मानहानि मामले में मुख्यमंत्री आतिशी को राहत, समन रद्द
नयी दिल्ली, 28 जनवरी : दिल्ली की एक विशेष अदालत ने मानहानि के मामले में मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना को राहत देते हुए उनके खिलाफ जारी समन मंगलवार को रद्द कर दिया।
एमपी/एमएलए मामलों के विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने मजिस्ट्रेट अदालत की ओर से सुश्री आतिशी को जारी समन के खिलाफ आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के बाद इसे खारिज करने का आदेश दिया।
अदालत आदेश पारित करते हुए कहा,“आतिशी मार्लेना को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत आरोपी के रूप में समन करने का दिनांक 28.05.2024 का विवादित आदेश रद्द किया जाता है। प्रवीण शंकर कपूर द्वारा सीआरपीसी धारा 200 के तहत दर्ज शिकायत खारिज की जाती है।”
विशेष अदालत ने कहा, “एलडी एसीएमएम का 28 मई-2024 का आदेश, जिसमें आतिशी को धारा 500 आईपीसी के तहत मानहानि के अपराध के लिए समन किया गया था, भौतिक त्रुटि और अन्य खामियों के रद्द किया जा सकता है।
विशेष अदालत ने रद्द करने के ये कारण बताए-समन से पहले के साक्ष्य आतिशी मार्लेना को आरोपी के रूप में समन करने के लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत नहीं करते हैं।
अदालत ने कहा कि आतिशी द्वारा ट्वीट और प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से लगाए गए आरोप आपराधिक अपराध के होने का खुलासा करने की प्रकृति के हैं और जांच के योग्य हैं। भाजपा के की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा द्वारा दिल्ली के पुलिस आयुक्त को की गई शिकायत से पता चलता है कि उन्होंने स्वयं सुश्री आतिशी द्वारा लगाए गए आरोपों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है, जिससे मानहानि की संभावना नहीं है।
अदालत ने कहा कि आतिशी द्वारा लगाए गए आरोप राजनीतिक भ्रष्टाचार के संबंध में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करते हैं और आईपीसी की धारा 500 के तहत मानहानि नहीं करते हैं।
इसके अलावा अदालत ने कहा कि आतिशी मार्लेना द्वारा लगाए गए आरोप चुनावी बांड मामले और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अन्य निर्णयों में मान्यता प्राप्त नागरिकों के वोट के अधिकार के एक हिस्से के रूप में जानने के अधिकार को भी सक्रिय करते हैं। अदालत ने कहा कि प्रवीण शंकर कपूर की शिकायत आपराधिक जांच को विफल करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ जानने के अधिकार को दबाने का एक प्रयास है।
अदालत ने कहा कि प्रवीण शंकर कपूर सीआरपीसी की धारा 199 के अर्थ में धारा 500 आईपीसी के तहत मानहानि के अपराध के लिए ‘पीड़ित कोई व्यक्ति’ नहीं है।
अदालत ने कहा कि 27 जनवरी 2024 को ट्वीट और प्रेस कॉन्फ्रेंस के फिर पोस्ट करने के साथ-साथ 02.अप्रैल 2024 को आतिशी द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस की सामग्री, राजनीतिक व्यक्तियों और दलों के बीच सार्वजनिक बयान के मामलों में मानहानि के लिए ‘उच्च सीमा’ परीक्षण को संतुष्ट नहीं करती है, जिसे माननीय उच्चतम न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल (30 सितंबर-2024) और शशि थरूर (10 सितंबर) के आदेशों में अपने पिछले फैसले की पुनरावृत्ति में मान्यता दी है।
अदालत ने कहा कि कोई भी न्यायालय असमान राजनीतिक संरचनाओं के बीच लोकतांत्रिक संतुलन को बिगाड़ने में सहायता नहीं कर सकता है तथा गैर-पीड़ित व्यक्तियों द्वारा दायर मानहानि के लिए आपराधिक कार्यवाही के माध्यम से भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के साथ-साथ मतदान के अधिकार के विरुद्ध कार्य नहीं कर सकता है।
न्यायालय ने कहा, “पुनरीक्षण याचिका को अनुमति दी जाती है।”