‘गैरजरूरी…’, सुप्रीम कोर्ट ने धर्मपरिवर्तन के खिलाफ हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणियों को हटाया
- सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणियों को किया खारिज
- शीर्ष अदालत ने कहा कि इन टिप्पणियों को किसी अन्य केस में भी कोट नहीं किया जा सकता
- हाई कोर्ट ने कहा था कि अगर धर्मातरण वाले जलसे होते रहे तो बहुसंख्यक आबादी हो जाएगी अल्पसंख्यक
नई दिल्ली : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कुछ दिन पहले धर्मांतरण के खिलाफ बहुत ही सख्त टिप्पणी की थी। कहा था कि अगर ये ऐसे ही जारी रहा तो जल्द ही इस देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक में तब्दील हो जाएगी। अब देश की सबसे बड़ी अदालत ने हाई कोर्ट की इन टिप्पणियों को गैरजरूरी बताते हुए हटाने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इन टिप्पणियों को हाई कोर्ट या कोई और अदालत किसी भी अन्य मामले या कार्यवाही में कोट नहीं करेंगी।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की उस टिप्पणी को फैसले से हटा दिया कि यदि धर्मांतरण वाले धार्मिक आयोजनों को नहीं रोका गया तो देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक बन जाएगी।
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कैलाश नाम के एक शख्स को जमानत देते हुए यह आदेश पारित किया, जिसके खिलाफ उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 365 (किसी व्यक्ति को गुप्त रूप से और गलत तरीके से बंधक बनाने के इरादे से अपहरण करना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
शीर्ष अदालत ने आरोपी को यह कहते हुए राहत दी कि वह 21 मई, 2023 से हिरासत में है।
बेंच ने कहा, ‘हम स्पष्ट करते हैं कि हाई कोर्ट द्वारा की गई सामान्य टिप्पणियों का वर्तमान मामले के तथ्यों पर कोई असर नहीं था और इसलिए, मामले के निस्तारण के लिए उनकी आवश्यकता नहीं थी। इसलिए, इन टिप्पणियों को हाई कोर्ट या किसी अन्य अदालत में किसी अन्य मामले या कार्यवाही में उद्धृत नहीं किया जाएगा।’
इससे पहले दो जुलाई को, हाई कोर्ट ने जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए इन आरोपों पर गौर किया था कि आवेदक उत्तर प्रदेश के हमीरपुर से लोगों को धर्मांतरण के लिए दिल्ली में एक धार्मिक समागम में ले जा रहा था और कहा था, ‘अगर इस प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति दी गई, तो इस देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक हो जाएगी…।’
हाई कोर्ट ने आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि इस तरह का धर्मांतरण संविधान के खिलाफ है, जो केवल ‘अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार-प्रसार’ की अनुमति देता है।