सीएम केजरीवाल की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुनाएगा फैसला
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर फैसला सुनाएगा। केजरीवाल ने कथित शराब नीति घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुप्रीम कोर्ट वेबसाइट पर प्रकाशित वाद सूची के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ 13 सितंबर को अपना फैसला सुनाएगी। पिछले हफ्ते, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की सदस्यता वाली पीठ ने केजरीवाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और सीबीआई की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुनवाई के दौरान सिंघवी ने कहा था कि सीबीआई ने अरविंद केजरीवाल को एफआईआर दायर होने के बाद दो साल तक गिरफ्तार नहीं किया, लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी रिहाई को रोकने के लिए जल्दबाजी में “बीमा गिरफ्तारी” की।
उन्होंने कहा था कि सीबीआई ने केजरीवाल को “उनके असहयोग और टालमटोल वाले जवाब” के लिए गिरफ्तार किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले हैं, जिनमें कहा गया है कि जांच में सहयोग करने का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि आरोपी खुद को दोषी ठहराए और कथित अपराधों को कबूल करे।
सिंघवी ने कहा था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन संवैधानिक पदाधिकारी केजरीवाल ने जमानत देने के लिए ट्रिपल टेस्ट को पूरा किया है। उनके भागने का खतरा नहीं है, वह जांच एजेंसी के सवालों का जवाब देने के लिए आएंगे और दो साल बाद लाखों पन्नों के दस्तावेजों और डिजिटल सबूतों से छेड़छाड़ नहीं कर सकते।
दूसरी ओर, केंद्रीय एजेंसी को आशंका है कि केजरीवाल की रिहाई से कई गवाह अपने बयान से पलट जाएंगे और इसलिए उसने सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत पर रिहा न करने का आग्रह किया।
एएसजी राजू ने कहा था कि गोवा विधानसभा चुनाव में आप की तरफ से मैदान में उतरने वाले कई उम्मीदवार केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद ही केंद्रीय एजेंसी के समक्ष अपना बयान देने के लिए आगे आए।
उन्होंने तर्क दिया था, “यदि आप केजरीवाल को जमानत पर रिहा करते हैं, तो वे (गवाह) अपने बयान से पलट जाएंगे। केजरीवाल की जमानत याचिका को ट्रायल कोर्ट में वापस भेजा जाना चाहिए और उन्हें पहली बार में ही दिल्ली हाईकोर्ट में जमानत के लिए याचिका नहीं दायर करनी चाहिए थी।”
एएसजी ने कहा था कि गिरफ्तारी जांच का एक हिस्सा है और आम तौर पर किसी जांच अधिकारी को गिरफ्तारी के लिए अदालत से किसी अनुमति की जरूरत नहीं होती है। लेकिन, वर्तमान मामले में, अदालत ने (गिरफ्तारी करने का) अधिकार देने का आदेश दिया था। जब अदालत के आदेश के अनुसार गिरफ्तारी की जाती है, तो कोई आरोपी मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की दलील नहीं दे सकता।
बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आबकारी नीति मामले में वरिष्ठ आप नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, बीआरएस नेता के. कविता और आप के पूर्व संचार प्रभारी विजय नायर को जमानत दी थी।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 12 जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सीएम केजरीवाल को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था। हालांकि, उनकी रिहाई से पहले ही सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।
–आईएएनएस