National : हिमाचल और नागालैंड में परिवार न्यायालयों के गठन को कानूनी मान्यता देने वाला विधेयक लोकसभा में पारित
नयी दिल्ली 26 जुलाई : लोकसभा में हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में बनाए गए परिवार न्यायालयों के गठन को कानूनी मान्यता प्रदान करने वाला परिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक 2022 मंगलवार को पारित किया गया।
कानून एवं विधि मंत्री किरेन रिज़िज़ू ने परिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक 2022 पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में बनाए गए परिवार न्यायालयों के गठन को कानूनी मान्यता प्रदान करना है। इसके साथ ही इन अदालतों के सभी फैसलों, आदेशों, नियमों, नियुक्तियों आदि को वैध करार देना है।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने 15 फरवरी 2019 को एक अधिसूचना जारी कर तीन परिवार न्यायालयों का गठन किया था। वहीं नागालैंड ने 12 सितंबर 2008 को दो फैमिली कोर्ट का गठन किया था। इन दोनों राज्यों के न्यायालय तब से लगातार काम कर रहे हैं। इन अदालतों में हज़ारों केस के निर्णय हो चुके हैं इसलिए इन अदालतों को मान्यता देने का विधेयक लाया गया है। कानून मंत्री ने कहा कि इन दोनों राज्यों के फैमिली कोर्ट को मान्य ठहराने और इनके फैसलों को कानूनी करार देने के लिए ये संशोधन विधेयक लाया गया है।
क़ानून मंत्री ने कहा कि हमारी कोशिश है कि हर ज़िले में पारिवारिक अदालत का गठन किया जाए ताकि मामलों का तेजी से निपटाया जा सकें। इसके लिए राज्य सरकारों से आग्रह किया जाएगा। उन्होंने जजों की नियुक्ति में देरी के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि उनकी सरकार के नियुक्तियों के मामले बेहतरीन काम किया है। सरकार नियुक्तियों के लिए तेजी से काम कर रही है। सरकार की तरफ़ से जजों की नियुक्ति में किसी प्रकार का विलम्ब नहीं किया जाता है।
क़ानून मंत्री ने कहा कि अदालतों को बेहतर करने के लिए आधारभूत संरचना को मजबूत करने के लिए पिछले आठ साल में जो काम हुए हैं वह साठ सालों में नहीं हुआ है। देश भर की अदालतों ने महामरी के दौरान शानदार काम किया और बडी संख्या में मामलों को निपटाया जिसकी चर्चा दुनियाभर में हो रही है।
इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए भाजपा के निशिकांत दुबे ने कहा कि आज हम भारतीय संस्कृति को भूल कर पश्चिमी सभ्यता की तरफ जा रहे हैं जिसके कारण समस्याएं ज्यादा हो रही है।उन्होंने जजों की नियुक्ति संबंधी कोलोजियम व्यवस्था पर भी सवाल उठाया और कहा क्या वजह है की बिहार झारखंड जैसे बड़े राज्यों से कोई न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट में नहीं है। समाज समाजवादी पार्टी के एसटी हसन ने कहां की प्रॉपर्टी माता पिता आसानी से बच्चे के नाम कर लेते हैं लेकिन बाद में कई बच्चे माता-पिता की देख-देख नहीं करते इसलिए विधेयक में इस बिंदु पर भी विचार होना चाहिए। उन्होंने भी पश्चिमी सभ्यता कि देश में बढ़ते प्रचलन पर चिंता जताई और कहा कि रिलेशनशिप जैसी संस्कृति भारत की कभी नहीं रही।
भाजपा के शंकर लालवानी ने कहा कि देश में कुटुंब न्यायालय कम है और इनकी संख्या और बढ़ाई जानी चाहिए। उनका कहना था कि मध्य प्रदेश जैसे बडे राज्य में सिर्फ एक कुटुंब न्यायालय है। निर्दलीय नवनीत राणा ने कहा कि भारतीय स्त्रियां परिवारवाद की संस्कृति में पली पढी होती है और कुछेक को छोड़कर जीवनभर उसी में रहती हैं। उन्होने परामर्श केंद्रों पर अनुभवी वकील तैनात करने का भी सुझाव दिया।
भाजपा के सुरेश पुजारी ने कहा की परिवार न्यायालय का संचालन महिला जजों द्वारा किया जाना चाहिए। भाजपा के ही प्रताप चंद्र सारंगी ने कहा कि परिवार न्यायालय का गठन अच्छे मकसद से किया गया था लेकिन दिक्कत यह है कि आज 20 राज्यों में सिर्फ 720 परिवार न्यायालय हैं और लाखों मामले लंबित पड़े हुए हैं जिन पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।
अभिनव अशोक
वार्ता