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विश्व गौरैया दिवसः पारिस्थिकी संतुलन बरकरार रखने के लिए गौरैया का संरक्षण जरूरी

नई दिल्ली, 18 मार्च । गांवों में भोर से लेकर शहरों की चहल-पहल तक गौरैया कभी हवा को अपनी खुशनुमा चहचहाहट से भर देती थीं। इन नन्हें पक्षियों के झुंड, बिन बुलाए मेहमान होने के बावजूद स्वागत योग्य, अविस्मरणीय यादें बनाते थे। लेकिन समय के साथ, ये नन्हें दोस्त हमारी जिंदगी से गायब हो गए हैं। कभी बहुतायत में पाई जाने वाली घरेलू गौरैया अब कई जगहों पर एक दुर्लभ दृश्य और रहस्य बन गई है। इन छोटे प्राणियों के प्रति जागरुकता बढ़ाने और उनकी रक्षा करने के लिए, हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार विश्व गौरैया दिवस की शुरुआत “नेचर फॉरएवर” नामक एक पक्षी संरक्षण संगठन ने 2010 में की थी। इसका उद्देश्य गौरैया की घटती आबादी के बारे में जागरुकता बढ़ाना था। अब यह आयोजन 50 से अधिक देशों में फैल चुका है। इसका लक्ष्य गौरैयों की रक्षा करना और उनकी संख्या में कमी को रोकना है। 2012 में घरेलू गौरैया को दिल्ली का राज्य पक्षी बनाया गया। इसके बाद से इस आयोजन ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है। हर जगह लोग गौरैया का जश्न मनाते हैं और उन्हें बचाने के लिए काम करते हैं।

गौरैया छोटे लेकिन महत्वपूर्ण पक्षी हैं, जो पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। वे विभिन्न कीड़ों और कीटों को खाकर कीटों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त, गौरैया परागण और बीज प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। उनकी उपस्थिति जैव विविधता को बढ़ाती है, जिससे वे ग्रामीण और शहरी दोनों पारिस्थितिकी तंत्रों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण बन जाती हैं।

भारत में गौरैया सिर्फ पक्षी नहीं हैं, वे साझा इतिहास और संस्कृति का प्रतीक हैं। हिंदी में “गोरैया” , तमिल में “कुरुवी” और उर्दू में “चिरिया” जैसे कई नामों से जानी जाने वाली गौरैया पीढ़ियों से दैनिक जीवन का हिस्सा रही हैं। वे अपने खुशनुमा गीतों से हवा को भर देती थीं, खासकर गांवों में, जिससे कई लोगों की यादें जुड़ी हुई थीं।

समाज के लिए महत्वपूर्ण और उपयोगी होने के बावजूद गौरैया तेजी से लुप्त हो रही हैं। इस गिरावट के कई कारण हैं। सीसा रहित पेट्रोल के उपयोग से जहरीले यौगिक पैदा हुए हैं, जो उन कीटों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिन पर गौरैया भोजन के लिए निर्भर हैं। शहरीकरण ने उनके प्राकृतिक घोंसले के स्थान भी छीन लिये हैं। शहरीकरण ने उनके प्राकृतिक घोंसले के स्थानों को छीन लिया है। आधुनिक इमारतों में वे स्थान नहीं होते, जहां गौरैया घोंसला बना सकें, जिससे उनके बच्चों को पालने के लिए जगह कम हो गई है।

इसके अलावा, कृषि में कीटनाशकों के इस्तेमाल से कीटों की संख्या में कमी आई है, जिससे गौरैया के भोजन की आपूर्ति पर और असर पड़ा है। कौओं और बिल्लियों की बढ़ती मौजूदगी और हरियाली की कमी ने समस्या को और बढ़ा दिया है। इन कारकों और जीवनशैली में बदलाव के कारण गौरैया के अस्तित्व पर संकट आ गया।

इन चुनौतियों के बीच गौरैयों की रक्षा करने और उन्हें हमारे जीवन में वापस लाने के लिए कई प्रेरणादायक प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसा ही एक प्रयास है पर्यावरण संरक्षणवादी जगत किंखाबवाला द्वारा शुरू की गई “गौरैया बचाओ” मुहिम। वे विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर देते हैं। 2017 में प्रधानमंत्री मोदी के इस मुहिम के समर्थन ने जागरूकता को काफी बढ़ाया है।

चेन्नई में कुडुगल ट्रस्ट द्वारा एक और उल्लेखनीय पहल की गई है। इस संगठन ने स्कूली बच्चों को गौरैया के घोंसले बनाने में शामिल किया है। बच्चे छोटे लकड़ी के घर बनाते हैं, जिससे गौरैया को भोजन और आश्रय मिलता है। वर्ष 2020 से 2024 तक ट्रस्ट ने 10,000 से ज़्यादा घोंसले बनाए हैं, जिससे गौरैया की संख्या में वृद्धि हुई है। इस तरह के प्रयास संरक्षण में युवा पीढ़ी को शामिल करने के महत्व को उजागर करते हैं।

कर्नाटक के मैसूर में “अर्ली बर्ड” अभियान बच्चों को पक्षियों की दुनिया से परिचित कराता है। इस कार्यक्रम में एक पुस्तकालय, गतिविधि किट और पक्षियों को देखने के लिए गांवों की यात्राएं शामिल हैं। ये शैक्षिक प्रयास बच्चों को प्रकृति में गौरैया और अन्य पक्षियों के महत्व को पहचानने और समझने में मदद कर रहे हैं।

राज्य सभा सांसद बृज लाल ने भी गौरैया संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने अपने घर में 50 घोंसले बनाए हैं, जहां हर साल गौरैया अंडे देने आती हैं। वह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें खाना मिले और उनकी देखभाल हो। उनके प्रयासों की तारीफ प्रधानमंत्री मोदी ने भी की, जिन्होंने गौरैया संरक्षण में इस तरह की पहल के महत्व पर प्रकाश डाला।

विश्व गौरैया दिवस यह याद दिलाने का एक अवसर है कि हमें हमारे छोटे पंखों वाले मित्रों को बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए। चाहे वह ज्यादा हरियाली लगाने, कीटनाशकों के उपयोग को कम करने या सुरक्षित घोंसला बनाने जैसे छोटे प्रयास हों, हर कदम मायने रखता है। विश्व गौरैया दिवस मना कर हम इन छोटे पक्षियों को अपने जीवन में वापस ला सकते हैं और प्रकृति और मानवता के बीच सामंजस्य को बनाए रख सकते हैं।

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