हेमंत सरकार की कथनी और करनी में कोई समानता नहीं है : भानुप्रताप शाही
रांची, 10 जनवरी : झारखंड के पूर्व मंत्री और विधायक भानु प्रताप शाही ने कहा कि हमारा झारखंड खनिज संपदा से परिपूर्ण है, उसी प्रकार खेल के मामले में भी इस राज्य में प्रतिभाओं की अपनी अलग व खास पहचान है। ओलंपिक में पदक लाने वाले जयपाल सिंह मुंडा की यह धरती खिलाड़ियों और खेल के मामले में काफी धनी और उर्वरा रही है ।
महेंद्र सिंह धोनी, दीपिका जैसे खिलाड़ियों ने विश्व पटल पर झारखंड को एक विशेष पहचान और प्रतिष्ठा दिलाने का काम किया है। कह सकते हैं कि झारखंड की रीति रिवाज और संस्कृति में ही खेल रचता बसता है। शाही ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि 2014 से रघुवर दास के नेतृत्व में खेल जगत को बढ़ावा देने की दिशा में कई सार्थक प्रयास हुए। वर्तमान सरकार ने उन तमाम प्रयासों को बढ़ाने की बजाय उस पर पानी फेरने का काम किया है। खेल और खिलाड़ियों के प्रति हेमंत सरकार की उदासीनता काफी दुखद है। सीएम कई विभागों के बोझ तले दबे हैं। इस विभाग को लेकर अगर सरकार संजीदा होती तो अभी यह विभाग सीएम की वजह किसी अन्य मंत्री के पास होता। पूर्व की रघुवर सरकार ने गांव में छुपी प्रतिभाओं को निखारने और निकालने कई महत्वकांक्षी योजनाओं को प्रारंभ किया। लेकिन इस सरकार ने वर्तमान में उन योजनाओं पर पूरी तरह ग्रहण लगाने का काम किया है। इसके अलावा पूर्ववर्ती सरकार ने टैलेंट हर्ट कार्यक्रम चलाया जिसमें 2016-17 में 4200 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। जिसमें 78 खिलाड़ियों का चयन किया गया। वही 2017-18 में 18500 खिलाड़ियों ने भाग लिया, जबकि 100 खिलाड़ियों का चयन हुआ। पिछले एक साल से हेमंत सरकार ने इस कार्यक्रम पर ग्रहण लगा रखा है।
उन्होंने कहा कि हेमंत सरकार आनन-फानन में कैबिनेट से बिना स्वीकृति कराए ही खेल नीति लेकर आ जाती है। बड़ा ताज्जुब लगता है कि बिना कैबिनेट स्वीकृति के खेल नीति कैसे वैद्य मानी जाएगी। इतना ही नहीं खेल नीति के पहले पन्ने को देखकर ही प्रतीत होता है कि राज्य सरकार ने कैसे खेल और खिलाड़ियों के साथ खेल करने का काम किया है। झारखंड सरकार ने खिलाड़ियों को तीन वर्गों में बांट कर एक अलग ही परंपरा की शुरुआत की है। खिलाड़ियों के वर्गीकरण हो जाने से उनमें पहले ही हीन भावना घर कर जाएगी। इससे उनकी प्रतिभा तो कुंठित हो जाएगी। उन्होंने कहा कि 40 खिलाड़ियों की सीधी नियुक्ति का ही मामला देखिए। सरकार ने घोषणा तो 40 नौकरियों का किया लेकिन नियुक्ति पत्र मिला सिर्फ एक को। 39 अब भी भटक रहे हैं। नेशनल खिलाड़ी सीता तिर्की को नियुक्ति पत्र देने के लिए बुलाने के बावजूद उसे मंच पर चढ़ने तक नहीं दिया गया। यह खिलाड़ी की प्रतिष्ठा का हनन नहीं तो और क्या है। नियुक्ति पत्र तो अलग बात है, क्या एक खिलाड़ी सम्मान का हकदार भी नहीं है।यह मानसिकता तो है राज्य सरकार की।
अन्य प्रदेशों में स्टेडियम खुल गए लेकिन झारखंड एक अजूबा है। यहां कोविड गाइडलाइन के बाद भी स्टेडियम का नहीं खोलना दुखद है। अब इसी वर्ष अक्टूबर-नवंबर में गोवा में नेशनल गेम आयोजित होने हैं। बिना तैयारी के राज्य कैसे इसमें प्रतिनिधित्व करेगा। सीएम को और अधिकारियों को सामने आकर बताना चाहिए।
2020 में एथलेटिक्स चैंपियन शिफ्ट होना था, नहीं हो पाया। जबकि अन्य प्रदेशों में संपन्न हुआ। इसकी जिम्मेवारी किसकी है। खेल संघ के साथ खेलमंत्री और अधिकारियों की एक भी बैठक एज साल में संपन्न हुई क्या। अमूमन यह बैठक प्रत्येक तीन महीनों में होनी चाहिए। अब आप समझ सकते हैं कि सरकार की मंशा क्या है। सरकार नहीं चाहती कि खेल जगत का हमारा गौरवशाली परंपरा जारी रहे।