तमिलनाडु के राज्यपाल पर सुप्रीम कोर्ट की कठोर टिप्पणी, कहा-विधानसभा में पारित विधेयकों को लंबित रखना असंवैधानिक
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज तमिलनाडु के राज्यपाल पर कठोर टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का तमिलनाडु विधानसभा में पारित 10 विधेयकों को लंबित रखना ‘असंवैधानिक’ है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इन विधेयकों पर राष्ट्रपति की ओर से उठाए गए कदम का कोई मतलब नहीं है। इन विधेयकों को विधानसभा की ओर से दोबारा पारित करने के बाद इन्हें राज्यपाल की सहमति मिला हुआ माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल की मंशा ठीक नहीं थी। उन्होंने इन विधेयकों को लंबे समय तक अपने पास रखने के बाद राष्ट्रपति के पास भेजा।राष्ट्रपति के पास भी तब भेजा गया जब सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के राज्यपाल वाले मामले में अपना फैसला सुनाया। पंजाब के राज्यपाल वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल किसी विधेयक को लंबे समय तक रखकर उस पर अपना वीटो नहीं कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल को फैसला लेने के लिए दिशा-निर्देश जारी किया है। दिशा-निर्देश के मुताबिक राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए किसी विधेयक पर फैसला लेने या राज्यपाल के पास भेजने के लिए अधिकतम एक महीने के अंदर फैसला लेना होगा।
दिशा-निर्देश के मुताबिक अगर राज्यपाल विधेयक को राज्य सरकार की सलाह के विपरीत राष्ट्रपति की सलाह के लिए रखते हैं तो उस पर भी अधिकतम तीन महीने के अंदर फैसला लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिशा-निर्देश में कहा है कि अगर राज्य विधानसभा किसी विधेयक को दोबारा पारित कराकर राज्यपाल को भेजती है तो उस पर अधिकतम एक महीने में फैसला करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 10 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस दिन सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एतराज जताते हुए कहा था कि लगता है कि राज्यपाल खुद की बनाई हुई प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं। बेंच ने कहा था कि विरोध के नाम पर राज्यपाल ने काफी लंबे समय तक पारित विधेयकों को रोके रखा।
शीर्ष अदालत ने नवंबर 2020 में सुनवाई के दौरान कहा था कि जब सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया तब राज्यपाल ने विधेयक वापस भेजा। यह विधेयक 2020 से लंबित थे। राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट आने का इंतजार क्यों करते हैं। तब अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि विवाद केवल उन विधेयकों को लेकर है जिसमें राज्य विश्वविद्यालयों में नियुक्ति में राज्यपाल की शक्तियों को वापस लेना है।
तमिलनाडु सरकार की याचिका में कहा गया था कि राज्यपाल आरएन रवि ने विधानसभा में पारित विधेयकों पर अपनी सहमति की मुहर नहीं लगाई है। सरकार ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल लोकसेवकों पर अभियोजन की अनुमति देने संबंधी फाइल और कैदियों की समय से पहले रिहाई से जुड़ी फाइलों को दबाकर बैठ गए हैं। तमिलनाडु सरकार ने मांग की थी कि राज्यपाल को इन फाइलों को समयबद्ध तरीके से निस्तारित करने का दिशा-निर्देश पारित किया जाए।