आरजी कर कांड के एक वर्ष बाद : आंदोलन के 11 चेहरे, उनके साथ क्या-क्या हुआ
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कोलकाता, 08 अगस्त : आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में महिला चिकित्सक के साथ दुष्कर्म और हत्या की जघन्य घटना को आज एक वर्ष पूरा हो गया है। आठ अगस्त 2024 की रात 12 बजे से सुबह चार बजे के बीच अस्पताल की इमरजेंसी बिल्डिंग में हुई इस वारदात ने पूरे देश को हिला दिया था। अगले दिन ही कोलकाता पुलिस ने अपने ही सिविक वॉलंटियर संजय रॉय को गिरफ्तार किया। बाद में कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश पर जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया।
इस घटना ने राज्य के स्वास्थ्य तंत्र और पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे। आंदोलन जंगल की आग की तरह फैल गया, जिसमें जूनियर डॉक्टरों से लेकर वरिष्ठ चिकित्सक, पुलिस अधिकारी, प्रशासनिक पदाधिकारी और आरोपित तक—कई चेहरे चर्चा में आ गए। कुछ सही कारणों से सुर्खियों में आए, तो कुछ विवादों के कारण।
अब, एक वर्ष बाद, आंदोलन के वे 11 प्रमुख चेहरे कहां हैं —
पहला, जूनियर डॉक्टरों के प्रतिनिधि चेहरों में शामिल रहे तीन वरिष्ठ निवासी डॉक्टर—अनिकेत महतो (एनेस्थेसिया), असफाकुल्ला नैया (ईएनटी) और देबाशीष हलदर (एमसीएच)—आंदोलन में अग्रिम पंक्ति में थे। आंदोलन थमने के बाद इन्हें दूरदराज़ जिलों—रायगंज, पुरुलिया और गाजोल—में बॉन्ड पोस्टिंग दी गई। डॉक्टरों के संगठन इसे प्रतिशोधात्मक कार्रवाई मानते हैं। हालांकि हाई कोर्ट ने इनकी पोस्टिंग पर रोक लगाई है।
दूसरा, उस समय आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य संदीप घोष, जो ‘नॉर्थ बंगाल लॉबी’ से जुड़े माने जाते थे, भ्रष्टाचार मामले में गिरफ्तारी के बाद अभी जेल में हैं। उनके कार्यकाल में ही अस्पताल पर गुटबाजी और भ्रष्टाचार के आरोप तेज हुए थे।
तीसरा, तत्कालीन कोलकाता पुलिस आयुक्त विनीत गोयल आंदोलन के दबाव में पद से हटाए गए। उन पर पहले दिन आरोपित की पहचान छिपाने और बाद में पीड़िता का नाम सार्वजनिक करने के आरोप लगे। बाद में अपनी इस गलती के लिए उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट में माफी भी मांगी।
चौथा, आरोपित संजय रॉय—कोलकाता पुलिस का सिविक वॉलंटियर—अभी जेल में है और उसे आजीवन कारावास की सजा हुई है। हालांकि उसने खुद को निर्दोष बताते हुए हाईकोर्ट में जमानत याचिका लगाई है। वह पहले से ही कई अनुशासनहीनता और हिंसक व्यवहार के आरोपों में चर्चा में रहा था।
पांचवां, आंदोलन के दौरान पुलिस-प्रशासन के खिलाफ मुखर रहे कुछ अन्य डॉक्टर अब सामान्य चिकित्सकीय कार्यों में लौट चुके हैं, लेकिन उनका कहना है कि आर.जी. कर कांड से जुड़ी स्मृतियां और न्याय की अधूरी लड़ाई उन्हें आज भी आंदोलित करती हैं।
छठा, पीड़िता का परिवार अभी भी न्याय की प्रतीक्षा में है। उनका आरोप है कि इस घटना में एक से अधिक लोग शामिल थे, लेकिन सीबीआई ने केवल संजय रॉय को आरोपित बनाया। वे फोरेंसिक और मेडिकल रिपोर्ट को इस दावे का आधार मानते हैं। उन्होंने केंद्रीय एजेंसी पर भी जांच में घोर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है।
सातवां, आंदोलन के शुरुआती दिनों में जिन डॉक्टरों ने धर्मतला में धरना, रैली और अनशन का नेतृत्व किया, वे आज भी डॉक्टरों के हितों के लिए सक्रिय हैं, हालांकि आंदोलन का स्वर अब पहले जैसा प्रखर नहीं है।
आठवां, पुलिस और प्रशासनिक अमले के वे अधिकारी जो आंदोलन के दौरान आलोचना के घेरे में आए थे, उनमें से कुछ का तबादला हो चुका है और कुछ अब भी अपने पद पर कार्यरत हैं।
नौवां, आंदोलन के दौरान रात-दर-रात अस्पताल परिसर में नियंत्रण और धरनास्थल को संभालने वाले डॉक्टरों का एक समूह अब बिखर चुका है, लेकिन वे एक-दूसरे से संपर्क बनाए हुए हैं।
दसवां, अस्पताल परिसर में बना धरना मंच अब भी मौजूद है—एक स्थायी प्रतीक की तरह। वहीं, जिस सेमिनार रूम में घटना हुई थी, वह अब भी सील है।
ग्यारहवां, आंदोलन से जुड़े कुछ चेहरे सोशल मीडिया और जन अभियानों में सक्रिय हैं, आर.जी. कर कांड को न्याय मिलने तक इसे जिंदा रखने की कोशिश में लगे हुए हैं।
एक वर्ष बीतने के बावजूद, यह कांड न तो पीड़िता के परिवार की स्मृति से मिटा है और न ही राज्य की जनता के मन से। आंदोलन भले थम चुका हो, लेकिन न्याय की लड़ाई और इस घटना से जुड़े सवाल अब भी कायम हैं।