National : लोकसभा ने वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 को दी मंजूरी
नयी दिल्ली, 02 अगस्त : लोकसभा ने वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्त प्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संबंध में कुछ नए प्रावधानों वाले वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 को मंगलवार को लंबी बहस और उसपर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव के उत्तर के बाद उसे ध्वनिमत से पारित किया।
सदन ने विभिन्न सदस्यों द्वारा इस विधेयक प्रस्तुत 70 से अधिक संशोधनों को अस्वीकार किया।
विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए श्री यादव ने चर्चा में भाग लेने वाले सभी सदस्यों की इस बात के लिए सराहना की कि सबने वन्य संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन के लिए लाए गए इस विधेयक का स्वागत किया है। उन्होंने जैव एवं वनस्पति विविधता के संरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि पशुप्राणी और जंगल, नदी एवं पहाड़ के बिना यह धरती, धरती नहीं लगेगी इसलिए मनुष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
यह संशोधन विधेयक वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर वैश्विक संधि (सीआईटीईएस) के प्रावधानों के अनुरूप इस क्षेत्र में देश के कानून में नए प्रावधानों के समावेश को लाने के लिए किया गया है। श्री यादव ने कहा कि भारत सीआईटीईएस में शामिल है, इसलिए हमें इसके अनुरूप कुछ नए व्यवस्थाएं करना जरूरी है।
श्री यादव ने कहा कि संशोधन विधेयक में विशिष्ट प्रजातियों के आयात-निर्यात के लाइसेंस के परमिट के लिए एक प्रबंधन प्राधिकरण का प्रावधान है। इसी तरह इसमें व्यापार में प्रयोग किए जाने वाले जानवरों के अस्तित्व पर पड़ने वाले प्रभाव से जुड़े पक्षों पर सलाह देने के लिए वैज्ञानिक समिति की व्यवस्था की गयी है।
श्री यादव ने कहा कि यह संशोधन विधेयक पेड़-पौधे और वनस्पतियों को स्वस्थ विधि से मनुष्य के उपयोग में लाने के प्रति भारत के संकल्प का एक और उदाहरण है। उन्होंने कहा कि भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कार्बन उत्सर्जन में कमी, मरुस्थलीकरण पर अंकुश और जैव विविधता के संरक्षण के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत है।
श्री यादव ने कहा कि श्री मोदी ने ग्लासगो जलवायु सम्मेलन (कॉप-26) में पर्यावरण अनुकुल जीवनशैली की अवधारणा विश्व के सामने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा,’ भारत के सीआईटीईएस में शामिल होने के कारण हमारी जिम्मेदारी है कि हमारा कानूनी ढांचा भी इस अंतरराष्ट्रीय संधि के संकल्पों को पुष्ट करे इसके लिए इस संशोधन विधेयक में विशिष्ट प्रजातियों के व्यापार के लिए अलग से प्रबंधन समिति की व्यवस्था की गयी है। इसी तरह लुप्त प्रजातियों का लाभ और विलासता के लिए उपयोग ना हो इसके लिए वैज्ञानिक समिति का भी इसमें प्रावधान किया गया है।’
उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर प्रबंध समितियों में क्षेत्र के निवासियों के प्रतिनिधियों को पर्याप्त स्थान होने का प्रावधान है। संरक्षित क्षेत्रों से लोगों को विस्थापित करने की पूरी व्यवस्था होने पर उन्हें अधिसूचित क्षेत्र में अपने पशुओं को चराने और पेयजल के उपयोग करने का अधिकार रहेगा।
उन्होंने कहा कि वन विभाग और स्थानीय नागरिकों के बीच टकराव न हो इसके लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। गरीब ग्रामीण आबादी और वनवासियों का कल्याण हमारी सरकार की प्राथमिकता है।
पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने कहा,“ प्रकृति के अनुपम उपहारों को हम पैदा नहीं कर सकते हैं। इनके संरक्षण का दायित्व हमारा है। श्री यादव इस विधेयक को जल्दबाजी में प्रस्तुत किये जाने के आरोप को खारिज करते हुए कहा कि इसपर संसद की स्थायी समिति ने करीब 150 संस्थानों और व्यक्तियों से परामर्श लिया गया और छह संसद सदस्य भी समिति के सामने विशेष रूप से प्रस्तुत हुए। ”
उन्होंने स्पष्ट किया कि इस विधेयक की अनुसूची और सीआईटीईएस की अंतरराष्ट्रीय सूची में कोई टकराव की स्थिति आने पर भारत का कानून ही लागू होगा और इसलिए हमारी संप्रभुता पर इससे कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
श्री यादव ने कहा कि भारत में वनों का विशिष्ट स्थान रहा है। हमारी संस्कृति वनों से जुड़ी रही है। वर्तमान सरकार वनों और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए तत्परता से प्रयास कर रही है। वर्ष 2012 में संरक्षित वनों की संख्या 693 थी जो आठ साल में बढ़कर 987 हो गयी। उन्होंने कहा कि विकास और पर्यावरण संरक्षण में कोई द्वंध नहीं है। उन्होंने कहा कि बाघों के संरक्षण के लिए आरक्षित हमारे 52 वन क्षेत्रों में स्वच्छ जल के 200 से अधिक स्त्रोत हैं।
उन्होंने कहा, “ ऐसे में संरक्षित क्षेत्र हमारे विकास के लिए भी उपयोगी हैं और वनों के साथ-साथ आर्द्र भूमि का भी संरक्षण होना चाहिए। वन यदि हमारी पारिस्थितिकी के लिए हृदय हैं तो आर्द्र भूमि उसके गुर्दे हैं। ”
मनोहर.अभिषेक
वार्ता