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देवी दुर्गा की साधना का पर्व है चैत्र नवरात्र

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”जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवाधात्री, स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।” यह पवित्र और तेज से युक्त मंत्रोच्चार लगातार नौ दिन तक घर से लेकर देवालय तक गूंजता रहेगा। अलग-अलग तरह से सजी झांकियां और आकर्षक प्रतिमाएं नवरात्रि का पहला आकर्षण होती है। विभिन्न जगहों पर राम दरबार की ऐसी झांकी सजाई गई है कि पूरा वातावरण श्रीराम में दिखने लगा है।

कहीं स्नेहमयी चेहरा, तो कहीं योज रूप में जगह-जगह विराजमान मां दुर्गा के आठ और दस हाथ समस्त दिशाओं को दर्शाती है। जिसका अर्थ है सभी दिशाओं से मिलने वाला सुरक्षा कवच, जो मां भक्तों को देती है और हर दिशा से आने वाली मुसीबतों से रक्षा करती है। नवरात्रि का नौ अंक अपने आप में एक महान रहस्य है। नौ अंकों में सृष्टि की संपूर्ण संपूर्ण संख्याएं समाहित हैं। पंच महाभूत एवं चारों अंतरण मिलकर नौ तत्व प्रकृति विकार एवं विश्व प्रपंच के मुख्य परिणाम हैं।

साधकों की भाषा में दुर्गा के नौ स्वरूपों में शक्ति समस्त विश्व में व्याप्त है। मन, वचन, कर्म एवं समस्त इंद्रियों के द्वारा हमेशा भगवान के पास रहकर लगातार सभी प्रकार की सेवा करना ही उपासना है। इस ब्रह्मांड में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो कामना रहित हो। भले ही वह देवलोक का निवासी देवता हो या राक्षस अथवा मृत्यु लोक में रहने वाला प्राणी मात्र हो। विश्व में रहने वाले हम मानव ही नहीं, कीट-पतंग और पशु-पक्षी भी कामनाओं से युक्त होते हैं। बिना कामना के तो कोई जीव है ही नहीं।

कलयुग में चंडी यानी शक्ति मतलब महाशक्ति दुर्गा के विभिन्न रूपों तथा श्री गणेश की उपासना फलित होती है। यही कारण है कि आजकल समस्त भू-भाग में दुर्गा पूजा का महत्व बढ़ता जा रहा है। जहां पूर्ण श्रद्धा, विश्वास तथा अडिग भक्ति भावना होती है। वहां किसी भी पूजा सामग्री का महत्व नहीं होता। विशेष स्त्रोतों के द्वारा मां भगवती की वंदना करने में भक्तों की साधना नहीं भावना प्रधान हो जाती है। उपासना का अर्थ है उपवेशन करना, मतलब भगवान के करीब बैठना।

जब हम अपनी भावनाओं को शुद्ध कर पूर्ण श्रद्धा के साथ अपने परम आराध्य के पास आसीन होते हैं, बैठते हैं तो वह उपासना है। जब हम ईश्वर का ध्यान करते हैं, उनकी स्तुति करते हैं, उनसे प्रार्थना करते हैं, उस समय उनके समीप पहुंच जाते हैं। लेकिन जब स्तुति नहीं करते, प्रार्थना नहीं करते तो भी हम सच्चे हों तो ईश्वर हमसे दूर नहीं होते। माता की समीपता प्राप्त करने के लिए हम जिस क्रिया को प्रयोग में लाते हैं, वही उपासना है और वही तो नवरात्रा की साधना है।

चैती नवरात्रा की साधना के मार्ग पर चलकर मां दुर्गा और प्रभु श्रीराम की कृपा प्राप्त करने में किसी प्रकार के अनिष्ट की संभावनाएं नहीं है। जहां भोग है, वहां मोक्ष नहीं है। जहां मोक्ष है, वहां सांसारिक भोग का कोई महत्व नहीं है। लेकिन त्रिपुरसुंदरी अर्थात शक्ति स्वरूपा दुर्गा की सेवा उपासना से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। मनुष्य संसार में यदि सबसे अधिक किसी का ऋणी है तो वह है मां। मां जो साक्षात ममता, दया, करुणा, प्रेम की प्रतिमूर्ति है। वात्सलय का सागर है। पुत्र कैसा भी हो माता के लिए वह सदैव प्रिय होता है।

मां का हृदय इतना विशाल होता है कि संतान की बड़ी से बड़ी गलती को भी क्षमा कर देती है। उसके अनेकों को गलतियों के पश्चात भी सीने से लगा लेती है। क्योंकि माता तो माता ही होती है, माता की बराबरी ब्रह्मांड में कोई नहीं कर सकता। मां दुर्गा तो जगत जननी है, वही इस दुनिया की स्त्रोत है, शक्ति स्वरूपा है, उसकी पूजा उपासना कर कोई भी उसकी कृपा प्राप्त कर सकता है। मां दुर्गा, भक्तों को वात्सलय के चादर में समेट लेती है। उसकी प्रत्येक मनोकामना को पूरी करती है। पापी से पापी व्यक्ति भी नवरात्रि में पूजा उपासना कर मां की कृपा दृष्टि का पात्र बन सकता है।

परम सत्ता के अभिन्न आदि शक्ति मां जगदंबा की उपासना का लक्ष्य साधक के लिए भक्ति और मुक्ति दोनों ही होते हैं। इस संसार की समस्त सुख सुविधाएं भोग कर, धन-संपत्ति, स्त्री पुत्र का आनंद उठा कर, पूर्ण सफल जीवन का भोग करके, मृत्यु के बाद मुक्ति का, निर्वाण का सतचित आनंद मिल जाने का सौभाग्य केवल देवी की उपासना से ही प्राप्त होती है। इस संबंध में विस्तार से बातें देवी भागवत में कही गई है। नवरात्र ही ऐसी आलौकिक और चमत्कारी रात्रि होती है जिसमें की गई पूजा, उपासना सरल और शीघ्र मनोवांछित फल देने वाली होती है।

हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में ऐसे बहुत से तंत्र-मंत्र और यंत्र का उल्लेख मिलता है। जिसका उपयोग करके कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा को पूर्ण कर सकता है। भारतीय शास्त्रों ने कहा है कि जीवन का वास्तविक सुख केवल धन संचय या प्रभुत्व स्थापित करने में नहीं है। एक पक्ष को ही उन्नत करने से मनुष्य का पूर्ण विकास नहीं होता। उसको चाहिए वह जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्नति करे, सफलता प्राप्त करे और पूर्णता ग्रहण करे। बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे जो सभी दृश्यों से पूर्ण सुखी कहे जा सकते हैं। शास्त्रों में भी कहा गया है कुल मिलाकर सात सुख होते हैं। जिनके जीवन में सातों सुख होते हैं वह अपने आप में पूर्ण कहा जा सकता है।

नवरात्रि के पुण्यकाल में मां दुर्गा को प्रसन्न कर, उनकी आराधना कर शास्त्रों के अनुसार सात सुख, निरोगी काया, घर में माया, पुत्र सुख, मान सम्मान, सुलक्षणा नारी, शत्रु मर्दन और ईश्वर दर्शन सहज ही प्राप्त किया जा सकता है। अगर साधक में साहस, क्षमता और कुछ कर गुजरने की प्रबल इच्छा हो, अपने जीवन में सफलता पाना चाहे तो निष्ठा पूर्वक मां भगवती दुर्गा की दिल से उपासना कर संसार के तमाम लौकिक और अलौकिक सुख प्राप्त किए जा सकते हैं। नवरात्र साधना के समय हम जो भी कर्म, भाव, विचार बोएगें, वह अनेक गुना फलदाई होकर प्राप्त होगा।

जिनका हृदय तपस्या की रश्मियों से ओत-प्रोत है, अंतःकरण में ईश्वर या मिलन की अभिप्शा है, उनके लिए चैत्र संवत्सर एक नवीन जीवन का प्रारंभ हो सकता है। आइए और नवरात्र साधना के तत्व दर्शन को समझते हुए वैश्विक महामारी के इस आपदा बेला में ईश्वर से एकाकार होकर देश-दुनियां शांति की कामना कीजिए।

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