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भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए हमें अपने इतिहास, साहित्य व संस्कृति को स्मरण कर उसे समृद्ध करना होगाः गडकरी

-वरिष्ठ पत्रकार राकेश शुक्ला की पुस्तक “तानसेन का ताना-बाना” का हुआ विमोचन

नई दिल्ली, 9 जून । वरिष्ठ पत्रकार राकेश शुक्ला की पुस्तक “तानसेन का ताना-बाना” का लोकार्पण सोमवार को नई दिल्ली केशव कुंज स्थित विचार विनिमय न्यास सभागार में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई।

मुख्यातिथि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, “अगर भारत को विश्वगुरु बनाना है तो हमें अपने इतिहास, साहित्य और संस्कृति को स्मरण कर उसे समृद्ध करना होगा। हमारा इतिहास, हमारी संस्कृति, हमारी विराशत हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं जो भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक है। हमें अपनी कमियां दूर करते हुए अपने भूतकाल के इतिहास को लिखते रहना चाहिए ताकि नई पीढ़ी को वह बता सकें और दिखा सकें। ऐसी पुस्तकें नई पीढ़ी को उपहार में दी जानी चाहिए, ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़ सकें।” उन्होंने सुरुचि प्रकाशन को विशेष धन्यवाद देते हुए कहा कि ऐसे प्रकाशकों का कार्य सराहनीय है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि तानसेन का संगीत के क्षेत्र में योगदान अतुलनीय है जिसकी तुलना भी नहीं की जा सकती। तानसेन ने अपने काल में जब शासन में ऐसे लोग बैठे थे जो संगीत को ज्यादा महत्व या प्रोत्साहन नहीं देते थे तब भी उन्होंने संगीत परम्परा को आगे बढाने और उसको कायम रखने में बहुत संघर्ष किया। तानसेन की साधना को “संगीत के हर स्वरूप के आराध्य और भारत की आध्यात्मिक परंपरा का प्रतीक” बताया और ऐसी परंपराओं को जीवित रखने व समृद्ध बनाने की दिशा में अनवरत प्रयत्न करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा, “तानसेन पर पांच सौ वर्षों बाद भी लेखन जारी है, यह इस बात का प्रमाण है कि उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है। इतिहास उठा कर देखें तो अनेक ऐसे लोग हुए हैं जो तमाम तरह की विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी अपने कृतित्व के आधार पर, व्यक्तित्व के आधार पर उनका जीवन कालजयी हो गया। अंगेरजी में कहते हैं लार्जर देन लाई फिनामिनन (Larger than life Phenomenon)। हमें इतिहास के उन व्यक्तित्वों को पुनः स्थापित करना होगा, जिन्हें जानबूझकर भुलाया गया। उन्होंने कहा कि भारतीय सभ्यता पश्चिम की तरह नहीं है जहां पीछे देखने और गर्व करने को कुछ नहीं है, अपितु भारत हमेशा न सिर्फ अपने इतिहास से सीख लेता है, बल्कि सतयुग, त्रेतायुग या द्वापर युग के महान मूल्यों को आत्मसात करने की प्रवृत्ति भी रखता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में भारत ने वर्ष 2047 में विकसित भारत बनाने का संकल्प ले रखा है, और विकसित भारत की ये यात्रा हमारी महान विरासत के बिना अधूरी होगी। उन्होंने बताया कि एक वक्त था जब भारत अपनी जड़ों से कट गया था लेकिन अब ये भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का समय है।”

मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा, “यह किताब तानसेन के जीवन को समझने और शोध में संदर्भ के रूप में कार्य करने वाली ऐतिहासिक दस्तावेज है।” आगे भविष्य में यह पुस्तक रेफरेंस के रूप में प्रयोग की जायेगी, ऐसे पूरी उम्मीद है। समय के साथ बहुत सी चीजों को छुपाया गया उसके प्रतिउत्तर में यह तथ्य सामने आये इस दृष्टि से यह पुस्तक अत्यंत महत्पूर्ण है।

पुस्तक के लेखक राकेश शुक्ला ने कहा, “तानसेन की यात्रा सिर्फ अकबर के दरबार तक सीमित नहीं थी, बल्कि वह सतना के छोटे से गांव बांधा से चली थी, और इसके साथ बहुत कुछ है जो इतिहास से छुपा रह गया है।”

कार्यक्रम के दौरान सुरुचि प्रकाशन के प्रतिनिधि राजीव तुली ने कहा कि हमारी संस्कृति में साहित्य की अनंत महिमा बताई गई है। शास्त्र की ऐसी शक्ति है की वह अनेक संशयों को दूर करती है। एक अच्छी पुस्तक उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने में हमने भी गति पकड़ी है। उन्होंने कहा कि “हमने पिछले 50 वर्षों में उन पुस्तकों को छापा जिन्हें कोई नहीं छापता था। अब तक 250 से अधिक पुस्तकें गूगल पर निःशुल्क उपलब्ध हैं, जिन्हें लाखों लोग प्रतिमाह डाउनलोड करते हैं। भविष्य में इन्हें ई-बुक के रूप में और अधिक लोगों तक पहुंचाया जाएगा।” उन्होने कहा कि संघ की इस शताब्दी यात्रा में करीब 50 वर्ष सुरुचि प्रकाशन भी संघ के साथ कंधे से कंधा मिलाकर विचारधारा को लोगों तक पहुंचाने के कार्य में जुटा रहा है और आगे इसका स्तर और विस्तृत किया जाएगा।

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