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शाह संसदीय राजभाषा समिति के दोबारा अध्यक्ष चुने गए

नयी दिल्ली 09 सितम्बर : केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सोमवार को सर्वसम्मति से पुनः संसदीय राजभाषा समिति का अध्यक्ष चुन लिया गया।

गृह मंत्रालय ने बताया कि नई सरकार के गठन के पश्चात संसदीय राजभाषा समिति के पुनर्गठन के लिए यहां समिति की बैठक आयोजित की गई। बैठक में केन्द्रीय गृह मंत्री को समिति का अध्यक्ष चुना गया। वर्ष 2019 से 2024 के दौरान भी श्री शाह समिति के अध्यक्ष थे। गृह मंत्री ने सर्वसम्मति से पुनः अध्यक्ष चुने जाने पर संसदीय राजभाषा समिति के सभी सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया।

अपने सम्बोधन में केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि पिछले 75 वर्षों से हम राजभाषा को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं लेकिन विगत 10 वर्षों में इसके तरीके में थोड़ा परिवर्तन आया है। उन्होंने कहा कि के एम मुंशी और एन जी आयंगर ने बहुत सारे लोगों से विचार-विमर्श करके ये तय किया था कि हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार करने और इसे सरकारी कामकाज में आगे बढ़ाने के क्रम में किसी भी स्थानीय भाषा के साथ हिंदी की स्पर्धा न हो।

श्री शाह ने कहा कि विगत 10 वर्षों में समिति ने लगातार यह प्रयास किया है कि हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सहेली बने और इसकी किसी से कोई स्पर्धा न हो। उन्होंने कहा कि हमें इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी स्थानीय भाषा के बोलने वालों के मन में हीनभावना न आए और हिंदी सामान्य रूप से सर्वसम्मति व सहमति से कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकृत हो।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि आज़ादी के 75 वर्षों के बाद यह बहुत ज़रूरी है कि देश का शासन देश की भाषा में चले और हमने इसके लिए कई प्रयास किए हैं। उन्होंने कहा कि हमने शब्दकोष का निर्माण किया और शिक्षा विभाग को साथ लेकर भारत की स्थानीय भाषाओं से हज़ारों शब्द हिंदी में जोड़ने का काम किया। कई ऐसे शब्द थे जिनका पर्याय हिंदी में उपलब्ध नहीं था, हमने अन्य भाषाओं से अनेक शब्दों को स्वीकार कर न सिर्फ हिंदी को समृद्ध किया और इसे लचीली बनाया बल्कि उस भाषा और हिंदी के बीच के रिश्ते को भी मज़बूत करने का काम किया है।

उन्होंने कहा कि राजभाषा विभाग इस प्रकार का सॉफ्टवेयर बना रहा है जिससे आठवीं अनुसूची की सभी भाषाओं का अपने आप तकनीकी आधार पर अनुवाद हो जाए। इस कार्य के पूरा हो जाने पर हमारे कामकाज में हिंदी की बहुत तेज़ गति से स्वीकृति और विकास होगा। उन्होंने कहा कि विगत 5 साल में हमने बहुत परिश्रम कर समिति के प्रतिवेदन के तीन बड़े खंड राष्ट्रपति को दिए हैं जो पहले कभी नहीं हुआ है। गृह मंत्री ने कहा कि हमें इस गति को बरकरार रखना है।

श्री शाह ने कहा कि मुंशी-आयंगार समिति के तहत एक बात तय की गई थी कि हर पांच साल में एक भाषा कमीशन बनेगा जो भाषाई विविधता पर विचार करेगा लेकिन इसे भुला दिया गया। उन्होंने कहा कि यह समिति अगले पांच साल में हमारी भाषाई विविधता को बरकरार रखेगी और हमारे बीच हिंदी की स्वीकार्यता को बढ़ाने का काम करेगी। गृह मंत्री ने कहा कि हिंदी अब एक प्रकार से रोज़गार, तकनीक के साथ जुड़ गई है और नए युग की सभी तकनीकों को हिंदी भाषा से युक्त करने के लिए भारत सरकार भी विशेष प्रयास कर रही है। नई शिक्षा नीति में सभी मातृभाषाओं को महत्व देने का संकल्प लिया गया है उसे ये समिति बहुत आगे बढ़ाएगी। श्री अमित शाह ने कहा कि हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकृति मिलने के बाद यह 75वां वर्ष है और इस उपलक्ष्य में दिल्ली के भारत मंडपम में एक बहुत बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। संसदीय राजभाषा समिति का गठन राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4 के उपबंधों के अंतर्गत वर्ष 1976 में किया गया था। समिति में 30 संसद सदस्य होते हैं जिसमें 20 लोक सभा और 10 राज्य सभा सदस्य होते हैं।

बैठक में संसदीय राजभाषा समिति के लिए मनोनीत किए गए राज्यसभा और लोकसभा सांसदों के साथ राजभाषा विभाग की सचिव अंशुली आर्या के नेतृत्व में राजभाषा विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे। संसदीय समिति के अधिकारियों ने भी बैठक में भाग लिया।

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