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सत्गुरु की कृपा से आत्मा का योग (जुड़ाव) जब असीम निरंकार से हो जाता है

दाना खाक में मिलकर गुले गुलजार होता है

चम्पा भाटिया
चम्पा भाटिया

छोटे से छोटा कण जब विराट के साथ जुड़ जाता है तो स्वमेव ही वह विस्तार रूप में नजर आता है। उसकी अपनी सीमित सी सीमा समाप्त हो जाती है। अर्थवेद में एक मन्त्र पढ़ा जिसका अर्थ है गाय का दूध चेहरे को कान्ति देता है। घी अग्नि को प्रचण्ड कर देता है। छोटा बीज पेड़ बन जाता है। सत्गुरु की कृपा से जाना दूध में चेहरे को कान्ति देने की शक्ति है, परन्तु गिलास में रखा हुआ दूध अपनी शक्ति प्रकट करने में असमर्थ है।

जब दूध शरीर के अन्दर जाकर अपने अस्तित्व को समाप्त कर देता है, वह फिर कान्ति, (चेहरे का नूर) बनकर प्रकट होता है। घी डिब्बे के अन्दर है तो अपनी शक्ति प्रकट नहीं कर पाता, परन्तु आग में डालते ही वह अग्नि को प्रचण्ड कर देता है। ताकत नजर आने लगती है। जब धरती के अन्दर छोटा सा बीज अपने आप को समर्पित कर देता है, वह विशाल पेड़ के रूप में प्रकट होता है। बीज जो कि सीमित होता है उसका विस्तार हो जाता है और असीम नजर आता है।

सत्गुरु की कृपा से यह आत्मा का योग (जुड़ाव) जब असीम निरंकार से हो जाता है, तो यह आत्मा भी सीमाओं में नहीं रहती, असीम हो जाती है निरंकार ही हो जाती है।

श्रीमदभगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहाः-
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।

जो मुझे सब जगह देखता है, वह सब में मुझे देखता है। भाव उसकी सोच, उसकी दृष्टि उसके भाव में विशालता आ जाती है, कोई बेगाना नहीं लगता, विराट, विशाल, निरंकार से जुड़कर वह भी विशाल हो जाता है। निरंकार का एहसास हर पल उसे अपने साथ महसूस होता है भगवान श्री कृष्ण ने इसी श्लोक की अगली पंक्ति में कहाः-

तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।।

वह कभी मुझसे दूर नहीं होता और मैं उससे अलग नहीं होता। इस सर्वशक्तिमान से जुड़े रहेंगे तो ये ताकत बख्श्ता रहेगा। जैसे ट्रांसमीटर से तार से संबंध जुड़ा रहे तो सारे घर के बल्बों में बिजली प्रवाहित होती रहेगी और सारे बल्ब जगमगाते रहेंगे, घर में रौशनी बनी रहेगी।

माली घास का एक-एक तिनका धरती में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर उगा देता है। कुछ समय पाकर सारा बाग हरी-हरी घास से ओतप्रोत हो जाता है, मिट्टि दिखाई नहीं देती। दातार कृपा करें, सत्गुरु हमें अपने सानिध्य में लेकर दिन रात अपने वचनों से हमारे जीवन को सींच रहे हैं। हम अपने आप को समर्पित कर दें। यह बगिया, यह विश्व सारा का सारा खुशियों से महक उठेगा।
पावन हरदेव वाणी में सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी ने कहा हैः-

विशाल ईश्वर से मिलकर ही, विशालता आ पाएगी।
विशलता है जिसमें, उसका अपना कुल संसार है।

असीम से जुड़ने के लिए, सीमाओं के बन्धन तोड़ कर, बन्दे सभी विशाल बने।

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