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राष्ट्रपति संदर्भ – क्या होगी आगे की प्रक्रिया

नई दिल्ली, 15 मई । राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने गुरुवार को संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से यह राय मांगी है कि क्या न्यायपालिका राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर सहमति देने के लिए समय सीमा निर्धारित कर सकती है, जबकि संविधान में ऐसी कोई स्पष्ट समय सीमा नहीं दी गई है। प्रक्रिया के तहत अब सुप्रीम कोर्ट इसपर आगे संवैधानिक बेंच बना सकती है और विभिन्न पक्षों को नोटिस जारी कर सुनवाई में शामिल होने को कह सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सुरजीत नेहरा का कहना है अनुच्छेद 143(1) के तहत जब राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से कोई राय मांगते हैं, तो यह प्रक्रिया एक मुकदमे जैसी ही होती है— हालांकि इसका अंतिम फैसला बाध्यकारी नहीं होता। प्रक्रिया के तहत अब सुप्रीम कोर्ट इस संदर्भ पर विचार करने के लिए एक संविधान पीठ बना सकता है जिसमें विभिन्न पक्षों की दलीलें सुनी जाएंंगी। इससे पहले राष्ट्रपति 14 बार सुप्रीम कोर्ट से परामर्श मांग चुके हैं और केवल एक ही बार सुप्रीम कोर्ट ने कोई परामर्श नहीं दिया है।

उन्होंने बताया, “यह प्रक्रिया राष्ट्रपति की सलाह को व्यापक संवैधानिक विमर्श के माध्यम से सशक्त और संतुलित बनाती है। यह एक ऐतिहासिक संवैधानिक बहस बन सकती है, जो राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों की व्याख्या को हमेशा के लिए स्पष्ट कर सकती है। यह राय कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन इसका संवैधानिक महत्व बहुत अधिक होता है और आमतौर पर इसका पालन किया जाता है।”

उन्होंने कहा कि इसका संघीय ढांचे पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। यह मामला केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के संतुलन, न्यायपालिका की सीमाओं और कार्यपालिका की स्वतंत्रता जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दों को प्रभावित कर सकता है।

इसपर आगे की प्रक्रिया क्या होगी – मुख्य न्यायाधीश संविधान पीठ गठित करेंगे

अधिवक्ता सुरजीत का कहना है कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत एक गंभीर संवैधानिक प्रश्न सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा है, इसलिए:भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) इस पर विचार करने के लिए कम-से-कम 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ गठित कर सकते हैं। यह पीठ केवल सलाह देगी, न कि कोई अंतिम निर्णय।

नोटिस जारी किए जा सकते हैं

इसके बाद की प्रक्रिया के तहत संविधान पीठ संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर सकती है, जिनमें केंद्र सरकार (अटॉर्नी जनरल के माध्यम से), राज्य सरकारें(खासकर तमिलनाडु), संभवतः पूर्व याचिकाकर्ता पार्टियाँ, कुछ मामलों में कानूनी विशेषज्ञ, संविधानविद्, या जनहित संगठन भी अमिकस क्यूरी के रूप में बुलाए जा सकते हैं।

विस्तृत बहस और सुनवाई

सभी पक्ष अदालत में लिखित और मौखिक दलीलें रख सकते हैं। यह बहस भारत के संघीय ढांचे, राज्यपालों की संवैधानिक भूमिका, विधेयकों की प्रक्रिया और न्यायिक समीक्षा जैसे मुद्दों पर केंद्रित होगी।

सुनवाई का लाइव प्रसारण

सुरजीत का कहना है कि यह एक संवैधानिक महत्व का मामला है, और सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही ऐसे मामलों के लाइव स्ट्रीमिंग को मंजूरी दी है, इसलिए सुनवाई होने पर सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट और यू-ट्यूब चैनल पर लाइव देखी जा सकेगी। इससे आम जनता और विधि विशेषज्ञों को भी पारदर्शिता के साथ यह बहस देखने का अवसर मिलेगा।

कोर्ट राय देगा, आदेश नहीं

उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट अंत में एक सलाह दे सकता है। यह बाध्यकारी नहीं होगी, लेकिन भारत सरकार और राज्यपालों के व्यवहार पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से आज कुछ विषयों पर राय मांगी है। क्या अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग न्यायिक समीक्षा के अधीन है? क्या न्यायपालिका इन संवैधानिक प्रावधानों के तहत कार्यवाही के लिए समय सीमा निर्धारित कर सकती है, जबकि संविधान में ऐसी कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं है? क्या अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल की कार्यवाही पूर्णतः न्यायिक समीक्षा से मुक्त है?

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