अब ‘गयाजी’ के नाम से जाना जाएगा गया
गया: बिहार सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। शुक्रवार को हुई कैबिनेट की बैठक में गया शहर का नाम बदलने का प्रस्ताव पास हो गया। अब गया को ‘गयाजी’ के नाम से जाना जाएगा। नीतीश सरकार के इस फैसले के बाद से गूगल सर्च में पिछले 24 घंटे से गयाजी (गयाजी) को काफी सर्च किया जा रहा है। खासकर नई जेनरेशन के लोग जानना समझना चाह रहे हैं कि आखिर गया शहर का नाम बदलकर गयाजी क्यों किया गया। लोग यह भी जानना चाह रहे हैं कि इस शहर नाम गया क्यों पड़ा। देश दुनिया में बैठे लोगों के मन में गयाजी को लेकर ऐसे कई सवाल जेहन में उठ रहे हैं। आइए उन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।
हिंदू धर्म में मृत इंसान की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान का चलन रहा है। यही वजह है कि साल में एक बार आने वाले पितृपक्ष में पितरों को तर्पण दिया जाता है। ताकि परिवार के पूर्वजों की आत्मा को शांति मिले और उन्हें मृत्यु के बाद कोई कष्ट ना हो।
हिंदू धर्म ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि अगर कोई इंसान एक बार गयाजी जाकर एक बार अपने पूर्वजों का पिंडदान कर देता है तो उसे जीवन पर्यंत दोबारा पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने की जरूरत नहीं होती है। देश-दुनिया में जहां कहीं भी हिंदू बसे हैं वह चाहते हैं कि उनकी मौत के बाद उनका पिंडदान गयाजी में ही हो जाए। ऐसी मान्यता है कि गयाजी में मृत व्यक्ति का श्राद्ध कराने से उसकी आत्मा को निश्चित रूप से शांति मिलती है। यह एक बड़ी वजह है कि गया शहर को लोग आम बोलचाल में पहले से ही सम्मान देते हुए गयाजी कहते आ रहे हैं।
अब चलिए आपको गयाजी को लेकर धर्म ग्रंथों में लिखी कथाओं के बारे में बताते हैं। ब्रह्मा जी जब सृष्टि बना रहे थे उसी दौरान उन्होंने असुर कुल में गयासुर नामक एक राक्षस की रचना हो गई। गयासुर किसी असुर पिता के प्रयास और मां की कोख से पैदा नहीं हुआ था, इसलिए उसकी प्रवृति राक्षसों जैसी नहीं थी। असुर कुल में होने के बाद भी गयासुर देवताओं का सम्मान और अराधना करता था।
गयासुर के मन में हमेशा एक संशय रहता था। वह चाहे जितना भी अच्छा व्यवहार कर ले, भगवान की अराधना करे, उसे समाज में वो सम्मान नहीं मिलेगा। क्योंकि वह असुर कुल में जन्मा है। इस संशय को दूर करने के लिए गयासुर ने बुरे मार्ग पर चलने के बजाय अच्छे कर्म कर पुण्य कमाने की राह पर चलने लगा। वह चाहता था कि उसकी मौत के बाद उसे स्वर्ग मिले।