इलाहाबादिया को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दी पॉडकास्ट फिर शुरू करने की अनुमति
नयी दिल्ली, 03 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने विवादित यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया को राहत देते हुए नैतिकता और शालीनता के सामान्य मानकों का पालन करने की शर्तों के साथ अपना पॉडकास्ट ‘द रणवीर शो’ फिर से शुरू करने की सोमवार को अनुमति दी।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति एन के सिंह की पीठ ने इलाहाबादिया की याचिका पर यह आदेश जारी किया।
इलाहाबादिया पर ‘इंडियाज गॉट लैटेंट’ के एक एपिसोड के दौरान उनके और संबंधित शो के अन्य जजों द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणियों के कारण देश भर में कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।
इससे पहले अदालत ने उन्हें इस शर्त के साथ गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण दिया था कि वह किसी भी शो में शामिल नहीं होंगे।
हालांकि, हालिया सुनवाई के दौरान, इलाहाबादिया का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड़ ने तर्क दिया कि यह प्रतिबंध न केवल उनके मुवक्किल की आजीविका को प्रभावित कर रहा है, बल्कि लगभग 280 कर्मचारियों के रोजगार को भी प्रभावित कर रहा है।
इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए अल्लाहबादिया को अपना पॉडकास्ट फिर से शुरू करने की अनुमति दी।
शीर्ष अदालत ने इस शर्त के साथ यह राहत दी कि शो में अश्लील भाषा शामिल नहीं होनी चाहिए।
न्यायालय ने कहा, “फिलहाल, याचिकाकर्ता को किसी भी शो को प्रसारित करने से रोक दिया गया है। याचिकाकर्ता द्वारा यह वचन दिए जाने की कि उसका पॉडकास्ट नैतिकता और शालीनता के वांछित ( किसी भी आयु वर्ग के दर्शक के देखने लायक) मानकों को बनाए रखेगा, याचिकाकर्ता को ‘ दी रणवीर शो’ को फिर से शुरू करने की अनुमति है।”
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि वह अश्लील भाषण के प्रसारण को रोकने के लिए संभावित नियामक उपायों का पता लगाने के लिए मामले के दायरे को बढ़ा सकता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से ऐसे उपाय प्रस्तावित करने का अनुरोध किया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 19(4) के तहत मुक्त भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की रक्षा करते हुए ऐसी सामग्री को प्रभावी ढंग से विनियमित करेंगे।
न्यायालय ने कहा कि किसी भी विधायी या न्यायिक कार्रवाई से पहले हितधारकों से राय के लिए किसी भी प्रस्तावित नियामक ढांचे को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
यह विवाद 14 नवंबर, 2024 को खार हैबिटेट में रिकॉर्ड किए गए इंडियाज गॉट लेटेंट के एक एपिसोड के बाद सामने आया, लेकिन हाल ही में प्रसारित हुआ।
इस मामले में यूट्यूबर आशीष चंचलानी भी शामिल हैं, जिन्होंने असम में उनके खिलाफ दर्ज मुकदमों से राहत मांगी है। उनका तर्क है कि मुंबई में पहले से ही इसी तरह की प्राथमिकी दर्ज की गई है।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने पहले उन्हें अग्रिम जमानत दी थी।
पिछली सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने अल्लाहबादिया को उनके शो में की गई अश्लील टिप्पणियों के लिए फटकार लगाई थी। उनकी भाषा को अपमानजनक और “विकृत दिमाग” का प्रतिबिंब करार दिया था।
पीठ ने सवाल किया कि क्या अप्रतिबंधित अश्लीलता को कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में उचित ठहराया जा सकता है और इस बात पर जोर दिया कि ऐसी सामग्री समाज, विशेष रूप से माता-पिता और महिलाओं के लिए अपमानजनक है।
महाराष्ट्र, असम और राजस्थान की सरकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले श्री मेहता ने तर्क दिया कि विवादास्पद टिप्पणियां न केवल अश्लील थीं, बल्कि विकृत भी थीं।
उन्होंने कहा, “हास्य एक चीज है, अश्लीलता दूसरी चीज है और विकृति एक अलग स्तर है।”
न्यायालय ने सहमति व्यक्त की कि विनियामक उपाय आवश्यक हो सकते हैं, लेकिन अत्यधिक सेंसरशिप के खिलाफ चेतावनी दी।
न्यायमूर्ति कांत ने टिप्पणी की, “हम सेंसरशिप की व्यवस्था नहीं चाहते हैं, लेकिन साथ ही, हास्य के मानकों का उल्लेख करते हुए सामग्री प्लेटफ़ॉर्म सभी के लिए स्वतंत्र नहीं हो सकते हैं। एक संतुलन होना चाहिए।”
न्यायमूर्ति कांत ने कहा, “एक 75 वर्षीय कलाकार है जो हास्य शो करता है जिसे पूरा परिवार देख सकता है। यह एक सच्ची प्रतिभा है। गंदी भाषा का उपयोग करना प्रतिभा नहीं है। रचनात्मकता और केवल उकसावे के बीच अंतर है।”
सॉलिसिटर जनरल ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि कई हास्य कलाकार आपत्तिजनक भाषा का सहारा लिए बिना सरकार की आलोचना करते हैं।
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि (जबकि व्यावसायिक हितों की रक्षा की जानी चाहिए) उन्हें सामाजिक नैतिकता की कीमत पर नहीं आना चाहिए।
शीर्ष न्यायालय ने अब कानूनी विशेषज्ञों, मीडिया उद्योग और अन्य हितधारकों से ऑनलाइन सामग्री विनियमन के लिए उपयुक्त रूपरेखा निर्धारित करने तथा मुक्त अभिव्यक्ति और सामाजिक मानदंडों के बीच संतुलन सुनिश्चित करने के लिए सुझाव आमंत्रित किए हैं।