परहित सरिस धर्म नहिं भाई
- पीयूष (मध्य प्रदेश)
परमात्मा द्वारा रचित इस संसार की रचना को अगर हम देखें तो प्रकृति सदैव अटल होकर अपना धर्म भी निभाती है] और कर्म भी करती है। नदियां हमेशा परहित के लिए बहती हैं। सूरज हर सुबह अपनी किरणों से सारे जहां को रोशन करता है। चन्द्रमा भी अपनी रोशनी को बिखेरकर शीतलता प्रदान करता है। आसमान में टिमटिमाते तारे एकता का परिचय देते हुये जीने का ढंग सिखाते हैं। वहीं बादल भी जीवन के कल्याण के लिये बरसते हैं।
इस धरा के धर्म का तो क्या कहना- ये सारे संसार के बोझ को अपने कंधों पर उठाये हुए है। पुष्प की बात का जिक्र कैसे न हो। वह भी तो काँटों के बीच चुभन और पीड़ा सहकर भी अपनी महक से बाग को सजा देता है] जहां हर मनुष्य आनंद और सुकून महसूस करता है।
इन सबसे प्रेरित होकर हम भी जीवन जीने की कला सीखते हैं। हमें भी अपनी सोच को बड़ा करने की जरूरत है किसी की मदद के लिये बढ़ाया गया एक कदम किसी गिरते को उठाने की कला और किसी के आंसू पोंछकर उसके जीवन में मुस्कुराहट लाने की अदा हमें भी आ जाये।
किसी भूखे का पेट भरना, प्यासे को पानी पिलाना किसी के ज़ख्मों पर मरहम लगाना हमारा भी धर्म बन जाये। जीना, वही जीना है जो औरों के काम आये। नर सेवा नारायण पूजा वाला भाव जब मन में आ जाता है तो हमारा जीवन खुद-ब-खुद सुन्दर और खुशहाल बन जाता है और रूह को आनंद आता है। किसी भटके को राह दिखाना किसी को अध्यात्म के प्रति जागरूक करना उसे गुरु का महत्व समझाना सत्संग में आने के लिए प्रेरित करना ये सब भी कल्याण करने के रूप में हमारा पहला धर्म है।
सन्त निरंकारी मिशन में भी बाबा बूटा सिंह जी से लेकर आज सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज तक सत्गुरु के विभिन्न स्वरूपों के साथ-साथ अनंत भक्तों ने मानव कल्याण को ही अपने जीवन का हिस्सा बनाया। जहां एक ओर ज्ञान का उजाला देकर सबका नाता सत्य के साथ जोड़कर भक्ति का मार्ग प्रशस्त किया; वहीं मानवता का पाठ पढ़ाकर व प्रेम, नम्रता, सहनशीलता और परोपकार जैसे गुणों से सारे जहाँ का कल्याण किया है।