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ट्रम्प का अमानवीय एवं क्रूर व्यवहार, भारतीयों की वापसी

अमेरिका सबसे पुराने लोकतंत्र का दावा करते नहीं अघाता, पर अवैध रूप से रह रहे लोगों को निष्कासित करते हुए वह बुनियादी मानवीय शिष्टाचार निभाना भी भूल गया।

बेड़ियां पहने 205 भारतीयों को सी-17 अमेरिकी विमान में चढ़ते देखना जितना शर्मसार करने वाला था, उतना ही दर्दनाक और अमेरिकी निष्ठुरता को प्रतिबिंबित करने वाला भी था। हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान में ही यह कहा था कि यदि वह राष्ट्रपति चुने गए, तो अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे बाहरी लोगों को निकाल बाहर करेंगे।

तब दुनिया को यही लगा कि बड़बोले ट्रंप के सैकड़ों शिगूफों में शायद यह एक और विनोदी बात है। मगर उन्हें सत्ता संभाले बमुश्किल एक सप्ताह बीता था कि अमेरिकी फौजी विमानों ने इस काम को अंजाम देना शुरू कर दिया।

कोलंबियाई नागरिकों के साथ भी इसी तरह के सुलूक दिए गए थे। उन्हें भी न सिर्फ हाथों में हथकड़ियां व पैरों में बेड़ियां पहनाई गई थीं, बल्कि रास्ते में पीने का पानी तक नहीं दिया गया था। कोलंबियाई राष्ट्रपति ने इस अमानवीयता पर सख्त ऐतराज किया था। उन्होंने इस निष्कासन में नागरिक विमान के बजाय फौजी हवाई जहाज के इस्तेमाल पर भी यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि उनके नागरिकों के साथ यह अपराधी सरीखा सुलूक हुआ।

एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर के करीब एक करोड़ दस लाख लोग इस समय अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे हैं। इनमें काफी सारे लोग भारत के भी बताए जाते हैं। ब्योरों के मुताबिक, अमेरिका ने फिलहाल करीब 18,000 भारतीयों को वापस भेजने का फैसला किया है, क्योंकि इनके पास वहां रहने के उपयुक्त दस्तावेज नहीं हैं।

भारत और अमेरिका के रिश्ते विगत वर्षों में काफी अच्छे हुए हैं और इसीलिए भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने काफी पहले अमेरिकी प्रशासन को इस काम में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया था। उन्होंने बेहद सकारात्मक रुख दिखाते हुए कहा था कि अवैध दिखाकर कानूनी गतिविधियों से जुड़ा होता है और यह भारत की प्रतिष्ठा के भी मुफीद नहीं। यदि कोई भारतीय अवैध रूप से अमेरिका में पाया जाता है, तो उसकी नागरिकता का सत्यापन करने के बाद हम उसे वापस लेने के लिए खुले हुए हैं। ऐसे में, ट्रंप प्रशासन की यह कार्रवाई निश्चित रूप से निंदनीय है।

इसमें कोई दोराय नहीं कि अवैध प्रवेश या घुसपैठ किसी देश को मान्य नहीं हो सकती, भारत खुद इसका सबसे बड़ा शिकार है। लाखों बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ-साथ हजारों रोहिंग्या यहां वर्षों से रह रहे हैं। अदालती निर्देश के बावजूद सरकार राजनयिक स्तर पर बांग्लादेश और म्यांमार के साथ बातचीत कर रही है कि वे अवैध रूप से रह रहे अपने-अपने नागरिकों को ले जाएं। अमेरिका सबसे पुराने लोकतंत्र का दावा करते नहीं अघाता, मगर उसने बुनियादी मानवीय शिष्टाचार भी नहीं निभाया।

केंद्र सरकार को भारतीय नागरिकों के साथ हुए इस सुलूक का मसला वाशिंगटन के समक्ष जरूर उठाना चाहिए। ट्रंप प्रशासन शायद यह भूल गया कि किसी न किसी हसीन सपने से प्रेरित लोग जान-माल का जोखिम उठाकर वहां पहुंचे हैं। उनके साथ अपराधियों सरीखे व्यवहार से सपनों के इस महादेश की भी छवि खंडित होती है। बेड़ियां पहने लोगों की स्मृतियों में तो वह अब ताजिंदगी दुःस्वप्नों का देश रहेगा। अमेरिका का यह जन-निष्कासन भारतीय निगरानी तंत्र के लिए भी एक बड़ा सबक है।

आखिर इतनी बड़ी तादाद में लोग गैर-कानूनी तरीके से कैसे देश से बाहर चले गए? भारतीय नागरिकों को यह पाठ पढ़ने की जरूरत है कि समृद्धि की तलाश में विदेश जाते हुए वे ऐसा कोई कदम न उठाएं, जिससे देश की प्रतिष्ठा पर आंच आए।

साभार : हिंदुस्तान

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