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पत्नी पोर्न देखती है, इसलिए तलाक चाहिए- कोर्ट ने कहा, महिलाओं की यौन स्वायत्तता अपराध नहीं

मदुरै: मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने एक पति द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज कर दिया. पति ने पत्नी पर वयस्क सामग्री देखने और आत्मसंतुष्टि का आरोप लगाते हुए तलाक मांगा था. न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन और आर. पूर्णिमा की पीठ ने कहा कि महिलाओं की यौन स्वायत्तता को अपराध नहीं माना जा सकता, खासकर तब जब पुरुषों द्वारा इसी तरह का व्यवहार सामाजिक रूप से स्वीकार किया जाता है.

क्या है मामलाः यह मामला तमिलनाडु के करूर का है. करूर के एक निवासी ने मदुरै पीठ में याचिका दायर कर फैमिली कोर्ट के उस फैसले को पलटने की मांग की थी, जिसमें उसकी पत्नी से तलाक की याचिका खारिज कर दी गई थी. जुलाई 2018 में दोनों की शादी हुई थी. दिसंबर 2020 से दोनों अलग-अलग रह रहा है. पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी यौन संचारित रोग से पीड़ित है. उसने तलाक के लिए उसके पोर्नोग्राफी देखने, घर के कामों में लापरवाही बरतने, उसके माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करने और फोन पर बहुत अधिक समय बिताने को आधार बनाया.

अदालत को बीमारी के दावे के समर्थन में कोई चिकित्सा साक्ष्य नहीं मिला. इसके अतिरिक्त, न्यायाधीशों ने कहा कि व्यक्तिगत आदतें, जैसे कि गैर-निषिद्ध वयस्क सामग्री देखना या आत्म-सुख, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत क्रूरता नहीं मानी जाती हैं. पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि नैतिक निर्णय कानूनी सिद्धांतों को दरकिनार नहीं कर सकते. इसने कहा कि पोर्नोग्राफी की लत भले ही हानिकारक हो, लेकिन निजी तौर पर देखना- जब तक कि इसमें अवैध सामग्री शामिल न हो- अपराध नहीं माना जाता.

अदालत ने आगे फैसला सुनाया कि ‘खुद को संतुष्ट करना’ पुरुषों के बीच व्यापक रूप से स्वीकार्यता की महिलाओं के लिए निंदा नहीं की जा सकती. फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि शादी से महिला की पहचान और व्यक्तिगत अधिकार खत्म नहीं होते और उसकी निजता का अधिकार बरकरार रहता है. अपील को खारिज करते हुए, अदालत ने माना कि पति अपने आरोपों को साबित करने में विफल रहा है. पति या पत्नी द्वारा निजी तौर पर किए गए व्यक्तिगत कार्य, जो दूसरे को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं किए गए थे, क्रूरता के रूप में योग्य नहीं हैं.

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