जयंती पर विशेष: कांके में हुआ था काजी नजरूल इस्लाम का इलाज
- टैगोर के बाद बंगाल में सर्वाधिक गूंजते हैं नजरूल के गीत
- डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी नजरूल की मदद
संजय कृष्ण
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के बाद काजी नजरूज इस्लाम के गीत बंगाल में सबसे अधिक गूंजते हैं। काजी नजरूल के पूर्वज बिहार प्रांत के थे, लेकिन बाद में उनका परिवार आसनसोल के चुरुलिया में बस गया था। 42 साल की उम्र में अचानक उनकी आवाज चली गई। तब तक वे काफी प्रसिद्ध से गए थे।
लंबे समय तक उनका इलाज चलता रूप। फिर देवघर के मधुपुर फिर रांची कांके के मानसिक आरोग्यशाला में उनका इलाज चला, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। काजी नजरूल के पास दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। कवि को पत्नी बीमार और अपाहिज थीं। पुत्र काजी सब्यसाची और काजी अनिरुद्ध तब क्रमशः बारह और दस वर्ष के थे। बताया जाता है कि उस समय शाबर जुल्फिकार हैदर प्रधानमंत्री फजलुल हक साहब से मुलाकात कर नजरूल की बीमारी के बारे में जानकारी दी। हक सहब उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों में से एक थे। स्थामाप्रसाद ने मुखर्जी से कवि के इलाज की व्यवस्था करने का अनुरोध किया। उन्होंने उनकी बात को गंभीरता से समझा। डा. मुखर्जी कवि से मिलने गए और उसी दिन कवि के परिवार के लिए मधुपुर जाने के लिए पांच सौ रुपये एकत्र किये। इसके बाद 19 जुलाई की रात कवि अपने परिवार के साथ मधुपुर गए। कात्रि का होम्योपैथी इलाज चल रहा था। लेकिन दो महीने तक मधुपुर में रहने के बाद भी उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ।
इसके परिणामस्वरूप, कवि 21 सितंबर, 1942 को अपने परिवार के साप कोलकाता लौट आए। मधुपुर में डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी का अपना मक्चन था। वहां पर उनको मां रहती थीं। मां ने काली सहच की काफी सेवा की थी। इसके बाद कवि का मानसिक असंतुलन की बात सामने आ गई। उनकी स्थिति बिगड़ी ही जा रही थी। इसके बाद नजरूल को अक्टूबर 1942 में लुंबिनी पार्क मानसिक अस्पताल में भर्ती कराया गया। नजरूल चार महीने तक लुंबिनी पार्क में से लेकिन उनको हालत में कोई सुधार नहीं होने पर जनवरी 1943 के अंत में कवि को मानसिक अस्पताल से घर ले आया गया था।
इसके बाद भी उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा था। 27 जून 1952 को कोलकाता के प्रमुख लेखकों ने एक समिति का गठन किया। इस संस्था की पहल पर कवि और उनकी पत्नी को 25 जुलाई 1952 को इलाज के लिए रांची मेंटल हास्पिटल भेजा गया। वहां कवि का इलाज मेजर डेक्सि के यहां चल रहा था लेकिन चार महीने के इलाज के बाद भी रांची में कवि को श्रीमारी का निदान संभव नहीं हो सका। इसके बाद एसोसिएशन की पहल पर विदेश भेजा गया। लंदन में डाक्टरों के एक समूह ने कहा कि कवि इनवोल्यूशनल साइकोसिस’ से पीड़ित थे। कवि और उनकी पत्नी को 14 दिसंबर 1953 को देश वापस लाया गया। नजरूल की हालत में कोई खास बदलाव नहीं हुआ। अंततः दुखद जीवन जोते हुए 29 अगस्त 1976 को उनकी सांस टूट गई।
साभार : दैनिक जागरण