पूर्व आईएएस अधिकारी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमा रद्द करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
नयी दिल्ली, 03 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने पूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी प्रदीप एन शर्मा के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमा रद्द करने की उनकी अपील सोमवार को खारिज कर दी लेकिन अग्रिम जमानत याचिका को स्वीकार कर ली।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा कि शर्मा के खिलाफ लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं। उन पर आपराधिक विश्वासघात और सार्वजनिक पद पर रहते भ्रष्टाचार के आरोप हैं।
पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें पूर्व आईएएस अधिकारी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 219 और 114 के तहत दर्ज मुकदमे को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
‘मामलातदार’ कार्यालय द्वारा दर्ज मुकदमे में आरोप लगाया गया था कि जिला कलेक्टर के तौर पर शर्मा ने निजी आवंटियों को उनकी अयोग्यता के बावजूद गलत तरीके से सरकारी जमीन वापस कर दी थी।
यह मामला निजी आवंटियों के देश से लंबे समय तक अनुपस्थित रहने और आवेदक के संबंधित क्षेत्राधिकार से स्थानांतरण के बावजूद कथित रूप से उनके पक्ष में दिए गए आदेश से संबंधित है।
यह मामला एक भूमि आवंटन से जुड़ा हुआ है, जिसे पहले आवंटियों द्वारा आवश्यकतानुसार भूमि पर खेती करने में विफल रहने के कारण रद्द कर दिया गया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि शर्मा के आदेश का उद्देश्य आवंटियों का प्रतिनिधित्व करने वाले पावर ऑफ अटॉर्नी धारक की प्रामाणिकता की पुष्टि किए बिना आवंटियों को अनुचित रूप से लाभ पहुंचाना था।
इस मामले में राहत के लिए शर्मा ने पहले गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जहां तर्क दिया गया था कि आरोप तुच्छ और प्रेरित थे और उनका निर्णय अर्ध-न्यायिक क्षमता में लिया गया था।
हालांकि, 2018 में उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया, यह फैसला सुनाया कि आरोपों की जांच की जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने इस स्थिति की पुष्टि करते हुए कहा कि मुकदमा और सहायक दस्तावेज प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराधों के होने का खुलासा करती है, जिसके लिए पूरी जांच की आवश्यकता है।
पीठ ने स्पष्ट किया, “राज्य द्वारा उठाए गए तर्क (विशेष रूप से आरोपित आदेश पारित करने के समय आवेदक के अधिकार क्षेत्र की कमी) भूमि की कानूनी स्थिति की अनदेखी करने में कथित मिलीभगत और मृतक अपीलकर्ताओं से संबंधित कथित गलत बयानी, सभी संकेत देते हैं कि मामले की गहन जांच की आवश्यकता है।”
न्यायालय ने आगे कहा कि जांच के चरण में, अदालतों को आपराधिक कार्यवाही को तब तक पहले से ही रद्द करने से बचना चाहिए जब तक कि प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग न हो।
पीठ ने कहा, “चूंकि अपीलकर्ता के तर्क तथ्यात्मक विवादों से संबंधित हैं, जिन्हें उचित जांच तंत्र के माध्यम से सत्यापन की आवश्यकता है, इसलिए इस स्तर पर कार्यवाही को रद्द करने के लिए इस न्यायालय के लिए अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करना अनुचित होगा।”
हालांकि, यह देखते हुए कि मामले में मुख्य रूप से दस्तावेजी साक्ष्य शामिल हैं, न्यायालय ने शर्मा को अग्रिम जमानत दे दी।
न्यायालय ने कहा, “आरोपों की प्रकृति और जांच के लिए आधिकारिक रिकॉर्ड पर निर्भरता अग्रिम जमानत देने का औचित्य साबित करती है।”
इस प्रकार, शीर्ष न्यायालय ने मुकदमा रद्द करने की शर्मा की अपील को खारिज कर दिया, लेकिन उनकी अग्रिम जमानत की अपील को स्वीकार कर लिया।