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सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को 10 बीआरएस विधायकों की अयोग्यता पर 3 महीने में फैसला लेने का निर्देश दिया

नई दिल्ली । तेलंगाना में बीआरएस के 10 विधायकों की अयोग्यता मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को तीन महीने में फैसला लेने का निर्देश दिया है। इन 10 बीआरएस विधायकों ने कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन की थी, लेकिन तेलंगाना विधानसभा के अध्यक्ष ने इनकी अयोग्यता पर लंबे समय तक कोई फैसला नहीं लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मामले में सुनवाई करते हुए तेलंगाना विधानसभा के अध्यक्ष को निर्देश दिया कि वह 10 बीआरएस के विधायकों की अयोग्यता पर तीन महीने में फैसला लें।
इस बीच, ‘दल-बदल’ पर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, “ये मुद्दा देशभर में बहस का विषय रहा है और यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया, तो यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर सकता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने संसद में दिए गए कई नेताओं के भाषणों का हवाला दिया। कोर्ट ने राजेश पायलट और देवेंद्रनाथ मुंशी जैसे सांसदों के भाषणों का जिक्र करते हुए कहा कि विधायक या सांसद की अयोग्यता तय करने का अधिकार स्पीकर को इसलिए दिया गया, ताकि अदालतों में समय बर्बाद न हो और मामला जल्दी सुलझे।

सुनवाई के दौरान कोर्ट के समक्ष यह दलील दी गई कि अनुच्छेद 136 और 226 व 227 के तहत स्पीकर के निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा की सीमाएं बहुत संकीर्ण हैं। यह भी कहा गया कि चूंकि यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी पीठ के समक्ष लंबित है, इसलिए मौजूदा सुनवाई नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में इन दलीलों का उल्लेख किया।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तेलंगाना हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश को रद्द किया और निर्देश दिया कि कथित तौर पर सत्तारूढ़ कांग्रेस में शामिल होने वाले 10 बीआरएस विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही “यथाशीघ्र और तीन महीने के भीतर” तय की जाए।

बीआरएस नेता केटी रामाराव, पाडी कौशिक रेड्डी और केपी विवेकानंद ने ये याचिकाएं दायर की थीं, जिनमें तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

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