है। भारत की सुरक्षा नीति में यह बदलाव कोई संयोग नहीं था, बल्कि मोदी जी की असाधारण इच्छाशक्ति और राष्ट्र-संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का परिणाम था। आज भारत केवल पीड़ित राष्ट्र नहीं, अपितु एक सशक्त प्रतिकारक शक्ति बन चुका है — जो आवश्यकता पड़ने पर दुश्मनों को उन्हीं की धरती पर करारा जवाब देने से नहीं चूकता।

दुर्भाग्य से 22 अप्रैल को पहलगाम में पाकिस्तानी आतंकियों ने एक बार फिर हमारी छाती को छलनी किया, लेकिन वे भूल गए थे कि नया भारत अभी भी नरेंद्र मोदी के हाथों में ही है और दस साल में हमारी सेना का सामर्थ्य भी कई गुना बेहतर हो चुका है। इस कल्पना से ही रूह काँप जाती है कि 22 अप्रैल की नृशंस व बर्बर आतंकी घटना (जिसमें धर्म पूछकर लोगों को मारा गया) के समय यदि केंद्र में कांग्रेस की सरकार होती तो क्या होता? निंदा, विलाप और बयानबाजी के वही पुराने राग गाये जाते जो पिछले कई दशकों तक सुनाए जाते रहे, लेकिन देश की माटी का यह सौभाग्य है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नरेंद्र मोदी जी जैसा निर्णायक, निर्भीक एवं निडर नेतृत्‍व है, जिसने देश को न झुकने देने की सौगन्ध खायी हुई है।

प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की बेटियों की लाज बचाने का संकल्प लिया है और देश की एकता एवं अखंडता के लिए अपना सारा जीवन मां भारती को सौंप दिया है। मोदी जी की आतंकी देशों से निरर्थक बातचीत में कोई रुचि नहीं है और उन्‍होंने पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में लाने का सपना पाला हुआ है। मोदी जी का मत एकदम स्पष्ट है, आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं हो सकती, आतंकवाद और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते और पानी व खून भी एक साथ नहीं बह सकता। सौभाग्य से आज देश के पास ऐसा प्रधानमंत्री है, जिन्‍होंने समूचे विश्‍व के समक्ष भारत का ‘न्यू नार्मल’ रख दिया है, जिसमें आतंकवाद पर घड़ियाली आँसू नहीं बहेगा, बल्कि आतंकियों और उनके आकाओं का खून बहेगा।

22 अप्रैल को पहलगाम की नृशंस आतंकी घटना के पश्‍चात देश ने पहले की तरह केवल शोक नहीं मनाया, बल्कि आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक युद्ध का संकल्प लिया। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ऑपरेशन सिंदूर आरंभ हुआ— एक ऐसा अभियान जिसने आतंक के स्रोतों को जड़ से उखाड़ फेंकने का कार्य किया। इस ऑपरेशन में हमारी सेनाओं को पूर्ण स्वतंत्रता दी गई। परिणामस्वरूप, पाकिस्तान की धरती पर स्थित उन ठिकानों को धूल में मिला दिया गया, जहां से भारत की बेटियों के सिंदूर को मिटाने की साजिशें रची जाती थीं। यह केवल एक सैन्य विजय नहीं, बल्कि भारत के आत्मविश्वास और आत्मबल की विजय थी।

इस अभूतपूर्व प्रतिक्रिया ने पूरी दुनिया को चकित कर दिया। अमेरिका के रक्षा विशेषज्ञ माइकल रुबिन ने यहां तक कहा कि “पाकिस्तान डरे हुए कुत्ते की तरह दुम दबाकर भाग रहा था।” यह दृढ़ता और निर्णायकता, वह विशेषता है जो मोदी जी को अन्य नेताओं से अलग करती है। उन्होंने दुनिया को दिखा दिया है कि भारत अब केवल सहन करने वाला राष्ट्र नहीं, बल्कि न्याय के लिए आवश्यकतानुसार शक्ति प्रयोग करने वाला राष्ट्र बन चुका है। जहाँ एक ओर कांग्रेस-काल में भारत आतंक के विरुद्ध केवल अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति की भीख मांगता रहा, वहीं मोदी युग में भारत वैश्विक मंचों पर सिर उठाकर खड़ा है- आत्मनिर्भर, आत्मबल से पूर्ण और समर्पित।

भारत की परंपरा रही है कि जब धर्म, देश या स्त्री की रक्षा की बात आती है, तब शस्त्र उठाना भी धर्म का ही रूप हो जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता का यह संदेश — “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत…” अब केवल शास्त्रों में नहीं, रणभूमि में भी साकार हो रहा है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत अब केवल सीमाओं की रक्षा नहीं करता, बल्कि अपने आत्मगौरव की रक्षा के लिए भी किसी भी सीमा तक जाने में संकोच नहीं करता। यह अभियान हमारी सेनाओं की तकनीकी दक्षता, सामरिक कौशल और अपराजेय संकल्प का प्रतीक बन गया है। आज, जब पूरी दुनिया भारतीय सेना के शौर्य और रणनीति की सराहना कर रही है, तब देश की जनता एक अभूतपूर्व आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व ने देश को पीड़ित मानसिकता से मुक्त कर एक स्वाभिमानी राष्ट्र में रूपांतरित कर दिया है। उनकी 11 वर्षों की नेतृत्व यात्रा एक ऐसी गाथा है जिसमें संकल्प से सिद्धि, और राष्ट्र को सुरक्षा से स्वाभिमान तक ले जाने की प्रेरणादायक कहानी समाहित है। जल, थल और नभ हर क्षेत्र में भारत आज पहले से अधिक शक्तिशाली, संप्रभु और आत्मनिर्भर बना है। भारत आज केवल एक भूगोल नहीं, आत्मनिर्भरता का जाग्रत संकल्प है और इस संकल्प को संकल्पना से सिद्धि तक पहुँचाने वाले युगपुरुष नरेंद्र मोदी है।

(लेखक भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के अध्यक्ष एवं खजुराहो लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं)

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